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क्या है ‘गार’ और क्या होगा इसका काम?

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, शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2017 (18:04 IST)
नई दिल्ली। कालेधन पर लगाम लगाने और राजस्व में बढ़ोतरी करने के लिए केंद्र सरकार ने वर्ष 2012-13 में जनरल एंटी एवॉयडेंस रुल्स (गार) को 1 अप्रैल 2017 से लागू किए जाने का फैसला किया था। 27 जनवरी 2017 को केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी है और कहा है कि ‘गार’ का प्रावधान आयकर कानून 1961 के अध्याय 10 (ए) में शामिल है। इसका लक्ष्य है कि जो भी विदेशी कंपनी भारत में निवेश करे, वह यहां पर तय नियमों के मुताबिक ही टैक्स दे।
जनरल एंटी अवॉयडेंस रुल (गार) क्या है? :  ‘गार’ कर चोरी और कालेधन पर रोक लगाने के लिए बनाए गए प्रावधानों का एक समूह है। इसके तहत देश में विदेशी कंपनियों द्वारा किए जा रहे निवेश या समझौतों को कर नियमों के दायरे में लाया जाएगा। कहने का अर्थ है कि गार का उद्देश्य कंपनियों को केवल टैक्स से बचने के लिए सौदे दूसरे देशों के रास्ते करने से रोकना है। इसके अलावा सरकार के राजस्व में बढ़ोतरी और कर व्यवस्था की खामियां दूर करना भी इसके मुख्य उद्देश्यों में शामिल हैं।
 
कर बचाने का तरीका  : केंद्र सरकार के संज्ञान में काफी पहले से ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जिनके तहत विदेशी कंपनियां टैक्स बचाने के लिए दूसरे देशों की कंपनियों से समझौते कर लेती हैं। उदाहरण के लिए वर्ष 2007 में वोडाफोन ने भारतीय बाजार में सक्रिय हच को खरीद लिया था। इस सौदे के बाद ही गार जैसे प्रावधानों की जरूरत महसूस हुई थी। भारत सरकार का कहना था कि यह सौदा कर के दायरे में आता है जिसकी रकम 2 अरब डॉलर से ज्यादा बनती है। 
 
उधर वोडाफोन का तर्क था कि यह सौदा विदेश में हुआ है तो भारत सरकार को कर देने का कोई मतलब नहीं बनता। इस पर भारत सरकार का कहना था कि सौदा भले ही केमैन आइलैंड्स में हुआ हो लेकिन संबंधित पक्ष का कारोबार और परिसंपत्तियां भारत में हैं। 
 
इसके बाद 2010 में गार को प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) में प्रस्तावित किया गया था। साल 2012-13 के बजट में यूपीए-2 सरकार में वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने इसके प्रावधानों का उल्लेख किया लेकिन इन्हें लागू नहीं किया गया था। बाद में गार के प्रावधानों पर विचार करने के लिए इसे संसद की स्थायी समिति के पास भेजा गया।
 
इसके अलावा तत्कालीन यूपीए-2 सरकार ने कर मामलों के विशेषज्ञ पार्थसारथी सोम की अध्यक्षता में इस पर सुझाव देने के लिए एक 7 सदस्यीय समिति गठित की थी। समिति ने 16 जून 2014 को मोदी सरकार को रिपोर्ट सौंप दी थी। 2015 में वित्तमंत्री अरुण जेटली ने समिति की अधिकांश सिफारिशों को स्वीकार करते हुए गार को 2017-18 से लागू किए जाने की बात कही थी।
 
गार को विदेशी निवेशकों की चिंता : गार के लंबे समय तक अटकने की वजह ही विदेशी निवेशकों का डर है। उन्हें लगता है कि इसकी वजह से द्विपक्षीय कर समझौते प्रभावित हो सकते हैं जिससे उनके हितों पर बुरा असर पड़ेगा। हालांकि वित्त मंत्रालय ने कहा है कि उन देशों के निवेशकों पर गार लागू नहीं होगा जिनके साथ हुए कराधान अपवर्जन समझौते (डबल टैक्सेशन एवायडेंस एग्रीमेंट- डीटीएए) में लिमिटेशन ऑफ बेनिफिट प्रावधान (एलओबी) नामक प्रावधान भी शामिल है।
 
एलओबी प्रावधान का मकसद यह होता है कि दो देशों के बीच हुए दोहरे कराधान समझौते का फायदा किसी तीसरे देश के निवेशक न उठा लें। हालांकि कई आर्थिक विशेषज्ञ मानते हैं कि इसमें कई ऐसे प्रावधान हैं जिन पर स्थिति और साफ करने की जरूरत है।
 
राहत के हकदार  : सीबीडीटी द्वारा जारी अधिसूचना के मुताबिक मॉरीशस और सिंगापुर जैसे देशों के निवेशकों पर गार के प्रावधान लागू नहीं होंगे। इसकी वजह इन देशों के साथ भारत के कर समझौते (डीटीएए) में एलओबी का प्रावधान है। दूसरी ओर, साइप्रस और नीदरलैंड्स जैसे देशों के निवेशकों को गार से राहत नहीं मिलेगी, क्योंकि इनके साथ हुए इस तरह के समझौते में ये प्रावधान शामिल नहीं हैं। 
 
सीबीडीटी के मुताबिक गार के तहत किसी निवेशक पर जुर्माना संबंधित मामले में तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए ही लगाया जाएगा, न कि पहले से तय किसी प्रक्रिया के तहत। इसके अलावा यदि निवेशकों का उद्देश्य कर लाभ हासिल करना नहीं है और निवेश गैर-वाणिज्यिक श्रेणी में रखा गया है, तो भी गार से छूट मिलेगी। आयकर विभाग ने यह भी कहा है कि गार करदाताओं के लेन-देन के अपने तरीकों के चुनाव पर भी कोई प्रभाव नहीं डालेगा। साथ ही 31 मार्च 2017 तक किए गए विदेशी निवेश को इस नियम के तहत नहीं लाया जाएगा।
 
गार लागू किए जाने की प्रक्रिया  :  आयकर विभाग के मुताबिक किसी निवेशक पर गार लागू करने के प्रस्ताव की सबसे पहले मुख्य आयकर आयुक्त या आयकर आयुक्त द्वारा जांच की जाएगी। इसके बाद किसी हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश की अध्यक्षता में गठित एक समिति द्वारा इसकी जांच की जाएगी। विभाग ने निवेशकों को विश्वास दिलाया है कि सरकार इन नियमों को लेकर पारदर्शिता अपनाने को लेकर प्रतिबद्ध है और यदि किसी को कोई आशंका है तो इसका समाधान किया जाएगा।

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