why indians are loosing hope to own a house: भारत में अपना घर होना सिर्फ एक संपत्ति नहीं, बल्कि एक सपना है – सुरक्षा, स्थिरता और सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक। यह भारतीय मध्यम वर्ग की आकांक्षाओं का मूल आधार रहा है। लेकिन, हाल के आँकड़े और विशेषज्ञों की टिप्पणियां बताती हैं कि यह सपना अब तेजी से टूट रहा है। हाल ही में एक्स पर एक चार्टर्ड अकाउंटेंट की एक हालिया सोशल मीडिया पोस्ट के अनुसार, भारत में 59% लोगों ने मकान खरीदने की उम्मीद छोड़ दी है। यह आंकड़ा न केवल चौंकाने वाला है, बल्कि यह एक गहरी सामाजिक और आर्थिक असमानता की ओर भी इशारा करता है, जहां रियल एस्टेट बाजार सट्टेबाजी का गढ़ बनता जा रहा है और आम आदमी पीछे छूट रहा है।
क्यों टूट रहा है भारतीयों के घर का सपना: जानिए कड़वी हकीकत
नितिन कौशिक का पोस्ट भारत के आवास संकट की एक गंभीर तस्वीर पेश करता है। उनका कहना है कि पिछले पांच सालों में भारत के शीर्ष आठ शहरों में प्रॉपर्टी की कीमतें लगभग दोगुनी हो गई हैं, जबकि औसत आय में मामूली इजाफा हुआ है। यह एक ऐसी खाई है जो मध्यम वर्ग के लिए घर खरीदने को लगभग असंभव बना रही है। '5-20-40 का नियम' (जहां आपकी सालाना आय का 5 गुना तक होम लोन मिल सकता है, 20% डाउन पेमेंट और 40% EMI-टू-इनकम रेश्यो) अब बेमानी हो चुका है। उदाहरण के तौर पर, यदि आपकी सालाना आय 10 लाख रुपये भी है, तो आप 2 करोड़ रुपये का घर खरीदने की कल्पना भी नहीं कर सकते, क्योंकि इसके लिए आपको 20 साल तक अपनी पूरी सैलरी बचानी होगी, जो अव्यावहारिक है। यह 'वेलकम टू द ग्रेट इंडियन इनइक्वलिटी' का स्पष्ट संकेत है।
असमानता और सट्टेबाजी का खेल
यह समस्या केवल बढ़ती कीमतों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक गहरा 'सट्टेबाजी का गणित' काम कर रहा है। आज घर को रहने की जगह से ज्यादा 'धन रखने की जगह' माना जा रहा है। अमीर लोग प्री-लॉन्च में थोक में प्रॉपर्टी खरीदते हैं, कृषि आय पर छूट लेते हैं, और टैक्स बचाने के लिए जमीन के सौदे करते हैं। इससे रियल एस्टेट एक टैक्स बचाने का जरिया बन जाता है, और निवेशक लगातार प्रॉपर्टी खरीदते रहते हैं। इसका सीधा परिणाम यह होता है कि जो लोग वास्तव में मकान खरीदना चाहते हैं, वे बाजार से बाहर हो जाते हैं। गुरुग्राम जैसे शहरों में तो कीमतें इतनी बढ़ गई हैं कि वे न्यूयॉर्क से भी महंगे हो गए हैं, जो एक गंभीर चिंता का विषय है।
रियल एस्टेट सेक्टर अब मध्यम वर्ग के बजाय उच्च-आय वर्ग के ग्राहकों पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहा है। 2022 में 1 करोड़ रुपये से कम कीमत वाले किफायती घरों की उपलब्धता 3.1 लाख थी, जो 2024 तक 36% गिरकर केवल 1.98 लाख रह गई। वहीं, लग्जरी मकानों की आपूर्ति में भारी वृद्धि हुई है (जैसे दिल्ली-एनसीआर में 192% और बेंगलुरु में 187%)।
मध्यम वर्ग पर बढ़ता बोझ
घर खरीदने के लिए होम लोन लेना अब आम बात है, लेकिन होम लोन की EMI अब आमदनी पर भारी पड़ रही है। 'EMI टू इनकम रेश्यो' (मासिक आमदनी का वह प्रतिशत जो EMI में खर्च होता है) 2020 में 46% था, जो 2024 तक बढ़कर 61% तक पहुंच गया है। इसका सीधा मतलब है कि कई परिवारों के लिए अब घर खरीदने का मतलब अपनी जीवनशैली और शायद बुनियादी जरूरतों के साथ समझौता करना होगा। यह स्थिति मध्यम वर्ग के लिए अत्यधिक वित्तीय दबाव पैदा कर रही है, जिससे उनका 'अपना घर' का सपना दूर होता जा रहा है।
भारत में घर खरीदने का सपना टूटना केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं, बल्कि एक गंभीर सामाजिक और आर्थिक चुनौती है। यह बढ़ती असमानता, शहरीकरण के दबाव और रियल एस्टेट बाजार में सट्टेबाजी के हावी होने का परिणाम है। यदि यह प्रवृत्ति जारी रहती है, तो यह सामाजिक स्थिरता और आर्थिक विकास दोनों के लिए हानिकारक हो सकती है।
यह समय है कि सरकार और नीति-निर्माता इस मुद्दे पर गंभीरता से ध्यान दें। किफायती आवास की आपूर्ति बढ़ाना, सट्टेबाजी पर लगाम लगाना, और आय-संपत्ति के बीच की खाई को पाटने के लिए ठोस कदम उठाना आवश्यक है। 'होम ओनरशिप', जो कभी मध्यम वर्ग की पहचान थी, उसे फिर से उनकी पहुंच में लाना होगा। यह तभी संभव है जब हम यह समझें कि यह खेल ही गलत तरीके से खेला जा रहा है।