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उद्योग त्रस्त हैं बढ़ते मुद्रा प्रवाह से

हमें फॉलो करें उद्योग त्रस्त हैं बढ़ते मुद्रा प्रवाह से
, सोमवार, 23 जुलाई 2007 (21:20 IST)
देश के निर्यात उद्योग एवं अंतर बैंक माँग मुद्रा दर बाजार दोनों के हाल बेहाल हैं। इसकी वजह है, डॉलर के मुकाबले बनती रुपए की मजबूत विनिमय दर एवं रुपए चुकाकर अधिक से अधिक डॉलर खरीदने से देश की आर्थिक प्रणाली में रुपए का बढ़ता प्रवाह।

इन दिनों देश की बैंकें मुद्रा प्रवाह के आधिक्य से लबरेज हैं एवं इससे निपटने में असमर्थ हैं, क्योंकि ऊँची ब्याज दर की वजह से उद्योग एवं व्यापार में कर्ज की माँग घट गई है।

अंतर बैंक माँग मुद्रा दर बाजार में जब भी बैंकें अपने आधिक्य के प्रवाह को खपाने का प्रयास करते हैं, तो वहाँ रात्रि पर्यंत (अल्प अवधि) की ब्याज दर घटकर एक प्रतिशत से भी कम रह जाती है और बैंकों को मजबूरन 0.6 या 0.3 प्रतिशत ब्याज दर पर रात्रि पर्यंत तक के लिए अपने आधिक्य प्रवाह का सदुपयोग करना पड़ता है। बैंकों के समान ही निर्यातक उद्योग कुछ पस्त हिम्मत हो रहे हैं और उनका मानना है कि वर्ष 2007-08 में निर्यात निर्धारित लक्ष्य से 14 प्रतिशत तक घट सकता है।

इस स्थिति के लिए भारत सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक दोनों दोषी हैं। सरकार को जहाँ निर्यातक उद्योगों को कुछ अधिक राहत देना चाहिए, वहीं भारतीय रिजर्व बैंक को देश में डॉलर की माँग बढ़ाने एवं डॉलर के खर्च में वृद्धि लाने की योजनाएँ घोषित करना चाहिए। डॉलर की माँग बढ़ने से अथवा डॉलर खरीदने वालों की संख्या बढ़ने से रुपया कमजोर बनेगा, जिससे उद्योगों व बैंकों दोनों को राहत मिलेगी।

अभी मुख्यतः रिजर्व बैंक माँग मुद्रा दर बाजार में रुपए के बढ़े हुए प्रवाह को दो तरीकों से घटाता है, रिवर्स रेपो से एवं बाजार में सरकारी प्रतिभूतियाँ जारी करके। रिवर्स रेपो के माध्यम से रिजर्व बैंक सरकारी प्रतिभूतियों के बदले बैंकों से अल्प अवधि के लिए नकद रकम उधार लेता है। उसके द्वारा लिए जाने वाले ऐसे उधार से प्रणाली में रुपए का प्रवाह घटता है।

इन दिनों बैंक एक लाख करोड़ रुपए से अधिक के प्रवाह को रिजर्व बैंक को बेचने के लिए तत्पर रहते हैं, किंतु भारतीय रिजर्व बैंक एक दिन में तीन हजार करोड़ रुपए से अधिक की रकम रिवर्स रेपो में स्वीकार नहीं करता। इस तरह बाजार के प्रवाह को वह समुचित रूप से सोख नहीं पा रहा है। जब प्रवाह नहीं सोखेगा, तो रुपए के बदले डॉलर की खरीदी कैसे बढ़ेगी एवं कैसे डॉलर के मुकाबले में रुपया कमजोर बनेगा?

भारतीय रिजर्व बैंक शायद अब सोते हुए जागा है। उसने एक ओर रिवर्स रेपो के तहत 3000 करोड़ रुपए की सीमा को बढ़ाने का निर्णय लिया है, वहीं 18 जुलाई को उसने कुल 9000 करोड़ रुपए के प्रतिभूतियाँ एवं बॉण्ड जारी किए हैं, ताकि उपयुक्त ब्याज के लालच में बैंकें उन्हें खरीदें।

इसी तरह 20 जुलाई को 9000 करोड़ रुपए की प्रतिभूतियाँ एवं बॉण्ड की नीलामी की है। इन सबके बाद भी प्रणाली में 67000 करोड़ रुपए का प्रवाह बना रहेगा। अगर यह प्रवाहता कम नहीं हुआ, तो संभव है बैंकें अपनी जमा रकमों की ब्याज दर घटा दें एवं रुपया अधिक मजबूत बन जाए, क्योंकि रुपए को कमजोर बनाने में प्रवाह अधिक बढ़ता है।

शेयर बाजार की मजबूती एवं देश के आर्थिक घटक बेहतर होने की वजह से विदेशी निवेशकों को भारत में लाभ कमाने के अच्छे अवसर हैं। इसीलिए जनवरी से जुलाई तक के सात माह में वे देश में 845 करोड़ डॉलर भारत ला चुके हैं, जबकि गत वर्ष पूरे 12 माह में 800 करोड़ डॉलर भारत लाए थे।

डॉलर की भारी आवक से ही रुपया मजबूत बन रहा है, क्योंकि अंतर बैंक विदेशी मुद्रा बाजार में डॉलर बेचकर रुपए खरीदने वाले ज्यादा हैं। रुपए की माँग ज्यादा होने से उनके भाव बढ़ रहे हैं। रुपया कमजोर तभी हो सकता है, जब बाजार में रुपए बेचकर डॉलर खरीदने वाले ज्यादा हों।

भारतीय रिजर्व बैंक जमकर डॉलर खरीद सकता है, किंतु उसके द्वारा ऐसा करने से देश में मुद्रास्फीति बढ़ सकती है। मुद्रास्फीति अधिक न बढ़े, इसके लिए भी रिजर्व बैंक को प्रणाली में बढ़ रहे मुद्रा प्रवाह को पहले सोखना जरूरी है। ऐसा करके ही वह नए सिरे सेडॉलर खरीदकर रुपए की दर को कमजोर बना सकता है।

लगता है भारतीय रिजर्व बैंक अभी भगवान भरोसे है। शायद वह भगवान से यही प्रार्थना कर रहा है कि देश में डॉलर की आवक घट जाए तो स्थिति बैंकों, उद्योगों तथा स्वयं उसके हित में बन सकती है। अब प्रवाह सोखने का अंतिम उपाय यही है कि बैंकों की सीआरआर में वृद्धि की जाए।

अगर एक-चौथाई प्रतिशत सीआरआर बढ़ता है तो 14000 करोड़ रुपए से अधिक का प्रवाह एकदम घट सकता है, किंतु इसका निर्णय 30 जुलाई को तब ही होगा, जब रिजर्व बैंक मौद्रिक स्थिति की तिमाही समीक्षा रपट जारी करेगा।

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