अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम तेजी से बढ़ते हुए 100 डॉलर के नजदीक पहुँचने से सरकार और तेल कंपनियों के माथे पर बल पड़ने लगे हैं।
इसके साथ ही पेट्रोल-डीजल के दाम बढने की चर्चा जो कुछ दिन पहले ठंडी पड़ चुकी थी, एक बार फिर तेज हो गई।
पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री मुरली देवड़ा की पहले वित्तमंत्री, फिर प्रधानमंत्री और उसके बाद संप्रग अध्यक्ष सोनिया गाँधी से मुलाकात ने तो जैसे आग में घी का काम किया है। हालाँकि अभी यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि सरकार क्या कदम उठाने जा रही है।
उसके सामने पेट्रोलियम पदार्थों पर आयात शुल्क और उत्पाद शुल्क में कमी करने का विकल्प भी मौजूद है, क्योंकि कच्चे तेल के दाम बढ़ने के साथ-साथ सरकार का राजस्व भी बढ़ता है।
जिस तेजी से कच्चे तेल के दाम बढ़ रहे हैं निश्चित ही सरकारी खजाने में आयात शुल्क और उत्पाद शुल्क के रुप में राजस्व भी अधिक आ रहा होगा।
दूसरा विकल्प पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाने का है। वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में सरकार तुरंत इस विकल्प का इस्तेमाल करेगी, इसकी संभावना कम ही नजर आती है।
पिछले पाँच साल में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम करीब पाँच गुणा बढ़ चुके हैं। वर्ष 2002 में जहाँ 20 डॉलर प्रति बैरल का भाव था, वहीं 2007 में यह 96 डॉलर प्रति बैरल की ऊँचाई तक पहुँच चुका है।
तेल कंपनियों में आयात कारोबार देखने वाले अधिकारियों के मुताबिक दुनिया में पेट्रोलयम उत्पादों के उत्पादन और खपत में असंतुलन की स्थिति और बढ़ती माँग में सट्टेबाजों की कलाबाजी से कच्चे तेल के दाम बढ़ते चले जा रहे हैं।
भारत पेट्रोलियम की सुमिता बोस के मुताबिक पूरी दुनिया में तेल की खपत पिछले दस सालों में 330 करोड़ टन से बढ़कर 400 टन के नजदीक पहुँच चुकी है।
अमेरिका में कुल विश्व खपत की 30 प्रतिशत पेट्रोलियम खपत होती है। भारत में 2001-02 में जहाँ पेट्रोलियम पदार्थों की खपत 10 करोड़ टन पर थी। उसके 2011-12 तक 14.5 करोड टन तक पहुँचने का अनुमान है।
बहरहाल, लगातार ऊँचाई नापते तेल बाजार में घरेलू तेल कंपनियों के लिए डॉलर के मुकाबले रुपये की मजबूती एक बड़ा सहारा बना हुआ है। उनका आयात बिल उतनी तेजी से नहीं बढ़ रहा है, जितनी तेजी से दाम बढ़ रहे हैं।
सरकार ने पेट्रोलियम पदार्थों के दाम तय करने के लिए सुनियोजित ढाँचा बनाने के बारे में सिफारिश देने के लिए रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डॉ. सी. रंगराजन की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी। समिति ने पिछले साल फरवरी में सरकार को अपनी सिफारिशें सौंप दी थी।
समिति ने पेट्रोल, डीजल के दाम तय करने के मामले में सरकार को दूरी बनाए रखने की हिदायत दी थी।
घटे दाम पर राशन की दुकानों से मिट्टी तेल की बिक्री केवल गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले परिवारों तक सीमित रखने और घरेलू सिलेंडर के दाम चरणबद्ध तरीके से 75 रुपए प्रति सिलेंडर बढ़ाने की सिफारिश की थी ताकि इस पर सब्सिडी को पूरी तरह समाप्त किया जा सके।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय खरीद मूल्य 70 डॉलर प्रति बैरल तक बढ़ने की स्थिति में तेल कंपनियों को इस साल 55000 करोड़ रुपए के नुकसान का अनुमान लगाया गया था फिलहाल इस साल का औसत 71 डॉलर के आसपास बना हुआ है।
गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव सामने हैं। परमाणु करार पर वामदलों के विरोध के चलते लोकसभा चुनाव का भी खतरा बना हुआ है। ऐसे में दाम बढ़ने की उम्मीद कम ही लगती है, जबकि शुल्क दरों में कमी का विकल्प बेहतर नजर आता है।