अमेरिका में ब्याज दर में कटौती ने एक नई बहस छेड़ दी है कि अमेरिका, जापान, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया सहित विश्व की कई बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ शून्य प्रतिशत ब्याज प्रणाली की ओर बढ़ रहे हैं।
हालाँकि भारत के बारे में बैंकरों की अलग ही राय है। पिछले पाँच दशकों में अमेरिका में दरें एक फीसदी के मौजूदा स्तर से नीचे नहीं रही हैं, लेकिन जापान ने 1999 से मार्च 2006 तक ज्यादातर समय शून्य फीसदी की नीति रखी है।
अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने बुधवार को ब्याज दर आधा फीसदी घटाकर 1 फीसदी कर दी, जबकि बैंक ऑफ जापान अपनी ब्याज दरों की समीक्षा के लिए कल बैठक कर रहा है।
विश्लेषकों को अनुमान है कि जापान की ब्याज दर मौजूदा आधा फीसदी से घटाकर शून्य की जा सकती है। जापान की ब्याज दर पहले से ही निम्न स्तर पर है।
इधर, भारत में भी दरों में और कटौती किए जाने की अटकलें लगाई जा रही हैं, लेकिन बैंकरों का मानना है कि शून्य फीसदी ब्याज दर दूर की कौड़ी जैसी लगती है। यूको बैंक के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक एसके गोयल ने कहा यह शून्य फीसदी ब्याज दर भारत में काफी मुश्किल लगता है।
शून्य ब्याज दर नीति के तहत केंद्रीय बैंक मुख्य मौद्रिक उपाय के तौर पर ब्याज दर के बजाय मुद्रा आपूर्ति का उपयोग करता है। हालाँकि शून्य ब्याज दर उपभोक्ताओं या कॉरपोरेट उधारकर्ताओं के लिए शून्य ब्याज लागत की गारंटी नहीं देती।
यह प्रणाली केवल उन बैंकों पर लागू होती है, जो केंद्रीय बैंक में अपना पैसा रखते हैं। ऐसी व्यवस्था में उपभोक्ताओं और कॉरपोरेट ग्राहकों पर लागू ब्याज दरों में गिरावट का रुख देखा जा सकता है।