Biodata Maker

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

डूबते डॉलर से चमकेगा भारत

Advertiesment
हमें फॉलो करें डूबते डॉलर से चमकेगा भारत

कमल शर्मा

देश में इस समय महँगाई को लेकर हर जगह कोहराम मचा हुआ है। महँगाई बढ़ने के अनेक कारण हैं, लेकिन सबसे रोचक कारण है अमे‍रिकी डॉलर का ऊँचा मूल्‍य। हालाँकि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अब जिस तरह भारतीय रुपया मजबूत बनता जा रहा है, वह फायदेमंद है। जनवरी 2007 में एक अमेरिकन डॉलर 44.25 रुपए में मिलता‍ था, जो आज 39.99 रुपए में मिल रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक यदि अमेरिकन डॉलर के अवमूल्‍यन को रोकने के लिए हस्‍तक्षेप नहीं करता है तो डॉलर का और पतन होना तय है।

अमेरिका का विदेश व्‍यापार घाटा जिस तेजी से बढ़ रहा है और अर्थव्‍यवस्‍था का जिस गति से पतन हो रहा है उससे एक बात साफ है कि अमेरिकन डॉलर की कीमत और गिरेगी। जब भी अमेरिकन डॉलर टूटता है, हमारे यहाँ निर्यातक हल्‍ला मचा देते हैं और भारतीय रिजर्व बैंक उन्‍हें मदद करने के बहाने अमेरिका की मदद करने पहुँच जाता है। अमेरिकी डॉलर को कृत्रिम रूप से मजबूत बनाए रखने की यह नीति भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था की सेहत के लिए खतरनाक है। लगता है कि भारतीय रिजर्व बैंक और सरकार को यह गणित समझ में आ गया है जिसकी वजह से पहली बार भारत में अमेरिकी डॉलर की कीमत गिरती जा रही है।

हमारा देश जब आजाद हुआ तब हमारे सिर पर कोई विदेशी कर्ज नहीं था। एक अमेरिकन डॉलर की कीमत उस समय एक भारतीय रुपए के समान थी। जब से देश में पंचवर्षीय योजना का सिलसिला शुरू हुआ और उसके लिए विदेशी कर्ज लेने का कारोबार शुरू हुआ तब से भारतीय रुपया लगातार कमजोर पड़ता जा रहा है।

वर्ष 1962 में चीन एवं वर्ष 1965 में पाकिस्‍तान के साथ जंग हुई, जिसकी वजह से अमेरिका से बड़ी संख्‍या में हथियार खरीदने पड़े और भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के बुरे दिन शुरू हुए। अपने देश ने वर्ष 1966 से घाटे का बजट बनाने की प्रथा अपनाई और मुद्रास्‍फीति लगातार बढ़ने लगी। अमेरिका जैसे देशों ने भारत को मदद चालू रखने के लिए तत्‍कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी पर दबाव डालकर भारतीय रुपए का अवमूल्‍यन कराया। एक अमेरिकन डॉलर का मूल्‍य तय हुआ सात भारतीय रुपए।

उस समय इस फैसले के मुख्‍य विरोधी टीटी कृष्णमाचारी और कामराज जैसे नेता थे। अमेरिका की दादागीरी और कमजोर भारतीय नेताओं की वजह से वर्ष 1970 के बाद अमेरिकन डॉलर का दाम लगातार बढ़ता रहा और भारतीय रुपए का अवमूल्‍यन होता रहा। वर्ष 1970 में एक अमेरिकन डॉलर की कीमत 7.57 रुपए थी, जो वर्ष 1975 में बढ़कर 8.40 रुपए हो गई। वर्ष 1985 में एक अमेरिकन डॉलर का दाम था 12.36 रुपए, वर्ष 1990 में यह 17.50 रुपए पहुँच गया।

वर्ष 1991 में जब नरसिंहराव की सरकार बनी तब देश का विदेशी मुद्रा भंडार केवल तीन महीने के आयात बिल अदा करने जितना ही बचा था। नतीजतन अंतरराष्‍ट्रीय मुद्रा कोष से भारी भरकम कर्ज लेना पड़ा, जिसकी एवज में भारतीय रुपए का अवमूल्‍यन करना पड़ा। इस एक ही साल में अमेरिकन डॉलर का भाव 16.31 रुपए से उछलकर 24.58 रुपए पहुँच गया। इस साल निर्यातकों ने तगड़ी कमाई की और उन्‍होंने जो माल निर्यात किया था, उसका उन्‍हें डेढ़ रुपया मिला।

वर्ष 1991 के बाद सरकार की गलत नीतियों की वजह से डॉलर के दाम लगातार बढ़ते रहे। वर्ष 1992 में डॉलर का दाम बढ़कर 28.97 रुपए, वर्ष 1995 में 34.96 रुपए और वर्ष 2000 में 46.78 रुपए पहुँच गया। जून 2002 में अमेरिकन डॉलर अपने उच्‍चतम स्‍तर 48.98 रुपए पर जा पहुँचा। इस स्‍तर के बाद रुपया मजबूत बनने लगा।

भारतीय रिजर्व बैंक की डॉलर खरीद के बावजूद रुपया मजबूत बनता जा रहा है। दिसंबर 2002 में एक डॉलर के 48.14 रुपए मिल रहे थे जो वर्ष 2003 में 45.57 रुपए और वर्ष 2004 में 43.84 रुपए रह गए।

देश का विदेशी मुद्रा भंडार तीन सौ अरब डॉलर तक पहुँच जाने की वजह से भारतीय रिजर्व बैंक ने डॉलर की खरीद बंद कर दी जिसकी वजह से यह अब अपने असली स्‍तर की ओर बढ़ रहा है। इस समय मुद्रा बाजार में एक डॉलर की कीमत 40 रुपए के आसपास बोली जा रही है। हालाँकि यह भी इसकी असली कीमत नहीं है, बल्कि सरकार के कृत्रिम उपायों से इसे इस स्‍तर पर टिकाए रखा गया है।

किसी भी मुद्रा की वास्‍तविक कीमत उसकी जानने के लिए उसकी खरीद शक्ति यानी परचेजिंग पावर पैरिटी यानी पीपीपी को जानना होता है। अमेरिका में एक डॉलर से जितनी वस्‍तुएँ खरीदी जा सकती हैं उतनी वस्‍तुएँ भारत में खरीदने के लिए कितने रुपए की जरूरत पड़ेगी, यही पीपीपी होता है।

अर्थशास्‍त्रियों का कहना है कि आज एक डॉलर की खरीद शक्ति भारत के दस रुपए जितनी ही है। अमेरिका में एक दर्जन केले खरीदने के लिए एक डॉलर की जरूरत होती है और भारत में आप दस से बारह रुपए में एक दर्जन केले खरीद सकते हैं। अमेरिका में एक इंजीनियर को दो हजार डॉलर मासिक वेतन मिलता है तो भारत में भी एक इंजीनियर को 20 से 25 हजार रुपए वेतन मिलता है। लेकिन दो हजार डॉलर को जब 40 रुपए से गुणा किया जाता है तो यह 80 हजार रुपए दिखता है, जिसकी वजह से भारतीय इंजीनियर अमेरिका की ओर दौड़ते हैं।

यदि डॉलर का दाम दस रुपए कर दिया जाए तो भारत का बुद्धिबल विदेश नहीं भागेगा। हकीकत में अमेरिका को खुश रखने के लिए डॉलर को मजबूत रखा जा रहा है। यदि इसकी कीमत दस रुपए पहुँच जाए तो पेट्रोल 18 रुपए और डीजल 12 रुपए प्रति लीटर तक मिल सकता है। पेट्रोल और डीजल सस्‍ता होने पर महँगाई पर लगाम लग सकती है।

अमेरिकी डॉलर के दाम टूटने पर निर्यातकों को बड़ी हानि होगी, यह भी अर्धसत्‍य है। हमारा देश जिन वस्‍तुओं का निर्यात करता है उनमें डायमंड, टेक्‍सटाइल और सॉफ्टवेयर मुख्‍य हैं। डायमंड के कारोबार में रफ का आयात किया जाता है और पॉलिश्ड माल निर्यात किया जाता है। यदि डॉलर का अवमूल्‍यन किया जाए तो डायमंड कारोबारियों को रफ सस्‍ती मिलेगी और पॉलिश्ड माल भी सस्‍ता बेचना होगा। इस तरह उन्‍हें कोई नुकसान नहीं होगा।

टेक्‍सटाइल क्षेत्र में भी कच्‍चा माल आयात किया जाता है, यदि यह आयात सस्‍ता हो जाए तो निर्यात से मिलने वाली कीमत से इनके मुनाफे में कोई असर नहीं होगा। उल्‍टे भारतीय उत्‍पादक डॉलर का अवमूल्‍यन होने पर अपने उत्‍पादों के दाम बढ़ा सकते हैं। यदि वे चाहें तो रुपए में भी इनवाइस बना सकते हैं, जिसकी वजह से उन्‍हें नुकसान होगा ही नहीं।

अब बात करते हैं कि विदेशी निवेश की। यदि डॉलर का अवमूल्‍यन किया जाए तो उन विदेशी कंपनियों को नुकसान होगा जो भारत में निवेश करती हैं। इस समय भारतीय रिजर्व बैंक से एक डॉलर के 40 रुपए लेकर ये कंपनियाँ निवेश कर रही हैं, यदि डॉलर का दाम दस रुपए रह जाए तो इन्‍हें अपना निवेश चार गुना बढ़ाना होगा। अब इस हिसाब से देखें तो इन कंपनियों को कोई नुकसान नहीं होगा, हाँ निवेश की राशि चार गुनी करनी पड़ेगी लेकिन लाभ भी मौजूदा स्‍तर जितना ही मिलता रहेगा।

क्‍या इन कंपनियों ने भारत की सम्‍पत्ति सस्‍ते में हथियाने के लिए तो डॉलर को मजबूत बनाए रखने का दबाव सरकार पर नहीं बना रखा है। या फिर डॉलर को मजबूत बनाए रखने के लिए ये कंपनियाँ मिलकर कृत्रिम तरीके तो नहीं अपना रही हैं। जरूरत है देश के हित को पहले देखने की न कि अमेरिकी हितों की रक्षा करने की। लेकिन कर्ज और महँगाई के जाल में फँसे देश को कमजोर निर्णयों से नहीं निकाला जा सकेगा।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi