वैश्विक मंदी से निर्यातकों में छाई निराशा, आत्मविश्वास की कमी, चीन से मिल रही जबरदस्त प्रतिद्वंद्विता और बैंकों से वित्तीय सहायता के अभाव में वित्त वर्ष 2009 में देश के निर्यातकों के लिए 180 अरब डॉलर के निर्यात लक्ष्य को हासिल करना कठिन होगा।
उद्योग मंडल फिक्की के निर्यात विषय पर किए गए सर्वेक्षण के अनुसार चीन के निर्यातकों द्वारा निर्धारित दरों पर बाजार में माल बेचने के लिए मिल रही जबरदस्त चुनौती के कारण देश के निर्यातकों के समक्ष निर्धारित लक्ष्य को हासिल करना कठिन हो गया है।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीन के निर्यातकों ने अपने सामान के लिए जो दर निर्धारित की है, उस दर पर भारतीय निर्यातकों को माल बेचना कठिन हो रहा है। कई निर्यातकों ने अपने माल में कठिन स्थिति को देखते हुए 10 से 15 प्रतिशत तक की कटौती भी की है लेकिन तब भी उनके लिए स्थिति असामान्य बनी हुई है।
फिक्की का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में पिछड़ रहे भारतीय कारोबारियों के समक्ष वैश्विक मंच पर अपने माल की मौजूदगी दर्ज करने की बड़ी चुनौती है और इसे देखते हुए बहुत संभव है कि आने वाले दिनों में उन्हें फिर से अपनी कीमतों में फिर से कटौती करने का निर्णय लेने के लिए बाध्य होना पड़े।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि मंदी के दौर में निर्यातकों में निराशा छाई है। उनका आत्मविश्वास चीन जैसे देशों में निर्मित कम दाम के सामान के समक्ष टूट रहा है। चीनी की आक्रामक निर्यात नीतियाँ देश के निर्यातकों के लिए बड़ी चुनौती बन रही है। सरकारी अथवा निजी क्षेत्र के बैंक उन्हें ऋण देने से कतरा रहे हैं। इन विपरीत स्थितियों के बीच देश के निर्यातकों के लिए 180 अरब डॉलर के निर्यात का लक्ष्य हासिल करना बहुत कठिन हो रहा है।
रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति में कुछ सुधार किए जाने के बावजूद निर्यातकों के लिए बैंकों से ऋण लेना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है और बैंक निर्यातकों के साथ ऋण देने के लिए पुराने ढर्रे को ही अपना रहे हैं। यहाँ तक कई बैंकों ने निर्यातकों के लिए ऋण की सीमा को बढ़ाने से भी इनकार कर दिया है।
इसके अलावा भारतीय निर्यातकों के समक्ष निर्यात ऑर्डरों के रद्द होने का बड़ा संकट है। सर्वेक्षण में शामिल 56 कंपनियों में कई का कहना है कि उनके कई ऑर्डर अब तक रद्द हो चुके हैं और भविष्य में स्थिति क्या होगी इस बारे में फिलहाल कुछ नहीं कहा जा सकता है, इसलिए वे सहमे हुए हैं। करीब 30 प्रतिशत कंपनियों ने कहा है कि अंतरराष्ट्रीय खरीदार उनके माल को वापस कर चुके हैं अथवा उनके माल का भुगतान नहीं कर रहे हैं।
सर्वेक्षण में शामिल 51 प्रतिशत से अधिक कंपनियों का मानना है कि अगले छह माह के दौरान देश का निर्यात घटेगा और निर्यात दरों के कारण उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। लगभग 62 प्रतिशत कंपनियों का कहना है कि अगले छह माह के दौरान निर्यात दरों में बहुत गिरावट आएगी।
सर्वेक्षण में कुल 367 कंपनियों ने हिस्सा लिया। इन कंपनियों का सालाना कारोबार एक करोड़ से 50,000 करोड़ रुपए तक का है। इसमें ऑटोमोबाइल्स, चमड़ा, खाद्य तथा खाद्य प्रसंस्करण, समुद्री उत्पाद तथा जेवरात, धातु, आईटी, भारी उद्योग, फार्मास्युटिकल्स, ज्वेलरी आदि क्षेत्र की कंपनियों को शामिल किया गया। कंपनियों का कहना है कि सरकार को उन्हें निर्यात संकट से उबारने के लिए प्रयास करने चाहिए।