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बढ़ते तेल मूल्य आर्थिक विकास के लिए खतरा

हमें फॉलो करें बढ़ते तेल मूल्य आर्थिक विकास के लिए खतरा
नई दिल्ली (वार्ता) , रविवार, 11 नवंबर 2007 (14:28 IST)
विश्व बाजार में 100 डॉलर प्रति बैरल की तरफ तेजी से बढ़ते तेल मूल्य को देखते हु्ए सरकार के पास अब सीमित विकल्प ही बचे हैं और उसे इसका कुछ बोझ उपभोक्ता पर डालना पड़ सकता है।

एसोचैम के एक सर्वेक्षण में 81 प्रतिशत उद्यमियों ने यह राय व्यक्त की है। उनका कहना है कि स्थिति काफी पेचीदा हो गई है और यदि इसका निदान ठीक ढंग से नहीं निकाला गया तो अर्थव्यवस्था के लिए आने वाले दिनों में कठिन परिस्थितियाँ बन सकती हैं1

सर्वेक्षण में 180 कंपनियों के प्रमुखों और मुख्य कार्याधिकारियों ने अपनी राय व्यक्त की। उनके मुताबिक आने वाले दिनों में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें और डॉलर के मुकाबले रुपये की लगातार मजबूत होती स्थिति सबसे बड़े जोखिम हैं।

उनका कहना है कि इस स्थिति से यदि ठीक से नहीं निपटा गया तो 9 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर को बरकरार रखना काफी मुश्किल हो जाएगा।

पिछले तीन महीनों के दौरान कच्चे तेल की कीमतें 77 डालर प्रति बैरल से बढ़ती हुई 97 डॉलर प्रति बैरल तक पहुँच गई है।

इसके पीछे भारत और चीन से बढ़ती पेट्रोलियम उत्पादों की माँग और अमेर‍िका में पेट्रोलियम पदार्थों के भंडार में कमी को मुख्य वजह बताया जा रहा है।

सर्वेक्षण में भाग लेने वाले ज्यादातर उद्यमी सरकार की तरफ से तेल कंपनियों के नुकसान की भरपाई के लिए और बॉन्ड जारी किए जाने के खिलाफ थे।

एसोचैम अध्यक्ष वेणुगोपाल एन. धूत के मुताबिक बॉन्ड का सरकार की वित्तीय स्थिति पर खराब असर होगा। तेल बॉन्ड की देनदारी का बोझ तो बाद में करदाताओं के कंधों पर ही पड़ेगा।

78 प्रतिशत उद्यमियों का मानना है कि सरकार के पास कच्चे तेल के आयात और ईंधन प्रसंस्करण के क्षेत्र में शुल्क दरों में कमी करने की भी गुंजाइश है, लेकिन फिर भी सरकार को बढ़ते तेल मूल्यों का कुछ बोझ तो उपभोक्ताओं पर डालना ही होगा।

एसोचैम बिजनेस बेरोमीटर नामक सर्वेक्षण में 82 प्रतिशत उद्यमियों ने कहा है कि कच्चे तेल के बढ़ते दाम से सरकार को आयात शुल्क से अधिक राजस्व की प्राप्ति हुई होगी, ऐसे में यदि शुल्क दरों में कुछ कमी लाई जाती है तो भी सरकार को बजट में घोषित राजस्व अनुमानों को हासिल करने में ज्यादा परेशानी नहीं होगी।

सर्वेक्षण के मुताबिक पिछले साल के मुकाबले रुपया करीब 12 प्रतिशत तक मजबूत हो चुका है। दूसरी तरफ पिछले तीन महीनों में कच्चे तेल के दाम 25 प्रतिशत तक उछल चुके हैं। तेल के दाम में हुई कुल वृद्धि के आधे की भरपाई तो रुपए की मजबूती से हो रही है जबकि शेष आधी वृद्धि की पूर्ति के लिए विभिन्न विकल्पों पर विचार किए जाने की जरुरत है।

करीब 90 प्रतिशत कंपनी प्रमुखों के मुताबिक वैसे तो घरेलू माँग ही आर्थिक विकास की रफ्तार को बनाए रखने के लिए काफी है, लेकिन जिस तरह से घरेलू अर्थव्यवस्था अमेर‍िका, यूरोप, जापान और चीन की अर्थव्यवस्थाओं से जुड़ चुकी है, उससे यहाँ प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। ऊँची तेल कीमतों का असर अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर और दबाव बढ़ाएगा और वहाँ मंदी गहरा सकती है।

देश में विदेशी मुद्रा के बढ़ते आगमन पर कंपनी प्रमुखों की प्रतिक्रिया रिजर्व बैंक द्वारा इसका बाह्य प्रवाह बढ़ाने के लिए ठोस उपाय करने के पक्ष में थी।

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