लीक से हटकर सोचना रामलिंगा राजू की शक्ति रही है, लेकिन क्या यह शक्ति कंपनी की बैलेंस शीट को चढ़ा-बढ़ा कर दिखाने भर के लिए थी, शायद नहीं।
चौवन वर्ष के राजू ने सत्यम कम्प्यूटर में हजारों करोड़ रुपए की वित्तीय अनियमितता उजागर करते हुए बुधवार को कंपनी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया। इसकी स्थापना उन्होंने ही 1987 में की थी।
भीमरावम के इस व्यक्ति को भारत के सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग का हीरो बनने में 20 साल से ज्यादा का वक्त लगा था, पर राजू के एक ठग के रूप में बदनाम होने में दो हफ्ते भी नहीं लगे।
अक्टूबर 2008 में ही राजू ने कहा था कि सत्यम के पास नकद आरक्षित के रूप में 4000 करोड़ रुपए हैं। उन्होंने दावा किया था कि इसे बढ़ाकर 15000-20000 करोड़ रुपए तक किया जा सकता है, ताकि अधिग्रहण का काम आक्रामक तरीके से आगे बढ़ाया जा सके।
हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से शिक्षा प्राप्त राजू ने आज त्याग-पत्र के साथ कर्मचारियों को लिखे पत्र में कहा कि सितंबर 20 तक के कंपनी के बही खातों में आरक्षित नकद और बैंक बैलेंस 5040 करोड़ रुपए बढ़ाकर दिखाया गया है।
राजू को साधार, लेकिन प्रभावी व्यावसायिक मॉडल डिजाइन करने का श्रेय दिया जाता है, लेकिन ये मॉडल राजू के लिए हमेशा कारगर नहीं रहे। यही वजह रही कि उन्होंने विस्तृत योजना तैयार की, ताकि वास्तविक परिसंपत्ति की कमी की भरपाई काल्पनिक परिसंपत्ति से की जा सके।
उद्यमियों के लिए मिसाल रहे राजू की योजना औंधे मुँह गिरी, जब उन्होंने अपने परिवार द्वारा प्रवर्तित दो कंपनियों को 1.6 अरब डॉलर में खरीदने की कोशिश की। निवेशकों के विरोध ने सौदे को रद्द करने पर मजबूर कर दिया और इसके बाद दाएँ-बाएँ जाने का कोई रास्ता नहीं था, इसलिए उन्होंने कंपनी से इस्तीफा दे दिया।