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सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियाँ चुनौतीपूर्ण और तुष्टीदायक

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बेंगलुरु, देश के वरिष्ठतम आर्थिक नीति के निर्माताओं में से एक राकेश मोहन ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र चुनौतीपूर्ण और तुष्टीदायक करियर की पेशकश करता है तथा देश के युवा पेशेवरों को केवल तड़क भड़क वाली नौकरियों की ओर ध्यान केन्द्रित करने के बजाय निश्चित तौर पर ऐसी सेवाओं में ही जाना चाहिए।

स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में छह महीनों की अवधि के बाद लौटे भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर ने कहा कि पाठ्यक्रमों में सामाजिक दायित्व का बोध समाहित किये जाने तथा सार्वजनिक क्षेत्र में भर्ती के तौर तरीके को आसान बनाये जाने की आवश्यकता है।

उन्होंने को बताया, 'मैंने अपना अधिकांश जीवन सार्वजनिक क्षेत्र में बिताया है। और यह एक परिपूर्ण जीवन रहा है। मैं इससे बेहतर की उम्मीद नहीं कर सकता।' राकेश मोहन ने रिजर्व बैंक में अपने कार्यकाल समाप्त होने के लगभग एक वर्ष पहले लोगों को हैरत में डालते हुए नौकरी का परित्याग कर दिया था। रिजर्व बैंक में उन्होंने मौद्रिक नीति, वित्तीय बाजार, आर्थिक शोध और सांख्यिकी के अलावा कई अन्य कामकाज को संभाला था।

उन्होंने कहा, 'स्टैन्फोर्ड में मेरे बिताये छह महीने काफी लाभदायक रहे और मैं वहाँ मौद्रिक नीति और वित्तीय नीति पर दूसरी किताब को संजोने के उद्देश्य से गया था। मैं पहला खाका (आलेख) तैयार करने में सफल रहा हूँ। उम्मीद है कि यह प्रकाशित होगा।'

यह पुस्तक भारत की मौद्रिक नीति और वित्तीय नीति के बारे में इसके दृष्टिकोण पर केन्द्रित है जहाँ कुछ अध्याय वैश्विक संकट के बारे में भी हैं। मौजूदा समय में मोहन नंदन नीलेकानी, शिरिश पटेल, केशुब महिन्द्रा, दीपक पारेख और जमशेद गोदरेज जैसी हस्तियों के साथ भारतीय मानवीय बसावट संस्थान की स्थापना का प्रयास कर रहे हैं।

वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग में सचिव के बतौर कार्य कर चुके मोहन ने कहा कि अधिकांश निजी क्षेत्र अधिक तनख्वाह देने वाली नहीं हैं। निजी क्षेत्र की नौकरियों में रोजगार की कहीं अधिक असुरक्षा है।

उन्होंने कहा, 'कोई भी इस बात में रूचि रखता नहीं दिखता कि देश में क्या हो रहा है। मुझे उम्मीद है कि भारतीय मानवीय बसावट संस्थान में दी जाने वाली शिक्षा सामाजिक दायित्व और पेशेवराना रवैये पर ध्यान देगा।'

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