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आईपीएल यानी इंडियन प्रॉब्लम लीग

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हमें फॉलो करें इंडियन प्रीमियर लीग

संदीप तिवारी

, सोमवार, 23 मार्च 2009 (15:30 IST)
इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) अब सच्चे अर्थों में प्रीमियर लीग के स्थान पर प्रॉब्लम लीग बन गई है। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के मजबूरी के फैसले ने न केवल भारतीय क्रिकेट की अंतरराष्ट्रीय साख को खतरे में डाल दिया है, वरन इसे ज्यादातर पक्षों के लिए घाटे का सौदा बना दिया है। सरकार मजबूर है क्योंकि उसे देश में चुनाव कराने हैं। क्रिकेट बोर्ड भी मजबूर है क्योंकि उसने इसके क्रियान्वयन पर हजारों करोड़ का भारी भरकम निवेश कर दिया है इसलिए आयोजन की तारीखों को आगे बढ़ाने की कोई गुंजाइश नहीं है।

इस आयोजन के भारत में न होने से सुरक्षा के नाम पर खेल आयोजनों को विदेश में कराने की गलत परंपरा भी पड़ सकती है। इसके बाद क्या यह संभव नहीं है कि विदेशी आयोजक राष्ट्रमंडलीय खेलों और क्रिकेट के विश्व कप के आयोजन को विदेश में ही कराने का सुझाव दें?

मंदी के दौर में इस आयोजन से बाजार में हजारों करोड़ रुपयों के आने से सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था में थोड़ी जान आ जाती पर अब ऐसा नहीं हो पाएगा। जिन लोगों को आयोजन से सीधा रोजगार मिल सकता था उन्हें अब यह अवसर नहीं मिलेगा। खुद भारतीय क्रिकेट भी आर्थिक नुकसान से बच नहीं पाएगा।

हालाँक‍ि बोर्ड कह सकता है कि आयोजन रद्‍द होने से उसे जो नुकसान उठाना पड़ता, उससे वह बच जाएगा लेकिन फ्रेंचाइजी मालिक, मीडिया पार्टनर्स, टीम प्रायोजकों और वेन्यू प्रायोजकों का क्या होगा? क्या ये लोग भी संभावित नुकसान से पूरी तरह बच पाएँगे? यह कहना गलत न होगा कि आईपीएल का सारा तमाशा बाजार पर टिका है और अगर भारत का बाजार ही इस तमाशे के लाभ से वंचित रहता है तो इससे किसको लाभ होगा?

इस आयोजन का विदेशों में कराया जाना एक राजनीतिक मुद्‍दा भी बनेगा। भाजपा के नेताओं ने सरकार की सुरक्षा देने में अक्षमता को लेकर कोसा है वहीं सरकार को अपने बचाव में भी तर्क खोजने होंगे और खेलप्रेमियों को स्पष्टीकरण देना होगा कि सरकारी फैसले में कहीं कोई राजनीति नहीं है और चुनावों में सुरक्षा सुनिश्चित करना उसकी सबसे पहली जिम्मेदारी है।

बोर्ड इसे विदेशों में कराने की तैयारी तो कर रहा है, लेकिन क्या इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका में यह आयोजन बिना किसी मुश्किल या समस्या के पूरा हो जाएगा? विदित हो कि ऑस्ट्रेलिया की टीम अभी दक्षिण अफ्रीका में है और उसे 17 अप्रैल को जोहान्सबर्ग में अपना आखिरी वनडे खेलना है, ऐसे में क्या स्थानीय सरकार आईपीएल को 10 अप्रैल से शुरू कराने के लिए तैयार होगी?

इसी तरह इंग्लैंड का काउंटी सत्र 9 अप्रैल से शुरू हो रहा है। लॉर्ड्स के मैदान पर 9 अप्रैल को एमसीसी और डरहम के बीच मैच होना है, ऐसे में क्या लॉर्ड्स के मैदान पर आईपीएल के किसी मैच का उद्‍घाटन संभव हो सकेगा?

यदि इन देशों में आयोजन में समस्याएँ आती हैं तो क्या बीसीसीआई टूर्नामेंट का आयोजन न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया में कराने के बारे में सोचेगा? यदि इन देशों में आयोजन संभव नहीं हो पाता है तो क्या सुरक्षा को दरकिनार करते हुए आयोजन पाकिस्तान में कराया जाएगा?

टूर्नामेंट को बीमा पॉलिसी कवर देने वाली कंपनी ओरिएंटल इंश्योरेंस का कहना है‍ कि अब उसे इस मामले पर नए सिरे से बातचीत करनी पड़ेगी। कंपनी के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक एम. रामदास का कहना है कि हमें पुनर्बीमा कंपनियों से बात करनी होगी। बीमा कंपनियाँ जोखिम बाँटने के लिए पु‍नर्बीमा कंपनियों से समझौता करती हैं।

ओरिएंटल इंश्योरेंस 500 करोड़ रुपए के प्रीमियम पर बीमा संरक्षण देने वाली थी लेकिन अब यह कवर कितने का होगा, इस बारे में कोई नहीं जानता। आयोजन का बीमा ओरिएंटल इंश्योरेंस ही करती है तो इसके साथ पुनर्बीमा कंपनियाँ कौन होंगी? इस बारे में कोई अन‍ुमान भी नहीं लगाया जा सकता है।

आईपीएल आयोजन के विदेश में होने से देश के पर्यटन और होटल उद्योग को भी निराशा होगी। इस आयोजन के 59 मैच 45 दिनों के दौरान 12 शहरों में आयोजित होने थे। मैच देखने के लिए विदेशी नहीं तो देशी पर्यटक और खेलप्रेमी तो पहुँचते ही।

हर मैच के दौरान सैकड़ों लोगों का काफिला होटलों में आता, हजारों लोग एक शहर से दूसरे शहर जाते लेकिन अब सब कुछ विदेश में होगा। मैचों के भारत में टीवी पर दिखाए जाने से ही होटल और पर्यटन उद्योग का भला नहीं हो जाएगा।

इसके अलावा सरकार को पिछले आयोजन से 91 करोड़ की राशि टैक्स में मिली थी लेकिन इस बार सरकार के खजाने में किसी तरह का टैक्स नहीं जा पाएगा। पिछली बार जिन फ्रेंचाइजी मालिकों को नुकसान हुआ था उन्हें इस बार लाभ कमाने की उम्मीद रही होगी लेकिन उनकी यह उम्मीद धूल में मिल जाएगी।

क्रिकेट के नए और होनहार खिलाड़ियों को उम्मीद होगी कि वे इस बार के आयोजन में अपने जौहर दिखा सकेंगे लेकिन ऐसे नवोदित खिलाड़ियों को भी निराशा हाथ लगेगी। इस तरह के आयोजन से छोटे-छोटे कस्बों और गाँवों में भी क्रिकेट का बुखार जोर पकड़ता और खेल का देश में बुनियादी ढाँचा बेहतर होने की संभावनाएँ जागतीं लेकिन विदेश में आयोजन से यह सारा लाभ देश को नहीं हो पाएगा। बेहतर होता अगर सरकार और बीसीसीआई कोई मध्यमार्ग निकालने की कोशिश करते।

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