इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) ट्वेंटी-20 क्रिकेट टूर्नामेंट में खेलने के लिए क्रिकेटरों को जहाँ करोड़ों रुपए दिए जा रहे हैं वहीं खिलाड़ियों के लिए चमकदार कपड़े और खेल साजोसामान बनाने वाले लाखों कारीगर गरीबी और जलालत भरी जिंदगी जीने को मजबूर हैं।
इन कारीगरों की खस्ता हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारत में खेल सामान बनाने के प्रमुख केंद्रों में से एक पंजाब के जालंधर में फुटबॉल बनाने के काम में लगे कारीगरों को अर्द्धकुशल और अकुशल मजदूरों के लिए निर्धारित न्यूनतम पारिश्रमिक 2250 से भी कई कम वेतन दिया जा रहा है।
इन कारीगरों को सभी मूलभूत अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है। इतना ही नहीं इस पूरी प्रकिया में श्रम और सामाजिक सुरक्षा कानूनों की जमकर धज्जियाँ उड़ाई जा रही है।
इन कारीगरों की दुर्दशा की ओर सरकार और जनता का ध्यान आकर्षित करने तथा उनके शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए कुछ स्वयंसेवी और मजदूर संगठन मिलकर 'फेयर प्ले कैम्पेन' चला रहे हैं।
हिन्द मजूदर सभा (एचएमएस), यूटीयूसी, फेडीना, सेव और शिक्षा एवं संचार केन्द्र (सीईसी) ने इस संबंध में सरकार और भारतीय ओलिंपिक संघ (आईओए) को एक प्रतिवेदन सौंपा है।
एचएमएस के राष्ट्रीय सचिव आरए मित्तल नेबताया कि खेल मंत्रालय और आईओए खेल साजोसामान बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों से काफी कपड़ों और खेल सामान की खरीदारी करती है। इसलिए सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस उद्योग में लगे कारीगरों को न्यूनतम निर्धारित वेतन, बेहतर सेवा-शर्तें, उचित माहौल, सामाजिक सुरक्षा और संगठित होने का अधिकार मिले।
उन्होंने कहा कि खेल सामान बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अपना अधिकतर साजोसामान विकासशील देशों में बनवाती हैं। यह पूरा कारोबार असंगठित क्षेत्र में है इसलिए इस काम में कितने लोग लगे हैं इसका सटीक पता लगाना मुश्किल है। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ इसी का फायदा उठाकर जमकर मुनाफा कमा रही हैं और कारीगरों को उनके न्यूनतम अधिकारों से भी वंचित रखा जा रहा है।
मित्तल ने कहा कि खेल साजोसामान बनाने वाले कारीगरों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों और बिचौलियों के चंगुल से बचाने के लिए सरकार को त्वरित कार्रवाई करते हुए आवश्यक कदम उठाने चाहिए।