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डीआरएस का फायदा उठा चुके हैं तेंडुलकर

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हमें फॉलो करें डीआरएस सचिन तेंडुलकर टेस्ट सिरीज
नई दिल्ली , सोमवार, 20 जून 2011 (14:57 IST)
अंपायर निर्णय समीक्षा प्रणाली यानी यूडीआरएस भले ही भारतीयों को रास नहीं आती हो लेकिन सचिन तेंडुलकर उन चंद भारतीय खिलाड़ियों में शामिल हैं जो इसका फायदा उठा चुके हैं। शायद यही वजह है कि हाल में उन्होंने डीआरएस के पक्ष में बयान दिया जिससे इस तकनीक को लेकर फिर से बहस छिड़ गई।

तेंडुलकर ने कहा, ‘मैं डीआरएस के खिलाफ नहीं हूं लेकिन मुझे लगता है कि स्निकोमीटर और हॉट स्पॉट तकनीक के साथ इसे और प्रभावी बनाया जा सकता है। इससे नतीजे और सटीक आएंगे।’ भारत पहला देश था जिसे टेस्ट क्रिकेट में सबसे पहले डीआरएस से रूबरू होना पड़ा था लेकिन इसके बाद उसने हमेशा इसका विरोध किया। हाल में संपन्न हुए एकदिवसीय विश्व कप में इस तकनीक को अपनाया गया और तब पाकिस्तान के खिलाफ मोहाली में खेले गये सेमीफाइनल में यह प्रणाली तेंडुलकर के काम आई थी।

इस बहुचर्चित मैच में तेंडुलकर जब 23 रन पर खेल रहे थे तब ऑफ स्पिनर सईद अजमल की गेंद पर अंपायर इयान गाउल्ड ने उन्हें एलबीडब्ल्यू आउट दे दिया था। तेंडुलकर ने डीआरएस यानी रेफरल का सहारा लिया और टीवी अंपायर बिली बोडेन ने पाया कि गेंद लेग स्टंप को छोड़ रही थी।

इस स्टार बल्लेबाज ने मैच में 85 रन की जोरदार पारी खेली जिसके दम पर वह मैन ऑफ द मैच बने। भारत ने मैच 29 रन से जीतकर विश्व कप में पाकिस्तान पर अपना अजेय अभियान बरकरार रखा था। इस मैच में वीरेंद्र सहवाग और कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने भी डीआरएस का सहारा लिया लेकिन उन्हें इसका फायदा नहीं मिला था। संयोग से धोनी इस प्रणाली के धुर विरोधी हैं तो सहवाग इसके पक्ष में बोल चुके हैं।

डीआरएस के मामले में भारत की असफलता पर तब धोनी ने टिप्पणी की थी कि कई अवसरों पर तो टीम केवल खपाने के लिए इसका उपयोग करती है। विश्वकप में गेंदबाजी या बल्लेबाजी करने वाली टीम को रेफरल के दो-दो मौके मिलते थे। धोनी ने कहा था, ‘साफ शब्दों में कहूं तो हमने पारी के अंतिम क्षणों में इसलिए भी डीआरएस लिया कि उसे ड्रेसिंग रूम में अपने साथ ले जाने से क्या फायदा।’

इस प्रणाली को टेस्ट क्रिकेट में पहली बार भारत और श्रीलंका के बीच 2008 में खेली गई श्रृंखला में लागू किया गया था। तीन टेस्ट मैचों की इस श्रृंखला में रेफरल के 29 फैसले भारत के खिलाफ गए थे। श्रीलंका के तत्कालीन कप्तान महेला जयवर्धने ने इसका जमकर उपयोग किया था जिसके कारण उन्हें ‘रेफरल किंग’ तक कहा जाने लगा था।

तब एसएससी कोलंबो में खेले गए पहले टेस्ट मैच में नौ बार रेफरल का सहारा लिया गया जिसमें सात फैसले भारत के खिलाफ गए थे। श्रीलंका की पहली पारी में तिलकरत्ने दिलशान जब केवल एक रन पर थे तो जहीर खान की गेंद पर अंपायर ने उन्हें विकेट के पीछे कैच आउट दे दिया था लेकिन वह टेस्ट क्रिकेट में रेफरल के जरिये जीवनदान पाने वाले दुनिया के पहले बल्लेबाज बन गए और इसका फायदा उठाकर नाबाद 125 रन बनाने में सफल रहे थे।

गाले में खेले गए दूसरे मैच में आठ फैसले भारत के जबकि इतने ही श्रीलंका के खिलाफ गए थे। भारतीयों पर रेफरल का नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा और इसने टीम की जीत में अहम भूमिका निभाई लेकिन पीएसएस कोलंबो में खेले गए तीसरे मैच में रेफरल के 14 फैसलों पर भारत को मुंह की खानी पड़ी जबकि केवल छह बार ही इसके फैसले श्रीलंका के अनुकूल नहीं रहे। भारत इस मैच में हारकर श्रृंखला गंवा बैठा था।

तत्कालीन भारतीय कप्तान अनिल कुंबले ने इस श्रृंखला के बाद कहा, ‘इसके कुछ तकनीकी पहलुओं का समाधान निकालने के बाद ही इसे लागू किया जाना चाहिए। इसे एकदिवसीय प्रारूप में भी आजमाना चाहिए। इसके बाद ही यह अंपायरों और खिलाड़ियों के लिए मददगार होगी।’

भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने इसके बाद प्रत्येक टेस्ट श्रृंखला में डीआरएस का विरोध किया और आईसीसी ने उसकी बात को पूरा सम्मान दिया। अब वेस्टइंडीज के खिलाफ तीन टेस्ट मैचों की श्रृंखला में भी इसे लागू नहीं किया जाएगा। भारतीय टीम जब इंग्लैंड दौरे पर जाएगी तो तब भी यह डीआरएस का उपयोग नहीं किया जाएगा। (भाषा)

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