तेज गेंदबाजों की नई पौध सुखद अहसास : देवाशीष निलोसे
इन दिनों भारतीय टीम में तेज गेंदबाजों की नई पौध को विकसित होते देखना, क्रिकेट प्रेमियों के लिए सुखद अहसास है। यदि इन युवा प्रतिभाशाली गेंदबाजों को सही दिशा एवं दशा दी गई तो ये भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाइयां दे सकते हैं, शीर्ष पर पहुंचा सकते हैं, यह अहसास ही भारतीय क्रिकेट एवं क्रिकेट प्रेमियों के लिए सुखद है और क्यों न हो, क्रिकेट उनके लिए एक जुनून है एवं खिलाड़ी सितारे।
कोई भी खेल हो, उसका महत्वपूर्ण पहलू है कि नैसर्गिक प्रतिभाओं को सही समय पर उनका माकूल मुकाम दे सके। तभी हम उन प्रतिभाओं के साथ न्याय कर पाएंगे। यही नहीं, वे भी अपने आप समय के साथ परिस्थितियों से जूझते हुए परिपक्व हो खुद भी अपने लिए मुकाम हासिल कर देश एवं खेल प्रेमियों की भावनाओं का सम्मान कर पाएंगे।चयन समिति का सकारात्मक कदम- भुवनेश कुमार, शमी अहमद ने जो इन श्रृंखलाओं (इंग्लैंड एवं पाकिस्तान) में प्रदर्शन किया है, वह सराहनीय ही नहीं, वरन उत्साहवर्धक भी है। यह अहसास भी दिलाता है कि अगर ऐसे ही हम इन युवाओं को सही समय पर मौका दें तो वे ऐसी मिसाल बन सकते हैं। इन दोनों युवा गेंदबाजों के शानदार प्रदर्शन की वजह से ही शायद ईशांत शर्मा की गेंदबाजी की धार में पैनापन आया हो और यही अशोक डिंडा को भी अच्छे प्रदर्शन के लिए प्रेरित करेगा। संदीप पाटिल के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय चयन समिति ने यह एक सकारात्मक एवं साहसिक कदम उठाया, जो वाकई सराहनीय है। यह कदम निश्चित तौर पर अन्य युवा प्रतिभाओं में नई ऊर्जा, उमंग प्रदान करेगा।गेंदबाजों पर न पड़े बोझ- तेज गेंदबाजों की जिस परंपरा में कपिल देव ने जान डाली थी और जवागल श्रीनाथ एवं जहीर खान ने उसे आगे बढ़ाया, अब उसे युवा और आगे ले जाएंगे। हमें यह भी देखना होगा, यदि इन युवा गेंदबाजों को लंबे तक भारतीय क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन करते देखना है तो इन्हें हमें व्यवस्थित रूप से मौका देते रहना होगा। उन पर अत्यधिक शारीरिक एवं मानसिक बोझ न रहे, इस ओर भी गंभीरता से विचार करना होगा। यह एक आवश्यक पहलू है। वरुण आरोन, एस श्रीसंथ एवं उदीयमान और इस नई पौध के सबसे प्रतिभाशाली तेज गेंदबाज उमेश यादव अपनी शारीरिक तकलीफों से जूझ रहे हैं।बीसीसीआई की सराहनीय पहल- भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने जो कदम उठाया है, वह इन युवा गेंदबाजों के उत्साहवर्धन के लिए प्रशंसनीय प्रयास है। घरेलू विकेटों को तेज एवं जीवंत बनाने की जो रूपरेखा की है, वह निश्चित तौर पर आने वाले समय में अच्छे परिणाम देगी। नए तेज गेंदबाज ही तैयार नहीं होंगे वरन बल्लेबाजों को भी विदेशी दौरों एवं विकेटों पर असहज महसूस नहीं होगा। रणजी ट्रॉफी मैचों के लिए विकेटों पर 4 mm घास रखना, सरफेस का हार्ड होना और शुरुआती नमी होना, विकेटों को कवर करने के लिए उपयुक्त संसाधन रखना तथा सबसे प्रमुख ईश्वर पाण्डे, मोहित शर्मा जैसे युवा एवं प्रतिभाशाली तेज गेंदबाजों को भारतीय टीम के साथ प्रेक्टिस का मौका देना, उनके उत्साहवर्धन की सराहनीय पहल है। जीवंत विकेट की जरूरत- विकेटों को जीवंत रखने का सबसे सफल प्रयोग इंदौर स्थित होलकर स्टेडियम का विकेट है। आज मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि इंदौर के विकेट देश के सबसे अच्छे एवं तेज विकेटों में से है। जहीर खान जो मुंबई की ओर से रणजी मैच इंदौर में खेले थे, उनका भी यही सोचना है जो उन्होंने अपने इंदौर प्रवास के दौरान क्यूरेटर समंदर सिंह चौहान से शेयर किया था। क्यूरेटर चौहान बधाई के पात्र हैं। ज्ञात रहे कि यह स्टेडियम बोर्ड के वर्तमान सचिव की कल्पना का मूर्तरूप है।बीसीसीआई की यह सोच एवं दृष्टि दर्शाती है कि इस विषय में वे सकारात्मक रूप से संजीदा हैं। खासकर बोर्ड सचिव को साधुवाद, एक संजीदा एवं जीवट खिलाड़ी ही इस दृष्टिकोण को अपने जेहन में ला सकता है एवं उसका प्रभावात्मक क्रियान्वयन भी कर सकता है, क्योंकि क्रियान्वयन ही सबसे महत्वपूर्ण है।