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दुर्भाग्यशाली हैं वीवीएस लक्ष्मण

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नई दिल्ली (वार्ता) , रविवार, 3 जून 2007 (08:52 IST)
उन्हें वैरी-वैरी स्पेशल लक्ष्मण कहा जाता है, लेकिन आज भारतीय क्रिकेट में उनसे ज्यादा दुर्भाग्यशाली क्रिकेटर कोई और नहीं है।

भारतीय वन-डे टीम में उनका स्थान पहले ही अनिश्चित हो चुका था और अब उनके लिए टेस्ट टीम में स्थान पाने की भी कोई गांरटी नहीं है। बांग्लादेश के खिलाफ दोनों टेस्टों में उन्हें शामिल नहीं किया गया।

हालाँकि पूर्व क्रिकेटर और विशेषज्ञ कहते रह गए कि लक्ष्मण को टेस्ट टीम से बाहर रखना एक बड़ी गलती है, लेकिन टीम प्रबंधन ने शुक्रवार से ढाका में शुरू हुए दूसरे और आखिरी टेस्ट में उन पर फिर भरोसा नहीं जताया।

80 टेस्टों में 42.41 के औसत तथा 10 शतकों और 27 अर्धशतकों की बदौलत 4878 रन बना चुके 32 वर्षीय लक्ष्मण के साथ इस तरह की नाइन्साफी का यह कोई पहला मौका नहीं है। वर्ष 2003 में दक्षिण अफ्रीका में हुए विश्व कप से पहले भारत में न्यूजीलैंड के दौरे में टेस्ट और एकदिवसीय दोनों श्रृंखलाएँ बुरी तरह गँवाई थीं, लेकिन जब विश्व कप के लिए टीम चुनी गई तो एकमात्र बलि का बकरा लक्ष्मण बनाए गए।

न्यूजीलैंड में पूरी भारतीय टीम का प्रदर्शन खराब रहा था मगर उस समय टीम से बाहर किए गए केवल वैरी-वैरी स्पेशल लक्ष्मण उस समय विश्व कप टीम से बाहर किए जाने की निराशा को लक्ष्मण आज तक याद करते हैं कि किस तरह उन्हें विश्व कप खेलने से वंचित कर दिया गया था।

गत वर्ष नवंबर दिसंबर में जब दक्षिण अफ्रीका के दौरे में एकदिवसीय सिरीज में भारतीय बल्लेबाजी ढेर हो रही थी तो लक्ष्मण को भारतीय बल्लेबाजी को मजबूत करने के लिए दक्षिण अफ्रीका भेजा गया था। उन्हें उसके बाद टेस्ट टीम का उपकप्तान भी बना दिया गया था, लेकिन इस वर्ष मार्च-अप्रैल में वेस्टइंडीज मे हुए विश्वकप के लिए भारतीय टीम का चयन हुआ तो लक्ष्मण को एक बार फिर निराशा हाथ लगी।

बांग्लादेश दौरे के लिए लक्ष्मण को वन-डे टीम में तो जगह मिलनी ही नहीं थी, लेकिन उनसे टेस्ट टीम की उपकप्तानी छीन ली गई। चयनकर्ताओं ने पहले तो किसी को टेस्ट टीम का उपकप्तान नहीं बनाया, लेकिन सिरीज के दौरान सचिन तेंडुलकर को उपकप्तान जरूर नियुक्त कर दिया।

लक्ष्मण का दुर्भाग्य का यहीं अंत नहीं हुआ। पहले टेस्ट में उनके मुकाबले महेन्द्रसिंह धोनी को प्राथमिकता दे दी गई, जबकि दिनेश कार्तिक के रूप में पहले ही टीम में एक सक्षम विकेटकीपर मौजूद था। कार्तिक को टीम में बतौर ओपनर रखा गया, जबकि विकेट कीपिंग की जिम्मेदारी धोनी ने संभाली। कप्तान राहुल द्रविड़ को टीम में पाँच गेंदबाज रखने थे इसलिए बलि का बकरा लक्ष्मण बना दिए गए।

पहला टेस्ट ड्रॉ रहने के बाद उम्मीद थी कि लक्ष्मण दूसरे टेस्ट में लौटेंगे, लेकिन दूसरे टेस्ट में भी यही स्थिति रही। लक्ष्मण के साथ हमेशा यही समस्या रही है कि अत्यन्त प्रतिभाशाली होने के बावजूद चनकर्त्ताओं और टीम प्रबंधन के लिए वह हमेशा आसान टारगेट रहे हैं क्योंकि सौरव गांगुली को टीम से बाहर किए जाने पर पूरे देश में विरोध की लहर उठती है, लेकिन लक्ष्मण को बाहर रखने पर कोई चूँ तक नहीं करता, जबकि यह वह बल्लेबाज हैं जिनसे ऑस्ट्रेलियाई भी खौफ खाते हैं।

मार्च 2001 में कोलकाता के ईडन गार्डन में उनकी ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 281 रन की जादुई पारी को कौन भूल सकता है। गत वर्ष उन्होंने वेस्टइंडीज के खिलाफ सेंट किट्स में मैच बचाने वाला शतक बनाया था। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ जोहानसबर्ग टेस्ट की ऐतिहासिक जीत में उन्होंने 28 और 73 रन की पारियाँ खेली थीं।

लक्ष्मण अपनी तमाम प्रतिभा के बावजूद सचिन, सौरव या द्रविड़ जैसे हाई प्रोफाइल क्रिकेटर नहीं रहे हैं और यही कारण है कि वह बार-बार नाइंसाफी का शिकार होते रहे हैं।

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