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नहीं बदली है धोनी की तकनीक

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हमें फॉलो करें भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी डीएवी जवाहर विद्या मंदिर स्कूल कोच केशव रंजन बनर्जी
नई दिल्ली (भाषा) , शुक्रवार, 30 अक्टूबर 2009 (01:35 IST)
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FILE
भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को फुटबॉल से निकालकर डीएवी जवाहर विद्या मंदिर स्कूल की टीम में क्रिकेट विकेटकीपर की भूमिका में लाने वाले कोच केशव रंजन बनर्जी ने कहा कि माही कभी भी अपनी तकनीक और खेल के पहलूओं पर बात नहीं करते और उनकी तकनीक इतने साल में भी जस की तस है।

बनर्जी ने कहा कि जो भी कोई दावा करता है कि उसने धोनी को बल्लेबाजी या विकेटकीपिंग की कला सीखाने में मदद की है, वह ईमानदार नहीं है। अगर धोनी के साथ ऐसा कुछ हुआ होता तो यह साफ दिखाई देता, लेकिन एक या दो शॉट को छोड़ दें तो धोनी की तकनीक इतने सालों में एक जैसी ही रही है।

बनर्जी का कहना है कि उन्होंने भी कभी धोनी के तकनीकी पहलू पर काम नहीं किया बल्कि उन्हें रास्ता दिखाया और प्रेरित किया। उन्होंने क्रिकेट कोच नीलू मुखर्जीं से चर्चा के बाद धोनी को विकेटकीपिंग की जिम्मेदारी सौंपने का फैसला किया था।

क्रिकेट पत्रकार सी राजशेखर राव की हाल ही में विमोचित किताब ‘धोनी’ में उन्होंने कहा कि ज्यादातर लोग समझते हैं कि धोनी को विकेटकीपर बनाने के बाद वह तुरंत इसमें अच्छा करने लगा, लेकिन ऐसा नहीं है क्योंकि उनके दिमाग में फुटबॉल के गोलकीपर की तरह ही काम होता था।

बनर्जी ने कहा कि धोनी को विकेटकीपिंग में ढलने में समय लगा। उन्होंने कहा कि धोनी के लिए विकेटकीपिंग में ढलना मुश्किल था, फिर राँची के स्टेडियम में उबड़-खाबड़ सतह पर विकेटकीपिंग करना भी अतिरिक्त जिम्मेदारी थी।

बनर्जी ने कहा कि धोनी में सीखने की इच्छाशक्ति और मिलने वाले मौकों का पूरा फायदा उठाने का गुण तभी से मौजूद था, जब उन्होंने अपना क्रिकेट करियर शुरू किया था। उन्होंने कहा कि धोनी के अंदर वह जज्बा और आत्मविश्वास मौजूद था, जिससे वे मैदान पर जाकर बेहतर खेलते थे। उन्हें जितने भी मौके मिलते थे, वे उनका फायदा उठाते थे । वे 11वीं कक्षा तक अच्छे बल्लेबाज बन चुके थे। धोनी की चुनौती एक और कारण से बढ़ गई थी, क्योंकि उन्हें अपने से सीनियर खिलाड़ियों के साथ खेलना पड़ता था।

बनर्जी ने कहा कि माही जब कुछ मौके हासिल करने में असफल रहे तो वे चिंतित हो गया, लेकिन मैंने उनसे कहा कि इससे परेशान न हों। धीरे-धीरे उनके आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होने लगी और वे तेजी से सीखने लगे। तीन महीनों में वे ठीक लगने लगे। मैंने उनसे कहा कि वे अपने काम पर ध्यान केंद्रीत करे और कुछ वर्षों तक बल्लेबाजी की चिंता न करे।

उन्होंने कहा कि मैंने उनसे कहा कि सावधान रहें और चोटिल न हों। मेरी चिंता यह थी कि वे खेलना छोड़ देंगे। मुझे धोनी प्रतिभाशाली लगे और मुझे इस प्रतिभाशाली खिलाड़ी को गँवाने का डर था।

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