पाकिस्तान क्रिकेट के नए मुखिया चौधरी जाका अशरफ अपने राष्ट्रपति मित्र आसिफ अली जरदारी को मना करने की स्थिति में नहीं थे कि वे अध्यक्ष पद का कांटों का ताज नहीं पहनेंगे। पाकिस्तान के पेटारो कॉलेज में जरदारी और अशरफ ने साथ-साथ पढ़ाई की और हॉस्टल के एक ही कमरे में इन दोनों ने भविष्य के कई सुनहरे ख्बाब भी देखे।
जरदारी को राजनीति रास आई तो अशरफ ने बैंकिंग क्षेत्र में ऊंचे मुकाम हासिल किए। जब दोस्ती का तानाबाना कॉलेज के दिनों से ही प्रगाढ़ रहा हो ऐसे वक्त में भला अशरफ की क्या हैसियत थी कि वे राष्ट्रपति दोस्त को इनकार कर सकें?
कहा जा रहा है कि राष्ट्रपति की तरफ से दबाव के आने से ही निजी बैंक 'जराई तारक्यिती बैंक लिमिटेड' (जेडबीटीएल) के प्रमुख चौधरी जाका अशरफ ने बारूद के ढेर पर खड़े पाकिस्तानी क्रिकेट का चीफ बनना स्वीकार कर लिया। इसकी वजह यह है कि पाकिस्तान में आज भी क्रिकेट का सुप्रीमो राष्ट्रपति ही रहता है, लिहाजा अशरफ पर ऐसा कोई दबाव नहीं होगा, जिसके कारण नीतिगत फैसले लेने में उन्हें परेशानी होगी।
अभी अशरफ के सामने दो बड़ी चुनौतियां हैं। लंदन में स्पॉट फिक्सिंग मामले की सुनवाई में इस फिक्सिंग के केन्द्र बिन्दु मजहर माजिद और अंडर कवर पत्रकार मजहर महमूद की बातचीत की रिकॉर्डिंग के नित नए खुलासे से निपटना और सबसे पहले भारत समेत अन्य देशों से क्रिकेट रिश्ते सुधारने की पहल करने का एजेंडा प्रमुख रहने वाला है क्योंकि इसी से वह पाकिस्तानी क्रिकेट की माली हालात सुधार सकते हैं।
अशरफ पहली चुनौती से तो उबर जाएंगे क्योंकि कोई भी देश या नामी खिलाड़ी यह कभी नहीं मानेगा कि उसका नाता मैच फिक्सिंग से रहा है। जहां तक दूसरे देशों से रिश्ते सुधारने की बात है तो उसमें उन्हें बहुत ज्यादा सफलता इसलिए नहीं मिलेगी क्योंकि पाकिस्तान के बद से बदतर होते जा रहे हालात में कोई भी देश अपने क्रिकेटरों को उसके देश में भेजने की जोखिम नहीं उठाएगा। ले-देकर तटस्थ स्थलों पर क्रिकेट खेलने की बेबसी पाकिस्तान के सामने रहेगी और उसे ये बेबसी भी सहना होगी।.
चूंकि अशरफ सत्ताधारी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की कार्यकारी समिति के वरिष्ठ सदस्य हैं और उन्होंने काफी सफल प्रशासक माना जाता है, इसीलिए राष्ट्रपति को भरोसा है कि वे अपनी कार्यशैली से न केवल पाकिस्तान क्रिकेट की अंदरुनी राजनीति को दुरुस्त करेंगे बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की छवि को एक फिर उजले रूप में स्थापित करेंगे।
यहां याद दिलाना जरूरी है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की पहल पर ही भारतीय क्रिकेट टीम ने 2004 में पाकिस्तान का दौरा किया था ताकि दोनों देशों के बीच सोहाद्र का वातावरण मजबूत हो सके। तब पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड दिवालिया होने के कगार पर था और भारत ही ऐसा देश था जिसने न केवल उसकी कंगाली दूर की बल्कि उसे मालामाल भी कर दिया।
लेकिन तब के हालात और अब के हालात में जमीन आसमान का फर्क आ गया है। राजनीतिज्ञों की पनाह में आतंकी शिविर चल रहे हैं और कोई भी देश नहीं चाहेगा कि वह खून की पिच पर जाकर खेल खेले। आप ये भी तय मानिए कि पाकिस्तान की क्रिकेट हालत भारत के अलावा अन्य कोई देश सुधार ही नहीं सकता।
पाकिस्तान ने दूर जाकर ऑस्ट्रेलिया और श्रीलंका के क्रिकेट सीरिज खेली लेकिन वह कोई ज्यादा चर्चित नहीं रही। क्रिकेट प्रेमियों भीतर सिर्फ और सिर्फ भारत और पाकिस्तान की टक्कर ही रोमांच भरने की कूवत रखती है, इसकी जगह और कोई अन्य देश ले ही नहीं सकता।