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भारत और पाक की जीत में हैं कई समानताएँ

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हमें फॉलो करें भारत पाकिस्तान ट्वेंटी20 विश्व कप टूर्नामेंट अंडरडॉग
भाषा (नई दिल्ली) , सोमवार, 22 जून 2009 (13:07 IST)
पहले भारत और अब पाकिस्तान। यह दिलचस्प संयोग है कि अब तक खेले गए दोनों ट्‍वेंटी-20 विश्व कप में जिन दोनों टीमों को टूर्नामेंट के शुरू में नकार दिया गया या अंडरडॉग माना गया वही टीमें तमाम संभावनाओं और क्रिकेट पंडितों को झुठलाकर चैंपियन बनीं।

पहले सितंबर 2007 की बात। कभी भारतीय क्रिकेट बोर्ड को क्रिकेट का यह छोटा प्रारूप पसंद नहीं था और जब महेंद्रसिंह धोनी को पहली बार कमान सौंपकर टीम को इंग्लैंड के व्यस्त कार्यक्रम से दक्षिण अफ्रीका भेजा गया तो किसी को विश्वास नहीं था कि टीम चैंपियन बनेगी लेकिन भारत ने फाइनल में पाकिस्तान को पाँच रनों से हराकर ट्‍वेंटी-20 का पहला विश्व कप जीता।

और अब जून 2009। पाकिस्तानी टीम अपने देश में आतंकवाद के कारण पिछले दो साल से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से लगभग महरूम रही थी और उसका कोई भी खिलाड़ी इस साल इंडियन प्रीमियर लीग में नहीं खेला था। ऐसे में कोई भी यूनुस खान की टीम पर दाँव लगाने को तैयार नहीं था, लेकिन कम अभ्यास के बावजूद पाकिस्तान ने फाइनल में श्रीलंका को आठ विकेट से हराकर इतिहास रच दिया।

मतलब साफ है कि जब उपमहाद्वीप की ये टीमें चैंपियन बनीं तो उनके लिए अंडरडॉग होना फायदेमंद रहा, क्योंकि इससे टीम पर से दबाव हट गया।

जरा 2007 में चैंपियन बनने के बाद धोनी के बयान पर गौर करिए। उन्होंने कहा था कि अंडरडॉग होने से भी टीम को मदद मिली। हम बहुत सहज थे। हमने पहली टीम बैठक में ही इस पर चर्चा की थी। हमें प्रबल दावेदार नहीं माना गया और किसी को भरोसा नहीं था कि हम सुपर आठ या नाक आउट चरण में पहुँचेंगे लेकिन जहाँ अपेक्षाएँ कम होती हैं वहाँ प्रतिबद्धता अधिक होती है।

और अब दो साल बाद यूनुस ने भी लगभग यही बात दोहराई। पाकिस्तानी कप्तान ने कहा कि मुझे लगता है कि अंडरडॉग होने से हमें मदद मिली। इससे टीम पर से दबाव हट गया। किसी ने भी नहीं सोचा था कि हम टूर्नामेंट जीतेंगे लेकिन हमारी टीम ने अचानक ही लय हासिल कर ली।

ट्वेंटी-20 विश्व कप में अब तक की इन दोनों चैंपियन टीमों के बीच केवल इतनी ही समानता नहीं है बल्कि खिताब तक की राह में भी इनमें कुछ समानताएँ नजर आती हैं। मसलन दोनों टीमों की पहले चरण और सुपर आठ में खराब शुरुआत रही और दोनों ने सेमीफाइनल में खिताब के प्रबल दावेदार और फाइनल में उपमहाद्वीप की टीम को हराया।

शुरुआत 2007 में दक्षिण अफ्रीका में खेले गए पहले विश्व कप में भारतीय अभियान से करें तो धोनी की टीम का पहला मैच कमजोर स्काटलैंड के साथ था जो बारिश से धुल गया और भारत के जिस मैच में दो अंक पक्के समझे जा रहे थे, उसमें उसे एक अंक ही मिला। इसके बाद पाकिस्तान के साथ उसक मैच टाई हो गया, लेकिन बॉल आउट में भारतीय बाजी मार गए और उसे पूरे दो अंक मिले।

सुपर आठ के पहले मैच में न्यूजीलैंड ने भारत को दस रन से हरा दिया लेकिन युवराजसिंह के छह छक्कों के धमाल से उसने अगले मैच में इंग्लैंड को 18 रनों से और फिर दक्षिण अफ्रीका को 37 रनों से हराकर सेमीफाइनल में प्रवेश किया। भारतीय टीम ने अंतिम चार में खिताब के प्रबल दावेदार ऑस्ट्रेलिया को 15 रनों से हराया और फिर खिताबी मुकाबले में पाकिस्तान को मात दी।

इस बार इंग्लैंड में पाकिस्तान का अभियान भी कमोबेश ऐसा ही चला। यूनुस खान की टीम पहले मैच में इंग्लैंड से 48 रनों से हार गई, जिसके बाद उस पर दाँव लगने कम हो गए। पाकिस्तान ने हालाँकि अगले मैच में हॉलैंड को 82 रन से करारी शिकस्त देकर सुपर आठ में अपनी जगह पक्की की।

सुपर आठ में वह फिर से पहले मैच में श्रीलंका से 19 रनों से हार गया लेकिन उसने उमर गुल की कातिलाना गेंदबाजी (छह रन पर पाँच विकेट) से न्यूजीलैंड को छह विकेट और फिर आयरलैंड को 39 रनों से हराया।

सेमीफाइनल में पाकिस्तानी टीम ने उस दक्षिण अफ्रीका को सात रनों से पराजित किया जिसे खिताब का मजबूत दावेदार माना जा रहा था। इसके बाद उसने श्रीलंका से सुपर आठ की हार का बदला चुकता करके विश्व चैंपियन बनने का गौरव हासिल किया।

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