मध्यप्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के चुनाव में केंद्रीय उद्योग राज्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने प्रदेश के उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को करारी शिकस्त दी। सिंधिया गुट ने सभी पदों और प्रबंध समिति पर कब्जा जमाया।
चुनाव में सिंधिया को 142 वोट मिले जबकि विजयवर्गीय सिर्फ 72 वोट ही हासिल कर सके। ऐन वक्त पर सचिव पद के उम्मीदवार संजय जगदाले ने अपना नाम वापस ले लिया।
चुनाव में पूरी तरह सिंधिया पैनल छाया रहा। प्रमुख पदों के सभी आठों उम्मीदवारों ने एकतरफा जीत दर्ज की। कुल 244 में से 216 मतदाताओं ने अपने अधिकार का उपयोग किया। एमपीसीए के इतिहास में पहली बार चुनावों के जरिए नई कार्यकारिणी का गठन हुआ।
एमपीसीए की चुनावी एजीएम को लेकर स्टेडियम के बाहर सुबह से ही सरगर्मी थी। कई कांग्रेसी नेता स्टेडियम के बाहर मौजूद थे, लेकिन भाजपा की ओर से कोई ज्यादा माहौल देखने को नहीं मिला। इससे पूर्व प्रबंध समिति ने इंदौर के उषाराजे स्टेडियम का नाम होलकर स्टेडियम करने का फैसला लिया।
किसे कितने मत मिले : चेयरमैन डॉ. एमके भार्गव 141, अशोक जगदाले 70, अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया 142, कैलाश विजयवर्गीय 72, उपाध्यक्ष विजय नायडू 129, भगवानदास सुथार 147, श्रवण गुप्ता 119, रमेश भाटिया 59,, विजय बड़जात्या 53, अनुराग सुरेका 61, सचिव नरेंद्र मेनन 133, अमिताभ विजयवर्गीय 61, संयुक्त सचिव नरेंद्र दुआ 137, अल्पेश शाह 124, अमरदीप पठानिया 53, संजय लुणावत 40, कोषाध्यक्ष वासु गंगवानी 149, चंद्रशेखर भाटी 31।
एमपीसीए के उक्त चुनाव में सभी पराजित उम्मीदवार कैलाश विजयवर्गीय पैनल के हैं, जबकि विजयी उम्मीदवार सिंधिया गुट के। तीसरे मोर्चा करण सिंह शेखावत का था, जिसका कहीं भी अता-पता नहीं चला।
ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिक्रिया : कैलाशजी ने ही मुझे इस मैच के लिए आमंत्रित किया था। परिणाम आप सबके सामने है। मिल-जुलकर एमपीसीए के माध्यम से क्रिकेट को नई ऊँचाइयों पर ले जाएँगे।
कैलाश विजयवर्गीय की प्रतिक्रिया : यह मेरी पहली ही गेंद थी जिस पर ज्योतिरादित्य ने छक्का जड़ दिया है। मैं तो अकेला ही सिंधियाजी की पिच पर खेलने चला आया था। अगली बार मैं और ज्यादा प्रैक्टिस करके खेलूँगा।
पहली बार मिली हार : छात्र राजनीति में सक्रिय रहे कैलाश विजयवर्गीय 1983 में पार्षद चुने गए। इसके बाद वे पहली बार क्षेत्र क्रमांक 4 से विधायक बने और इस क्षेत्र को हमेशा के लिए भाजपा की झोली में डाल दिया।
इसके बाद वे अपने गृह क्षेत्र के विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 2 में आ गए और यहाँ से तीन बार लगातार विजयी रहे। विधायक रहने के दौरान ही उन्होंने वर्ष- 2000 में महापौर का चुनाव जीता। भाजपा में यह माना जाने लगा था कि विजयवर्गीय किसी भी क्षेत्र से अपना परचम लहरा सकते हैं।
जब वर्ष-2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से सीट छीनने के लिए उन्हें महू भेजा गया तो लोग उनकी हार के कयास लगाने लगे थे, लेकिन उन्होंने महू भी फतह कर दिखाया। यह उनकी पहली हार है।