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1 लाख गेंद फेंकने के बाद दीपक चाहर का सामने आया 'जादुई प्रदर्शन'

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, सोमवार, 11 नवंबर 2019 (18:36 IST)
नई दिल्ली। बांग्लादेश के खिलाफ टी-20 मैच की सीरीज 2-1 से जीतने की जितनी चर्चा टीम इंडिया की नहीं हो रही है, उससे कहीं अधिक ज्यादा दीपक चाहर सुर्खियों में हैं, क्योंकि उन्होंने 3.2 ओवर में 7 रन देकर 6 विकेट झटके जिसमें हैट्रिक भी शामिल है। उनके इस 'जादुई प्रदर्शन' के पीछे नेट अभ्यास में फेंकी गईं वे कम से कम 1 लाख गेंदें हैं जिन्होंने उन्हें एक ही रात में क्रिकेट के सिंहासन पर बैठा दिया है।
यकीनन दीपक चाहर का तीसरे और निर्णायक टी-20 अंतरराष्ट्रीय मैच में यह रिकॉर्ड प्रदर्शन काबिले तारीफ है। चाहर के पिता ने अपने बेटे की कामयाबी का खुलासा भी किया है।
 
पिता को था लंबे समय से इंतजार : दीपक के पिता लोकेंद्रसिंह चाहर भारतीय वायुसेना के सेवानिवृत्त कर्मचारी हैं। जैसे ही चाहर 7 रन देकर टी-20 अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में दुनिया के सबसे श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले गेंदबाज बने, उनकी खुशी का पारावार नहीं रहा। उन्होंने कहा कि मैं इस पल का बेसब्री से इंतजार कर रहा था।
आगरा के टर्फ से हुई थी शुरुआत : लोकेंद्रसिंह चाहर ने बताया कि दीपक ने अपनी शुरुआत आगरा के एक टर्फ विकेट से की थी। मुझे पूरा यकीन है कि मेरा बेटा जब भी कोई लम्हें को याद करेगा तो वह नागपुर में खेला गया तीसरा टी-20 मैच ही होगा, जहां उसने यह जादुई प्रदर्शन किया था।
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नेट अभ्यास में फेंकी 1 लाख गेंदें : दीपक चाहर के पिता ने बताया कि बेटे की कामयाबी का राज नेट अभ्यास ही है। इस तरह के प्रदर्शन से पहले उसने नेट पर कम से कम लाख गेंदें फेंकी होंगी। अब मुझे महसूस हो रहा है कि हम दोनों ने जिस सपने को संजोया था, वह धीरे-धीरे साकार हो रहा है।ALSO READ: टी20 में दीपक चाहर 7 रन देकर 6 विकेट लेने वाले दुनिया के पहले क्रिकेटर बने
पदार्पण मैच में 10 रन देकर 8 विकेट, यू-ट्यूब पर जलवा : दीपक ने सबसे पहले 18 साल की उम्र में सुर्खियां बटोरी थीं, जब उन्होंने अपनी बेहतरीन स्विंग गेंदबाजी से हैदराबाद के बल्लेबाजी क्रम को ध्वस्त कर दिया था। उन्होंने रणजी ट्रॉफी में पदार्पण करते हुए 10 रन देकर 8 विकेट चटकाए जिससे हैदराबाद की टीम 21 रन पर ढेर हो गई। उनका यह प्रदर्शन यू-ट्यूब के घरेलू क्रिकेट पर सबसे ज्यादा देखे जाने वाले वीडियो में शामिल है।
 
राजस्थान के लिए 40 विकेट : दीपक ने घरेलू क्रिकेट में शानदार शुरुआत करते हुए रणजी ट्रॉफी विजेता राजस्थान की ओर से 40 से अधिक विकेट चटकाए लेकिन अगले कुछ वर्षों में चोट के कारण उनकी प्रगति प्रभावित हुई।
चोटों ने किया परेशान : लोकेंद्रसिंह ने कहा कि अपने करियर के अहम चरणों में दीपक को चोटें लगीं जिससे वह परेशान रहा। चोट का समय भी बेहद महत्वपूर्ण होता है। नैसर्गिक स्विंग गेंदबाज चाहर समझ गए कि उन्हें सीमित ओवरों के क्रिकेट में मौका मिल सकता है और उस समय चीजें बदल गईं, जब कुछ साल पहले महेंद्र सिंह धोनी ने उन्हें राइजिंग पुणे सुपर जॉइंट्स टीम में देखा।
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धोनी ने बदली चाहर की किस्मत : धोनी ने चेन्नई सुपरकिंग्स की ओर से पिछले 2 सत्रों में चाहर का बेहतरीन इस्तेमाल किया जिससे यह तेज गेंदबाज राष्ट्रीय टीम में जगह बनाने के दावेदारों में शामिल हो गया। आईपीएल 2018 में 10 विकेट चटकाने के बाद चाहर ने इस साल 22 विकेट चटकाए और वे इंग्लैंड में भारत की विश्व कप टीम में स्टैंडबाई खिलाड़ियों में शामिल थे।
 
दीपक चाहर के करियर का टर्निंग पॉइंट : घरेलू क्रिकेट में चाहर को काफी खेलते हुए देखने वाले पूर्व भारतीय क्रिकेटर और कमेंटेटर दीप दासगुप्ता का मानना है कि बदलाव 2019 आईपीएल में आया। दीपक को हमेशा से पता था कि लाल गेंद को कैसे स्विंग कराया जाता है लेकिन 2018 में ड्वेन ब्रावो के नहीं होने के कारण महेंद्र सिंह धोनी ने उसे पॉवर प्ले और डेथ ओवरों में अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपी। यह टर्निंग प्वॉइंट था। दीपक ने स्विंग के अनुकूल हालात नहीं होने पर भी गेंदबाजी करना सीखा। उन्होंने बल्लेबाज से दूर यॉर्कर और धीमी गेंद फेंकना सीखा।
 
पिता को 12 साल की उम्र में दिख गई थी प्रतिभा : आगरा का रहने वाला चाहर परिवार शुरुआत में राजस्थान के श्रीगंगानगर में रहता था, जहां लोकेंद्रसिंह भारतीय वायुसेना के लिए काम करते थे। उन्होंने कहा कि जब मैंने भारतीय वायुसेना में अपनी नौकरी छोड़ी तो मुझे पता था कि मैं क्या कर रहा था। जब मैंने अपने 12 साल के बेटे को खेलते हुए देखा तो मुझे पता था कि उसमें क्षमता है। उसमें कुछ नैसर्गिक क्षमताएं थीं।
 
मेरा सपना बेटे ने पूरा किया : लोकेंद्रसिंह ने कहा कि मैं भी क्रिकेटर बनना चाहता था लेकिन मेरे पिता ने स्वीकृति नहीं दी इसलिए जब बात मेरे बेटे की आई तो मैं चाहता था कि वह अपने सपने को साकार करे, जो मेरा सपना भी था। मेरे पास कोचिंग की कोई औपचारिक डिग्री नहीं थी लेकिन मैंने दीपक का मार्गदर्शन करना सीखा।
 
घर पर ही बना डाला टर्फ विकेट : दीपक के पिता ने अपने बचाए हुए पैसों से अपने गृहनगर आगरा में एक टर्फ और एक कांक्रीट की पिच बनवाई, जहां उनका बेटा ट्रेनिंग कर सके। लोकेंद्रसिंह ने बताया कि कड़ी ट्रेनिंग के कारण वह 8वीं के बाद नियमित स्कूल नहीं जा पाया। तब दिन के 24 घंटे भी कम लगते थे। ट्रेनिंग, जिम, आराम और फिर उबरना। उसने हालांकि स्नातक तक पढ़ाई पूरी की।
 
पिता ही बने पहले कोच : औपचारिक डिग्री नहीं होने के बावजूद वे कैसे कोचिंग देते थे? इस बारे में पूछे जाने पर लोकेंद्रसिंह ने कहा कि मेरे पसंदीदा गेंदबाज मैलकम मार्शल हैं और मुझे डेल स्टेन भी पसंद हैं। मैं उनके वीडियो देखता था, आउट स्विंग करते हुए उनकी कलाई की स्थिति, कमेंटेटरों को सुनता था और इससे जो सीखता था, उसे लेकर दीपक के साथ काम करता था।
 
दीपक के पिता की अगली ख्वाहिश : दीपक 27 साल के हैं और उनके पिता का मानना है कि इस तेज गेंदबाज के पास शीर्ष अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के 6 से 7 वर्ष हैं और इस दौरान टेस्ट क्रिकेट में खेलने का मौका मिलना सोने पर सुहागा होगा। उन्होंने कहा कि अगर उसे पारंपरिक प्रारूप में खेलने का मौका मिलता है तो यह शानदार होगा।

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