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मील का पत्थर बनेगा भारतीय महिला क्रिकेट टीम का प्रदर्शन

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नई दिल्ली , सोमवार, 24 जुलाई 2017 (14:34 IST)
नई दिल्ली। शिखर तक पहुंचकर इतिहास रचने से चंद फर्लांग दूर रह गई भारतीय महिला  क्रिकेट टीम भले ही आईसीसी महिला विश्व कप नहीं जीत सकी हो लेकिन फाइनल तक के  उसके सफर ने आने वाली पीढ़ी को सपने देखने के लिए प्रेरित जरूर कर दिया है।
 
क्रिकेट के दीवाने इस देश में पुरुष क्रिकेटरों की लोकप्रियता के आगे हमेशा गुमनामी में रही  महिला क्रिकेटरों ने अपनी अलग पहचान बनाई है। विश्व कप खेलने जब मिताली राज की  अगुवाई में टीम इंग्लैंड रवाना हुई तो शायद ही किसी ने सोचा होगा कि ये लड़कियां  फाइनल तक पहुंचेंगी।
 
फाइनल में इंग्लैंड से हारकर भारत उपविजेता रहा लेकिन इस प्रदर्शन की अहमियत सिर्फ  जीत-हार के इस समीकरण तक सीमित नहीं है। सोशल और मुख्य धारा के मीडिया में हो  रही महिला क्रिकेटरों की वाहवाही भी इसके मायने बयां करने के लिए नाकाफी है। इसके  दूरगामी परिणाम आने वाले समय में देखने को मिलेंगे।
 
पहली बार महिला क्रिकेट का फाइनल इतने ज्यादा लोगों ने देखा। पिछले 1 महीने में इस  प्रदर्शन ने भारतीय खेलप्रेमियों का नजरिया ही बदल दिया। हमेशा जीत को प्रदर्शन का  पैमाना मानने वाले प्रशंसक इस हार में भी जश्न मना रहे हैं जिसके मायने हैं कि टीम के  प्रदर्शन ने कहीं न कहीं उनके दिल पर गहरी छाप छोड़ी है।
 
इंदौर की अनन्या से लेकर चंडीगढ़ की अमृता तक अब कोई अगला सचिन तेंदुलकर, महेंद्र  सिंह धोनी या विराट कोहली बनने का सपना नहीं देखेगी, क्योंकि उनके पास हरमनप्रीत  कौर, वेदा कृष्णामूर्ति, शिखा पांडे, मिताली राज और झूलन गोस्वामी जैसे क्रिकेटर हैं जिन्हें  वे अपना आदर्श बना सकती हैं।
 
हरमनप्रीत सिंह ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ शतकीय पारी में जब छक्के लगाए तो वे  मनोरंजन के लिए नहीं थे बल्कि आने वाले समय में भारतीय महिला क्रिकेट के दबदबे की  दस्तक थी। महिला क्रिकेटरों ने साबित कर दिया कि लंबे समय तक प्रशासनिक उदासीनता  झेलने के बावजूद वे सिर्फ नाम के लिए विश्व कप खेलने नहीं उतरी हैं बल्कि उनके इरादे  आसमान छूने के हैं। भारत के पास अब कई दमदार स्ट्रोक्स खेलने वाली खिलाड़ी हैं और  पिछले 4 दशक में ऐसा पहली बार देखने को मिला है।
 
इस प्रदर्शन के बाद खिलाड़ियों पर उपहारों की बौछार होना तय है और शायद लड़कियों को  खेलों में भेजने को लेकर अभिभावकों का नजरिया भी बदलेगा। महिला आईपीएल,  ऑस्ट्रेलिया की महिला बिग बैश लीग जैसे टूर्नामेंटों के बारे में सोचना अभी शायद दूर की  कौड़ी होगा। महिला क्रिकेट को लेकर बनी इस हाइप के बीच बीसीसीआई को अगले सारे  टूर्नामेंटों का प्रसारण सुनिश्चित करके इसे बनाए रखने की कोशिश करनी चाहिए।
 
मिताली ने फाइनल के बाद कहा था कि अब देश में लोगों का नजरिया महिला क्रिकेट को  लेकर बदलेगा। उम्मीद है कि अब कोई भविष्य की मिताली राज से सवाल नहीं करेगा कि  आपका पसंदीदा पुरुष क्रिकेटर कौन है? (भाषा)

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