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हरमनप्रीत कौर : हेडकांस्टेबल बनने के पड़े थे लाले, अब बन गई डीएसपी

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सीमान्त सुवीर

पंजाब सरकार ने भारत की स्टार क्रिकेटर हरमनप्रीत कौर को 1 मार्च 2018 को डीएसपी की वर्दी पहना दी। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और पुलिस महानिदेशक सुरेश अरोड़ा ने उनकी वर्दी पर 'स्टार' लगाए। जिस हरमनप्रीत ने कुछ सालों पहले तक कांस्टेबल की छोटी-सी पोस्ट हासिल करने के लिए अपनी चप्पलें तक घिस डाली थीं और पंजाब सरकार का पुलिस महकमा उन्हें दुत्कार कर भगा देता था, वही विभाग अब उन्हें 'सलाम' कर रहा है। वक्त का पहिया कैसे तकदीर बदलता है, इसे समझना है तो सबसे पहले हरमनप्रीत कौर की हैरतभरी जिंदगी के नजदीक जाना होगा...


8 मार्च 1989 में पंजाब के मोंगा में हरमंदरसिंह भुल्लर की पत्नी सतिंदर कौर ने जिस लड़की को जन्म दिया, उसका नाम रखा गया हरमनप्रीत कौर...बचपन से ही वह अपने पिता को क्रिकेट खेलते देखा करती थी, लिहाजा उसके मन में भी क्रिकेटर बनने का सपना आकार लेने लगा। हरमनप्रीत के पिता ही उनके पहले कोच बने। तंगहाली के कारण हरमंदरसिंह क्रिकेट की दुनिया में वो मुकाम हासिल नहीं कर सके, जो मुकाम उनकी बेटी ने हासिल किया।
 
शुरुआत में हरमनप्रीत लड़कों के साथ पंजाब के मोंगा में क्रिकेट खेला करती थीं। जब स्कूल पहुंची तो उसके क्रिकेट जुनून को देखकर प्रिंसिपल ने लड़कियों की क्रिकेट टीम बना डाली। बस, यही प्लेटफार्म उसके पंखों को खुले आसमान में उड़ने का अवसर प्रदान कर गया। वीरेंद्र सहवाग की वह बात उसने गांठ बांध ली थी कि 'बॉल को देखो और उस पर हिट करो'। 
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हरमनप्रीत ने अपनी जिंदगी में छोटे लक्ष्य रखे और उन्हें हासिल करती चली गई। पहले वह पंजाब से खेली और फिर 2009 में उसने भारतीय महिला क्रिकेट टीम की जर्सी पहनी। इसी साल अपने खेल के बूते वह भारत की महिला टी-20 टीम में भी शामिल की गईं, जबकि 'टेस्ट कैप' 2014 में पहनी। भारतीय महिला क्रिकेट टीम का हिस्सा बनने के बाद सबसे पहली जरूरत नौकरी की थी।
 
 
हरमनप्रीत को पुलिस की वर्दी हमेशा आकर्षित करती थी। खेल के साथ-साथ उम्र भी बढ़ती जा रही थी। जब 25 के करीब पहुंच रही थी, तब उसने पंजाब पुलिस में खेल कोटे के तहत हेडकांस्टेबल बनने के लिए कई चक्कर लगाए, लेकिन वहां से उसे दुत्कार ही मिली। नौकरी के लिए कहीं आयु सीमा पार न हो जाए, लिहाजा उसने भारतीय रेलवे में क्लर्क बनने का समझौता कर डाला। वैसे भी रेलवे में कई धुरंधर खिलाड़ी थीं, इसलिए उसका खेल भी निखरता चला गया।
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2017 का साल हरमनप्रीत कौर के साथ ही भारतीय महिला क्रिकेट की किस्मत को चमका गया। हरमनप्रीत कौर ने आईसीसी विश्व कप महिला क्रिकेट में एक पारी खेलकर (ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ नाबाद 171 रन) हर भारतीय का दिल जीत लिया, जबकि टीम इंग्लैंड के हाथों महज 9 रन से हारने के साथ ही चैंपियन बनने से चूक गई थी। 
 
भारतीय महिला क्रिकेट टीम इंग्लैंड में आयोजित आईसीसी विश्व कप में खेलने उतरी और उसने फाइनल तक कोई मैच नहीं हारा। उनकी इस कामयाबी को देश में 19 करोड़ लोगों ने देखा। भारत लौटते ही टीम का अभूतपूर्व स्वागत इसलिए हुआ, क्योंकि उन्होंने विश्व कप का फाइनल भले ही 9 रन से हारा हो, लेकिन दिल जीतने में कोई कमी नहीं रखी। यही कारण है कि प्रिंट मीडिया से लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इन राजकुमारियों की गौरव गाथा को बयान करने में अभी तक जुटा रहा।
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यहां एक बार फिर याद दिलाना जरूरी है कि जब भारतीय टीम इंग्लैंड में पिछले साल वर्ल्ड कप का फाइनल खेल रही थी, तब किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि हमारी लड़कियां यहां तक पहुंच जाएंगीं और नया इतिहास रच डालेंगीं। इंग्लैंड के खिलाफ फाइनल में बीसीसीआई का कोई पदाधिकारी नहीं पहुंचा। टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली और धोनी से लेकर गौतम गंभीर तक ने सोशल मीडिया के जरिए शुभकामनाएं भेजीं थीं और बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन ने भी शुभ संदेश भेजा, लेकिन अक्षय कुमार का मन नहीं माना और वे भारतीय लड़कियों का उत्साह बढ़ाने के लिए स्टेडियम की दर्शक दीर्घा में मौजूद रहे थे। 
 
विश्व कप में उपविजेता रहने वाली भारतीय टीम पर जमकर धनवर्षा हुई। बीसीसीआई ने 50-50 लाख रुपए, महाराष्ट्र सरकार ने अपने राज्य की खिलाड़ियों को 50-50 लाख रुपए, तेलंगाना सरकार ने कप्तान मिताली राज को 50 लाख रुपए और भारतीय रेलवे ने 13-13 लाख रुपए दिए।
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विश्वकप में खेली 15 में से 10 खिलाड़ी भारतीय रेलवे की थीं। यही नहीं भारत को फाइनल के दरवाजे तक पहुंचाने में अहम किरदार निभाने वाली खिलाड़ी को उनके शानदार प्रदर्शन के लिए वाहन निर्माता कंपनी डैटसन इंडिया ने डैटसन रेडी-गो तोहफे में दी तो ईएसपीएनक्रिकइन्फो ने वार्षिक पुरस्कारों में उन्हें महिला क्रिकेट में 'वर्ष का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन' के रूप में आंका।
 
 
असल में भारत की स्टार बल्लेबाज हरमनप्रीत कौर का सपना पंजाब पुलिस की वर्दी पहनने का था, लेकिन रेलवे की मुलाजिम होने के कारण उनका ये सपना साकार नहीं हो पा रहा था। बाद में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को दखल देना पड़ा और रेलवे ने उनके रोजगार बांड को माफ कर दिया।

अब जबकि हरमनप्रीत के सीने पर डीएसपी की वर्दी सज चुकी है लिहाजा वे न केवल पंजाब का बल्कि पूरे देश का मान बढ़ाकर बुलंदियों को छूएंगी, इसमें कोई शक नहीं है। हरभजन सिंह के बाद पंजाब पुलिस में डीएसपी बनने वाली वे दूसरी क्रिकेटर हैं।

डीएसपी बनने के बाद हरमनप्रीत कौर की मां सतिंदर कौर सबसे ज्यादा खुश हैं और वो इस खुशी वे पंजाब मोंगा शहर में ही नहीं बल्कि अपने तमाम रिश्तेदारों के साथ बांट रही हैं। उनका कहना है कि बेटियां किस तरह मां बाप का सिर ऊंचा करती हैं, यह हरमनप्रीत ने पूरी दुनिया को दिखा दिया है। उसी के कारण आज हमारी नई पहचान बनी है और में हर जनम में उस जैसी बेटी ही रब से मांगती हूं... 

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