मुंबई। भारतीय क्रिकेट बोर्ड के लोकपाल ने पूर्व टेस्ट बल्लेबाज प्रवीण आमरे और कर्नाटक के पूर्व स्पिनर रघुराम भट्ट को हितों के टकराव के दायरे में पाया है जबकि पूर्व भारतीय कप्तान दिलीप वेंगसरकर को इसी तरह के आरोपों से बरी कर दिया है।
बीसीसीआई की वेबसाइट बीसीसीआई डॉट टीवी पर उपलब्ध विस्तृत जानकारी के अनुसार बोर्ड के लोकपाल न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एपी शाह ने आईपीएल संचालन परिषद के अध्यक्ष राजीव शुक्ला को भी बरी कर दिया है जिस पर उनका ध्यान हितों के टकराव के मामले में शामिल होने की ओर दिलाया गया था।
मुंबई क्रिकेट संघ की प्रबंध समिति के सदस्य और आईपीएल टीम दिल्ली डेयरडेविल्स के कोचिंग स्टाफ आमरे के खिलाफ लोकपाल के समक्ष शिकायत दर्ज की गई थी जिसमें उन्हें संभावित हितों के टकराव में शामिल पाया गया।
लोकपाल ने आमरे की उस दलील को खारिज कर दिया कि उनके हितों के कोई टकराव नहीं थे, क्योंकि वे आईपीएल के 2015 सत्र से पहले डेयरडेविल्स के कोचिंग स्टाफ से जुड़ चुके थे और बाद में वे एमसीए में प्रबंध समिति के सदस्य बने थे और इसके बाद ही आईपीएल फ्रेंचाइजी ने इस साल उनका अनुबंध बढ़ाया।
न्यायाधीश शाह ने पाया कि इस मामले में बीसीसीआई के नियमों के अनुसार हितों के टकराव थे जिसके अनुसार एक प्रशासक (जिसमें बीसीसीआई की मान्यता प्राप्त इकाई की प्रबंध समिति के सदस्य भी शामिल हैं) या इसके निकट संबंधी को आईपीएल फ्रेंचाइजी का वेतनभोगी नहीं होना चाहिए।
उन्होंने अपने आदेश में कहा कि आमरे को प्रशासक होने के नाते आईपीएल फ्रेंचाइजी में कोचिंग स्टाफ में कोई पद नहीं लेना चाहिए था। साथ ही शाह ने बोर्ड को आमरे के खिलाफ उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया, क्योंकि आईपीएल सत्र पहले ही समाप्त हो चुका है और उन्होंने घोषित किया कि ‘आईपीएल के अगले सत्र के लिए आमरे एमसीए प्रबंध समिति और दिल्ली डेयरडेविल्स (या कोई अन्य आईपीएल टीम) के कोचिंग स्टाफ का हिस्सा बने रहना जारी नहीं रह सकते’।
लोकपाल ने 6 जुलाई के अपने आदेश में कहा कि बीसीसीआई को साथ ही आईपीएल फ्रेंचाइजी को हितों के टकराव के नियम एक (ए) (बी) को स्पष्ट करने का आदेश दिया गया है जिसमें फ्रेंचाइजी किसी प्रशासक (जिसका नियमों में वर्णन किया गया है) को अपने सहयोगी स्टाफ के तौर पर काम पर नहीं रख सकती।
पूर्व मुख्य चयनकर्ता वेंगसरकर इस समय मुंबई क्रिकेट संघ के उपाध्यक्ष और राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी के निदेशक (दोनों में मानद पद) हैं। उन पर पुणे में जूनियर क्रिकेटरों के लिए एक क्रिकेट अकादमी चलाने का आरोप था जिससे वे उसका पक्ष ले सकते थे। यह भी हितों का टकराव के दायरे में आ सकता था।
वेंगसरकर ने जवाब दिया कि एनसीए में मानद पद के तौर पर निदेशक होने के नाते बोर्ड का उनकी यात्रा और रहने का खर्चा करना सामान्य था तथा उनकी नियुक्ति को उनके भारत का पूर्व कप्तान होने के संदर्भ में भी देखा जाना चाहिए। इस 116 टेस्ट के अनुभवी खिलाड़ी ने अपने जवाब में कहा कि वे पिछले 21 साल से अकादमियां चला रहे हैं।
वेंगसरकर से एक और जवाब मिलने के बाद लोकपाल ने फैसला किया कि इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती, क्योंकि इसमें बीसीसीआई के नियमों के अनुसार हितों का कोई टकराव नहीं है।
लोकपाल ने पूर्व रणजी ट्रॉफी क्रिकेटर भट्ट के खिलाफ हितों के टकराव की शिकायत को सही ठहराया, क्योंकि वे कर्नाटक राज्य क्रिकेट संघ (केएससीए) की प्रबंध समिति के सदस्य हैं और वे अंडर-16 और अंडर-14 के अध्यक्ष-चयनकर्ता भी हैं तथा वे ब्रजेश पटेल क्रिकेट अकादमी और आईडीबीआई अकादमी में भी काम करते हैं।
भट्ट ने अपने जवाब में कहा कि उन्हें इन दोनों अकादमियों से कोई वेतन नहीं मिलता और उन्हें सिर्फ टीए और डीए मिलता है।
लोकपाल ने नियम दो (सी) की ओर इशारा करते हुए कहा कि ‘भारतीय टीम के कोचों के तौर पर या राष्ट्रीय चयनकर्ता के तौर पर नियुक्त क्रिकेटरों को अपने कार्यकाल के दौरान किसी निजी कोचिंग अकादमियों के साथ नहीं जुड़ना चाहिए’और केएससीए को आदेश दिया कि वे भट्ट को दोनों अकादमियों से तत्काल हटने को कहें।
लोकपाल ने हालांकि कहा कि केएससीए से संबंधित 6 अन्य बीके रवि, एल. प्रशांत, मंसूर अली खान, सोमशेखर सिरीगुप्पी, राजेश कामत और येरे गौड़ा के हितों के कोई टकराव नहीं है। (भाषा)