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आसान नहीं है रणजी कोचों की राह

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, बुधवार, 5 अक्टूबर 2016 (17:17 IST)
नई दिल्ली। भारतीय क्रिकेट टीम से लेकर आईपीएल टीमों तक कोचों को मोटी तनख्वाह मिलती है और उनके काम से ग्लैमर भी जुड़ा है लेकिन प्रथम श्रेणी क्रिकेट में कोचों की राह कोई फूलों की सेज नहीं है बल्कि इसमें कदम-कदम पर कांटे ही बिछे होते हैं।
रणजी टीमों के कोच अपने काम को पूरी ईमानदारी से अंजाम देते हैं लेकिन कभी उन्हें श्रेय नहीं मिल पाता। इनमें से अधिकांश को पता है कि वे शायद राष्ट्रीय टीम के कोच कभी नहीं बन सकेंगे लेकिन सच्चाई को सहर्ष स्वीकार करके वे अपने काम में जुटे रहते हैं। इसमें उन्हें राज्य संघों के अधिकारियों के उदासीन और अक्खड़ रवैए का भी सामना करना पड़ता है।
 
घरेलू क्रिकेट के सबसे सफल कोचों में से एक के. सनत कुमार के मार्गदर्शन में कर्नाटक, बड़ौदा और असम की टीमें खेल चुकी हैं। पिछले सत्र में उनके मार्गदर्शन में असम जैसी कमजोर मानी जाने वाली टीम रणजी सेमीफाइनल तक पहुंची। इसके लिए शाबासी देने की बजाय राज्य संघ के अधिकारियों ने उनके साथ बुरा सलूक किया।
 
कुमार ने कहा कि घरेलू कोच के लिए अच्छे नतीजे काफी जरूरी हैं। असम को सेमीफाइनल तक पहुंचाने के बाद मुझे दूसरे राज्यों से 3 पेशकश थी लेकिन मैंने खिलाड़ियों के कहने पर असम के साथ ही रहने का फैसला किया। 
 
उन्होंने कहा कि मैं जब अपने अनुबंध के नवीनीकरण के लिए अधिकारियों के पास गया तो मुझे लगा कि तनख्वाह नहीं भी बढ़ाएंगे तो पुरानी तनख्वाह तो देंगे लेकिन असम क्रिकेट संघ के एक अधिकारी ने कहा कि रणजी ट्रॉफी कोई पैमाना नहीं है। असल क्रिकेट वनडे और टी-20 है। आप टीम का स्तर इन दो प्रारूपों में बेहतर करने के लिए क्या कर रहे हैं? (भाषा)

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