भारतीय क्रिकेट टीम ने बांग्लादेश को हराकर श्रीलंका में आयोजित निदास ट्रॉफी जीत ली। मैच का फैसला भारतीय बल्लेबाज़ दिनेश कार्तिक ने अंतिम गेंद पर छक्का लगाकर किया। भारतीय टीम कार्तिक की पारी (8 गेंदों में नाबाद 29 रन) की बदौलत मैच जीत गई तो बात दब गई, वरना भारतीय कप्तान रोहित शर्मा ने इस मैच में एक बड़ी चूक कर दी थी।
रोहित ने अर्द्धशतक जमाया और जब वे आउट हुए तो विजय शंकर को बल्लेबाज़ी के लिए भेज दिया। यहां बैटिंग ऑर्डर में दिनेश कार्तिक की अनदेखी की गई। विजय शंकर ने इसी सीरीज़ से अपना अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट करियर शुरू किया है और कप्तान ने उन पर बहुत जल्दी एक बड़ी जिम्मेदारी डाल दी। विजय ने 19 गेंदों पर केवल 17 रन बनाए और जब टीम को उनसे तेज़ी से रन बनाने की अपेक्षा थी तो वे आउट हो गए। कार्तिक को ऊपरी क्रम में बल्लेबाज़ी के लिए न भेजने के पीछे रोहित ने अपने कारण गिनवाए।
प्रेस कान्फ्रेंस में रोहित ने कहा कि वे चाहते थे कि दिनेश कार्तिक अंतिम ओवरों में बल्लेबाजी के लिए जाएं, क्योंकि उनमें क्षमता है कि वे अंतिम ओवरों में तेज़ी से रन बना सकते हैं। रोहित ने यह भी कहा कि उन्हें मालूम था कि बांग्लादेश के गेंदबाज़ मुस्ताफिजुर रहमान अपनी स्लोवर गेंदों और ऑफ कटर का इस्तेमाल करेंगे और उन्हें हैंडल करने के लिए कोई होना चाहिए।
रोहित के ये तर्क बेतुके नहीं लगते? आखिर क्यों सिचुएशन को इतनी मुश्किल बनाई जाए कि विपक्षी टीम को वहां से जीत नज़र आने लगे। अगर रोहित को लगता था कि कार्तिक तेज़ी से रन बना सकते हैं तो उन्हें तब भेजते जब रोहित खुद आउट हुए थे। 14वें ओवर में आकर वे पहले ही मैच समाप्त कर देते। जो काम आसानी से हो सकता है, उसे कठिन बनाकर क्यों किया जाए?
रोहित के इस निर्णय ने मैच को मुश्किल बना दिया था और जिस समय कार्तिक खेलने आए, भारत को जीत के लिए 12 गेंदों में 34 रन चाहिए थे। अगर यहां से कुछ ऊंच-नीच हो जाती तो कार्तिक को कोई दोष न देता, क्योंकि जिस समय वे खेलने आए थे मैच बांग्लादेश के पक्ष में जा चुका था।
क्या होता अगर मनीष पांडे आउट ही न होते और दिनेश कार्तिक को क्रीज़ पर आने का मौका ही नहीं मिलता? फिर बिना कार्तिक का इस्तेमाल किए परिणाम भारत के खिलाफ जाता? रोहित को यह समझना चाहिए कि कार्तिक ने 8 गेंदों में 29 रन बनाकर उनकी बहुत बड़ी गलती को छुपा दिया है, वरना ऊंट तो किसी भी करवट बैठ सकता था और फिर रोहित की रणनीति की खामियां उजागर हो जातीं। 'अंत भला तो सब भला' इसीलिए जीत के बाद कप्तानी पक्ष की कोई समीक्षा नहीं होगी।