नई दिल्ली। आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी में भारत के दो शीर्ष स्पिनरों रविचंद्रन अश्विन और रवींद्र जडेजा के सुपरफ्लाप रहने के बाद एक सवाल फिर उठ खड़ा हुआ है कि वर्ष 2015 विश्वकप के बाद से भारत के सबसे सफल स्पिनर अमित मिश्रा आखिर कब तक नज़रअंदाज होते रहेंगे।
ऑफ स्पिनर अश्विन और लेफ्ट आर्म स्पिनर जडेजा का फाइनल में फ्लाप होना भारत की हार का एक बड़ा कारण रहा। ये दोनों स्पिनर फाइनल में कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाए, जिसका फायदा उठाकर पाकिस्तानी बल्लेबाजों ने 338 रन का बड़ा स्कोर बना लिया।
पूरे टूर्नामेंट में ही इन दोनों स्पिनरों का प्रदर्शन काफी खराब रहा। अश्विन का तीन मैचों में गेंदबाजी औसत 167.00 और जडेजा का गेंदबाजी औसत 62.25 रहा। इस प्रदर्शन का दोनों गेंदबाजों को आईसीसी रैंकिंग में नुकसान हुआ। जडेजा 22वें से 31वें और अश्विन संयुक्त 23वें से 30वें स्थान पर खिसक गए।
यह भी दिलचस्प है कि आईसीसी वनडे गेंदबाजी रैंकिंग में जो दो शीर्ष भारतीय हैं उनकी टीम इंडिया में कोई जगह नहीं है। लेफ्ट आर्म स्पिनर अक्षर पटेल 16वें और लेग स्पिनर मिश्रा 18वें स्थान पर हैं। एक और दिलचस्प तथ्य है कि वर्ष 2015 के एकदिवसीय विश्वकप के बाद से मिश्रा और पटेल देश के दो सर्वश्रेष्ठ स्पिनर हैं।
2015 विश्वकप के बाद से एकदिवसीय क्रिकेट में जो सबसे सफल स्पिनर रहें हैं वे लेग स्पिनर हैं। इंग्लैंड के आदिल राशिद, अफगानिस्तान के राशिद खान और दक्षिण अफ्रीका के इमरान ताहिर ने इस अवधि के दौरान 60 से ज्यादा विकेट हासिल किए हैं।
2015 विश्वकप के बाद से मिश्रा ने नौ मैचों में 22.78 के औसत से 19 विकेट , पटेल ने 17 मैचों में 34.57 के औसत से 19 विकेट, अश्विन ने 12 मैचों में 47.30 के औसत से 13 विकेट और जडेजा ने 15 मैचों में 61.58 के औसत से 12 विकेट लिए हैं।
अश्विन चैंपियंस ट्रॉफी से पहले समाप्त हुए आईपीएल-10 में अपनी चोट के कारण पूरे टूर्नामेंट से बाहर रहे थे, जबकि जडेजा का प्रदर्शन खासा निराशाजनक रहा था। पटेल ने आईपीएल-10 में 14 मैचों में 15 विकेट और मिश्रा ने 14 मैचों में 10 विकेट हासिल किए। जडेजा 12 मैचों में सिर्फ पांच विकेट ही ले पाए। अश्विन और जडेजा दोनों को ही उनके पिछले रिकॉर्ड की बदौलत चैंपियंस ट्रॉफी टीम में जगह मिल गई।
चैंपियंस ट्रॉफी के बाद वेस्टइंडीज दौरे के लिए जो भारतीय टीम चुनी गई है उसमें इन दोनों स्पिनरों के साथ-साथ चाइनामैन गेंदबाज कुलदीप यादव को भी रखा गया है, लेकिन पिछले दो वर्षों में वनडे के लिहाज से सर्वाधिक विकेट लेने वाले मिश्रा और उनके बाद पटेल को चयनकर्ताओं ने चर्चा करने लायक भी नहीं समझा।
अश्विन और जडेजा बेशक आईसीसी टेस्ट रैंकिंग के लिहाज से शीर्ष गेंदबाज हैं, लेकिन वनडे में पिछले दो वर्षों में उनके प्रदर्शन में गिरावट आई है और चैंपियंस ट्रॉफी में उनका प्रदर्शन तो बिल्कुल ही दोयम दर्जे का रहा। इसके पीछे एक कारण यह भी हो सकता है कि चयनकर्ताओं ने इन दोनों स्पिनरों को 2015 विश्वकप और 2017 की चैंपियंस ट्रॉफी के बीच बहुत कम मैच खेलने दिए।
अश्विन ने जहां नौ वनडे खेले वहीं जडेजा ने 10 वनडे खेले जबकि 2011 विश्वकप और 2013 चैंपियंस ट्रॉफी के बीच इन दोनों स्पिनरों ने 30 से अधिक वनडे मैच खेले थे और 2013 की पिछली जीत में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी।
जडेजा ने 2011 विश्वकप से 2013 चैंपियंस ट्रॉफी के बीच 30 मैचों में 41 विकेट लिए और फिर 2013 चैंपियंस ट्रॉफी से 2015 विश्वकप के बीच 41 मैचों में 52 विकेट लिए, लेकिन 2015 विश्वकप से 2017 चैंपियंस ट्रॉफी के बीच वे 10 मैचों में सिर्फ आठ विकेट ही ले पाए।
दूसरी ओर अश्विन ने 2011 विश्वकप से 2013 चैंपियंस ट्रॉफी के बीच 39 मैचों में 48 विकेट लिए और फिर 2013 चैंपियंस ट्रॉफी से 2015 विश्वकप के बीच 35 मैचों में 46 विकेट लिए, लेकिन 2015 विश्वकप से 2017 चैंपियंस ट्रॉफी के बीच वे 9 मैचों में सिर्फ 12 विकेट ही ले पाए।
यदि चयनकर्ता इन दोनों स्पिनरों को वनडे में पूरे मौके नहीं दे रहे हैं तो बेहतर यही होगा कि दूसरे स्पिनरों को एकदिवसीय क्रिकेट में इनकी जगह मौका दिया जाए। इस बात में कोई दोराय नहीं कि ये दोनों स्तरीय स्पिनर हैं और इस बात को इन्होंने भारत की हाल की टेस्ट सफलताओं में साबित किया है, लेकिन कम वनडे खेलने से सीमित प्रारूप में इनके प्रदर्शन में गिरावट आई है।
2019 का विश्वकप दो वर्ष दूर है और चयनकर्ताओं के लिए यह ज्यादा तर्कसंगत होगा कि वे सभी स्पिनरों को पूरा मौका दें, ताकि पता चल सके कि अगले विश्वकप के लिए टीम में कौनसा बेहतर स्पिन संयोजन रहेगा। (वार्ता)