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तानों से टूटा नहीं, रंगभेद से हारा नहीं, तेम्बा बावुमा ने अपनी ताकत से लिखा नया इतिहास

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WD Sports Desk

, सोमवार, 16 जून 2025 (13:39 IST)
Temba Bavuma Journey WTC Final :  कप्तान बनने से पहले की उनकी बल्लेबाजी औसत के लिए उनका मजाक उड़ाया, उन्हें शारीरिक बनावट को लेकर शर्मिंदा किया गया बावुमा नाम से मिलती-जुलती गाली का सहारा लिया, लेकिन दक्षिण अफ्रीका के नये विश्व टेस्ट चैंपियन कप्तान तेम्बा बावुमा के लिए यह सफलता उनके नाम में छुपा  था। उन्हें ‘तेम्बा’ नाम उनकी दादी ने दिया जिसका दक्षिण अफ्रीका के जुलु भाषा में अर्थ ‘उम्मीद’ होता है। अपने नाम की तरह ही तेम्बा ने कभी उम्मीद नहीं छोड़ी और अपने सबसे चहेते लॉर्ड्स मैदान पर दक्षिण अफ्रीका की टीम को विश्व टेस्ट चैंपियनशिप का खिताब दिला दिया।
 
मैच के चौथे दिन शनिवार को  काइल वेरेने ने जैसे ही विजयी रन बनाए, बावुमा ने अपने चेहरे को अपनी हथेलियों से ढक लिया, जबकि उसके आस-पास के अन्य लोग खुशी से झूम रहे थे।

वह शायद अपनी नम आंखों को छिपाना चाहते थे, टीम के साथी केशव महाराज की तरह गला रुंधना नहीं चाहते थे, लेकिन 27 वर्षों में दक्षिण अफ्रीका को उसकी पहली आईसीसी ट्रॉफी दिलाने के बाद उनके चेहरे पर सबसे ज्यादा चमक थी।

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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वह इस देश को क्रिकेट का वैश्विक खिताब दिलाने वाले पहले अश्वेत कप्तान है। महज 63 इंच कद के इस खिलाड़ी के सामने 10 आईसीसी ट्रॉफी जीतने वाली ऑस्ट्रेलिया की टीम मैच के अहम तीसरे दिन बेबस दिखी।

 यह सिर्फ एक क्रिकेट टीम की जीत नहीं है, बल्कि उन सभी अश्वेत दक्षिण अफ़्रीकी लोगों की जीत है, जिन्होंने वर्षों तक रंगभेद के दौर को झेला है। उन्हें अपने ‘लिटिल बिग मैन’ को देखकर काफी गर्व हो रहा होगा। बावुमा ने खुद को जिस तरह से पेश किया वह काबिले तारीफ था। वह बहुत शालीनता से लॉर्ड्स लॉन्ग रूम से गुजरते हुए मैदान में आये और चैंपियनशिप का गद्दा उठाकर टीम के साथियों के साथ जश्न मनाया।
 
जब रंगभेद के बाद के युग में दक्षिण अफ्रीका के सामाजिक इतिहास का अगला अध्याय लिखा जाएगा तो तेम्बा, कागिसो रबाडा, लुंगी एनगिडी के नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज होंगे। महाराज और सेनुरन मुथुसामी जैसे भारतीय मूल के खिलाड़ियों के साथ इसमें एडेन मारक्रम, डेविड बेडिंघम और ट्रिस्टन स्टब्स जैसे श्वेत दक्षिण अफ्रीकी खिलाड़ी भी होंगे।
 
बावुमा ने मैच के बाद पुरस्कार समारोह में कहा, ‘‘ हम चाहें जितने भी अलग-अलग तरीके से रहे हमारे लिए यह देश के तौर पर एकजुट होने का मौका है। हम पूरी एकजुटता के साथ इस जीत का जश्न मनायेंगे।’’
 
केपटाउन में अश्वेत बहुल लैंगा की गलियों से लेकर लंदन के सेंट जॉन्स वुड के आस-पास के अमीर इलाके के सफर के दौरान पिछले 25 सालों से हर दिन बावुमा को कुछ साबित करनी थी।
 
सबसे पहले, वह शीर्ष स्तर पर खेल खेलने के लिए काफी अच्छे हैं। वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दक्षिण अफ्रीका का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं। और इससे भी बेहतर, वह प्रतिभा के एक ऐसे मिश्रण का नेतृत्व कर सकते हैं, जिसमें वह संयम और विवेक के साथ खेल सकते हैं।
 
बावुमा ने कुछ साल पहले जब डीन एल्गर से पदभार संभाला तब किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि वह ऐसा परिणाम हासिल करेंगे।
 
अगर आप सपने देखने की हिम्मत रखते हैं, तो लैंगा के उस लड़के की तरह सपने देखें, जिसने लॉर्ड्स में शारीरिक दर्द की बाधाओं को पार किया।

बावुमा ने डब्ल्यूटीसी फाइनल से पहले ‘गार्जियन’ को दिये साक्षात्कार में कहा, ‘‘लैंगा में हमारे पास एक चौतरफा सड़क थी। सड़क के दाईं ओर तारकोल को इतनी अच्छी तरह से नहीं बिछाया गया था और हम इसे कराची कहते थे क्योंकि गेंद अजीब तरह से उछलती थी।’’
 
उन्होंने कहा, ‘‘ हम सड़क की दूसरी तरफ को एमसीजी (मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड) कहते थे। लेकिन मेरी पसंदीदा सड़क कोई और थी।  वह हिस्सा काफी साफ था और अच्छी तरह से बना हुआ था।  हम इसे लॉर्ड्स कहते थे क्योंकि यह बेहतर दिखता था। इसलिए 10 साल के बच्चे के रूप में मेरे मन में पहले से ही लॉर्ड्स में खेलने का सपना था।’’
 
11 साल की उम्र में ही बावुमा को एक विशेष प्रतिभा के रूप में पहचाने जाने के बाद खेल छात्रवृत्ति मिल गई थी। छठी कक्षा में पढ़ते हुए उन्होंने एक बार एक निबंध लिखा था जिसे स्कूल पत्रिका में जगह मिली थी।
उन्होंने तब लिखा था, ‘‘मैं खुद को पंद्रह साल बाद अपने सूट में देखता हूं और (तत्कालीन दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति थाबो) मबेकी से हाथ मिलाता हूं जो मुझे दक्षिण अफ्रीकी टीम में शामिल होने के लिए बधाई दे रहे हैं।’’
 
उन्होंने लिखा, ‘‘ मैं अगर ऐसा करता हूं तो मैं निश्चित रूप से अपने प्रशिक्षकों और माता-पिता को धन्यवाद देना चाहूंगा जिन्होंने मुझे हर तरह से सहयोग दिया। मैं विशेष रूप से अपने दो चाचा को धन्यवाद देना चाहूंगा, जिन्होंने मुझे एक (प्रोटियाज प्रतिनिधि) होने का कौशल दिया।’’
 
वह इस लेख को लिखने के 15 साल के बाद दक्षिण अफ्रीका की टीम के लिए खेल रहे थे।
 
अगर कोई अपने लक्ष्य को जानता है तो यात्रा चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हो कभी भी असंभव नहीं लगती।
 
बावुमा ने इसे कर दिखाया। मांसपेशियों में असहनीय दर्ज के कारण वह रन नहीं दौड़ पा रहे थे। टीम के मुख्य को शुकरी कॉनराड भी नहीं चाहते थे कि वह आगे खेल जारी रखे। लेकिन टीम को चैंपियन बनाने के लिए बावुमा ने खेलना जारी रखा।
 
जब उन्हें कप्तान नियुक्त किया गया, तो दक्षिण अफ़्रीकी क्रिकेट के गलियारों में ऐसी आवाजे उठीं कि क्या वे इसके योग्य हैं। उनका बल्लेबाजी औसत 30 के आसपास था, लेकिन उन्होंने यह नहीं सोचा था कि कप्तान के तौर पर उनका औसत 57 के करीब पहुंच जायेगा।
 
उन्होंने शक की गुंजाइश को शुक्रवार धैर्य और जज्बे से की गयी बल्लेबाजी से दूर कर दिया।
 
मैदान की उपलब्धियों से ज्यादा मैदान के बाहर की उपलब्धियां उन्हें खास बनाती है, जो समावेशिता में विश्वास करता है। जब क्विंटन डी कॉक ने ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ आंदोलन का समर्थन करने के लिए घुटने नहीं टेके, तो उन्हें इसमें कुछ भी बुरा नहीं लगा।
 
उन्होंने पिछले तीन साल में दिखाया है कि कैसे सभी को साथ लेकर चलना है ।
 
तेम्बा बावुमा निश्चित रूप से मैदान पर एक कप्तान हैं, लेकिन मैदान के बाहर वे एक नेता भी हैं।  (भाषा)
 

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