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अब सचिन-द्रविड़ का क्रेज नहीं

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ढाका (वार्ता) , रविवार, 3 जून 2007 (02:24 IST)
कुछ बदला-बदला सा है इस बार का मंजर। आँखों में अब भी झिलमिलाते हैं पूजा के दीप, मगर देवता बदल चुके हैं। बांग्लादेश में अब सचिन तेंडुलकर और राहुल द्रविड़ का पहले जैसा क्रेज नहीं रहा और न ही इन्हें देखने के लिए लोग पागल हो रहे हैं।

पिछली बार जब हिन्दुस्तानी क्रिकेटर यहाँ पहुँचे थे उस समय उनके दीदार के लिए सड़कों के किनारे इंसानी सैलाब उमड़ पड़ा था। हवाई अड्डे से लेकर होटल और प्रैक्टिस ग्राउंड तक भारतीय खिलाड़ियों के पीछे भीड़ लगी रही थी।

हवा में वही पुरानी सनसनी अब भी है। लड़कियाँ अब भी अपने मुँह को दुपट्टे से ढक कर रहस्यमय सिसकियाँ भरती हैं, मगर अब उनके सपनों में सचिन या द्रविड़ नहीं आते हैं। इसकी वजह यह है कि बांग्लादेश ने खुद ही अपने सितारे गढ़ लिए हैं।

कॉलेज में पढ़ने वाले यूसुफ ने कहा कि हम अब भी भारतीय क्रिकेटरों के फैन हैं, लेकिन अब हमारे पास अपने सितारे भी हैं जिन्हें देखने के लिए भारी भीड़ जुटती है।

बांग्लादेश ने हाल के दिनों में भारत को दो बार हराया है। इनमें से विश्व कप में मिली हार का दर्द तो भारत को लंबे समय तक सालता रहेगा। इस शिकस्त की वजह से ही उसे टूर्नामेंट के पहले दौर से वापस होना पड़ा था।

कोच डेव व्हाटमोर ने वाकई पत्थरों को तराश कर 'हीरा' बना दिया है। ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका जैसी ताकतवर टीमें भी बांग्लादेश का शिकार बन चुकी हैं।

23 साल के मोहम्मद अशरफुल बांग्लादेश क्रिकेट की सबसे बड़ी खोजों में से एक हैं। हमलावर मिजाज वाले दाहिने हाथ के इस बल्लेबाज को देश ने सिर आँखों पर बिठा रखा है। मशरफे मुर्तजा, तमीम इकबाल और अब्दुर रज्जाक के फैन क्लब भी खासे बड़े हैं।

मासूम मुस्कान वाले कप्तान हबीबुल बशर हमेशा से बांग्लादेश के क्रिकेट दीवानों के दिलों पर राज करते रहे हैं। तमीम और रज्जाक ने विश्व कप में अपने खेल का सिक्का जमा दिया। होटल के एक वेटर ने कहा कि आप भी मानेंगे कि तमीम गजब का बल्लेबाज है।

भारत के कप्तान राहुल द्रविड़ ने यहाँ पहुँचने के बाद कहा कि बांग्लादेश के खिलाड़ी नौजवान और नए हैं। हमें उनके बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं है, लेकिन हम अच्छी तैयारी के साथ आए हैं।

भारतीय खिलाड़ियों की झलक के लिए दो कंधों के बीच से उचक रही रेशमा ने कहा कि सौरव दादा और सचिन के नहीं आने का मुझे अफसोस है, लेकिन मेरे सीने में तो अपना अशरफुल ही बसा है।

महेन्द्रसिंह धोनी की लहराती जुल्फों, युवराजसिंह के अक्खड अंदाज और द्रविड़ की शालीनता में अब वह आकर्षण नहीं रहा। बांग्लादेश में अब अपनी जमीन से उग कर आसमान को चूम रहे सितारे जगमगाते हैं।

10 मई को मीरपुर का शेरे बांग्ला स्टेडियम एक बार फिर कोलाहल में डूबा होगा, लेकिन इस दफा ज्यादातर तालियाँ बांग्लादेश के खिलाड़ियों के लिए होंगी। हवा का रुख बदल चुका है।

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