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कोच के रूप में प्रसिद्ध हुए फ्लेचर

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हमें फॉलो करें एंड्रयू ग्विन फ्लेचर
नई दिल्ली , गुरुवार, 28 अप्रैल 2011 (00:51 IST)
भारतीय क्रिकेट टीम के कोच नियुक्त किए गए जिम्बाब्वे के पूर्व कप्तान डंकन एंड्रयू ग्विन फ्लेचर एक क्रिकेटर के रूप में तो अधिक नाम नहीं कमा पाए लेकिन बतौर कोच उनके नाम कई उपलब्धियां दर्ज हैं।

लैपटॉप और गूढ आंकलन के लिए मशहूर 62 वर्षीय फ्लेचर ने भले ही खुद कभी टेस्ट नहीं खेला लेकिन इंग्लैंड की टेस्ट टीम की कायापलट करने का श्रेय उन्हें ही जाता है। वह इंग्लिश टीम को क्रिकेट के इस सबसे लंबे प्रारूप में विश्व रैंकिंग में दूसरे स्थान तक ले गए।

इंग्लैंड के पहले विदेशी कोच बनने वाले फ्लेचर अपने जमाने में जिम्बाब्वे के ऑलराउंडर थे। वह बाएं हाथ के बल्लेबाज और दाएं हाथ के मध्यम तेज गेंदबाज थे। इसके अलावा फ्लेचर काफी चुस्त क्षेत्ररक्षक भी थे। वह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में जिम्बाब्वे के पहले कप्तान थे और उन्हीं की कप्तानी में जिम्बाब्वे ने 1983 के विश्वकप में ऑस्ट्रेलिया को हराकर तहलका मचाया था।

इसी विश्वकप में जिम्बाब्वे टर्नब्रिज वेल्स में खेले गए मैच में भारत को हराने के करीब पहुंच गया था। भारत ने अपने पांच विकेट 17 रन पर गंवा दिए थे लेकिन कपिलदेव ने ऐतिहासिक पारी खेलकर भारत को जीत दिला दी थी। भारत ने तब पहली बार विश्वकप जीता था।

फ्लेचर 1999 में इंग्लैंड के पहले विदेशी कोच बने और उन्होंने एक कमजोर टीम को विश्व क्रिकेट में एक शक्तिशाली ताकत बना दिया। इंग्लैंड ने वर्ष 2004 में न्यूजीलैंड और वेस्टइंडीज के खिलाफ लगातार आठ टेस्ट जीते लेकिन फ्लेचर के करियर में स्वर्णिम अवसर तब आया, जब इंग्लैंड ने वर्ष 2005 में आस्ट्रेलिया को 2-1 से हराकर 18 वर्ष बाद यह उपलब्धि हासिल की थी।

इस उपलब्धि पर फ्लेचर को ब्रिटेन के प्रतिष्ठित पुरस्कार 'ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश अंपायर' सम्मानित किया और इसी वर्ष उन्हें ब्रिटेन की नागरिकता भी मिल गई, लेकिन इंग्लैंड को 15 महीने बाद ही ऑस्ट्रेलिया में एशेज सीरीज में 0-5 से शिकस्त झेलनी पड़ी और एशेज कलश उसके हाथ से छिन गया।

2007 के विश्वकप के इंग्लैंड के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद फ्लेचर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। फ्लेचर के बारे में मशहूर है कि वह बिना किसी मीडिया ग्लैमर के चुपचाप अपना काम करते हैं और खिलाडियों की कमजोरियों और ताकत पर ध्यान देते हैं। प्रतिभावान खिलाड़ियों की पहचान करना उनकी विशिष्टता है।

माइकल वान उन खिलाडियों में से एक थे जिन्हें फ्लेचर की पारखी नजर ने पहली नजर में भांप लिया था। वान बाद में इंग्लैंड के कप्तान बने। इंग्लैंड के खिलाडियों में काउंटी के ऊपर देश को तरजीह देने की भावना भरने का श्रेय भी फ्लेचर को जाता है। कप्तानों के साथ उनकी अच्छी पटती है जो विशेषता भारत में उनके काम आएगी। साथ ही वह क्षेत्ररक्षण पर ज्यादा जोर देते हैं, जिसकी टीम इंडिया को अभी सबसे ज्यादा जरूरत है।

इंग्लैंड के मौजूदा कप्तान एंड्रयू स्ट्रास ने विज्डन क्रिकेटर्स आल्मनैक 2008 में लिखा 'जो कोई भी क्रिकेटर फ्लेचर के संपर्क में आएगा, उसे महसूस होगा कि वह औरों से कितने अलग हैं। वह पहले खिलाड़ियों को विस्तारपूर्वक समझाते हैं और फिर उन्हें मैदान पर ऐसा करने को कहते हैं।'

फ्लेचर को ऐसी टीम मिली है जो विश्व रैंकिंग में नंबर एक है और जिसने हाल ही में वनडे विश्वकप जीता है। ऐसे में गैरी कर्स्टन के उत्तराधिकारी से टीम और करोड़ों भारतीयों से काफी उम्मीदें रहेंगी। अब देखना यह है कि फ्लेचर इन उम्मीदों पर खरे उतरते हैं या नहीं। (वार्ता)

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