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कौन लेगा सुधींद्र की सुध?

सुशील दोषी

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, गुरुवार, 15 मार्च 2012 (13:07 IST)
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घरेलू क्रिकेट का महत्व तभी प्रतिपादित होगा, जब इसमें अच्छा प्रदर्शन करने वालों को राष्ट्रीय टीम में जगह मिलेगी। मध्यम तेज गति के गेंदबाज अशोक डिंडा को एशिया कप के लिए चुन लिया पर रणजी सत्र के एक मौसम में 40 विकेट लेने वाले टी सुधींद्र को नजरअंदाज किया गया।

क्या इसलिए कि वे मध्यक्षेत्र व मध्यप्रदेश से खेलते हैं या फिर इसलिए कि चयनकर्ता मानते हैं कि मप्र के खिलाड़ियों में स्थायी व ऊंची श्रेणी की प्रतिभा नहीं होती। एक चयनकर्ता तो मप्र के नरेंद्र हिरवानी ही है। जब वे खेलते थे, तब बड़े अन्याय के शिकार हुए थे। प्रतिभा होते हुए भी अन्याय भुगतने का दर्द वे अच्छी तरह जानते हैं। मुझे विश्वास है कि आज जब वे स्वयं चयनकर्ता हैं तो सुधींद्र की वकालत उन्होंने जरूर की होगी।

यह एक माना हुआ सत्य है कि क्रिकेट के कुछ दादाओं व कप्तान से नजदीकियों के बलबूते पर कई क्रिकेट खिलाड़ी उन्नीसी प्रतिभा होते हुए भी बीस को कुचलते हुए भारत का प्रतिनिधित्व कर लेते हैं। सुरेश रैना जैसे खिलाड़ी इस बात के ज्वलंत उदाहरण हैं, जिनकी आँखों में विदेशी भूमि पर उछाल वाली पिचों पर भय झलकने लगता है। यह एक शोध का ही विषय है कि युवराजसिंह व उसके पहले सौरव गांगुली जैसे प्रतिभाशाली लैफ्ट हैंडर्स के ऊपर रैना को तरजीह कैसे दी गई है? ट्वेंटी-20 क्रिकेट के आगमन ने कई टुल्लेबाजों को रातों-रात स्टार बना दिया है। शास्त्रीय क्रिकेट अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने को लाचार हो गया है।

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