न्यूजीलैंड के पूर्व कप्तान स्टीफन फ्लेमिंग ने आज यहाँ इंग्लैंड के खिलाफ तीसरे और अंतिम क्रिकेट टेस्ट में अपने अंतरराष्ट्रीय करिअर की अंतिम पारी में 66 रन बनाकर टेस्ट में अपना औसत 40 के पार पहुँचाते हुए शानदार तरीके से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कहा।
न्यूजीलैंड के सर्वाधिक सफल और श्रेष्ठ कप्तानों में शुमार फ्लेमिंग ने अपनी पारी की शुरुआत धमाकेदार तरीके से की और चाय से पहले मोंटी पनेसर की गेंद को सीमा रेखा के बाहर पहुँचाकर टेस्ट में अपना 46वाँ अर्द्धशतक पूरा किया। जैसे ही फ्लेमिंग ने अपना अर्द्धशतक पूरा किया, स्टेडियम में मौजूद सभी दर्शक उनके सम्मान में उठ खड़े हुए।
इसके अलावा फ्लेमिंग ने जैसे ही 54 रन पूरे किए, उन्होंने एक और मील का पत्थर हासिल कर लिया 154 रन बनाने के साथ ही उन्होंने टेस्ट में 7160 रन पूरे कर अपना टेस्ट औसत 40 तक पहुँचा लिया। अब इस औसत के साथ फ्लेमिंग क्रिकेट जगत में एक बेहतर बल्लेबाज के रूप में याद किए जाएँगे।
हालाँकि फ्लेमिंग ने अपनी अंतिम पारी में कुछ ज्यादा ही जल्दबाजी दिखा दी और एक बार फिर अपनी अच्छी शुरुआत को बड़े स्कोर में तब्दील नहीं कर सके।
फ्लेमिंग ने अपने 66 रनों की पारी में दस चौके लगाए। 166 रन बनाने के साथ ही फ्लेमिंग अपने देश में टेस्ट में सर्वाधिक 7172 रन बनाने वाले पहले खिलाड़ी हो गए। इसके अलावा सात हजार या उससे अधिक रन बनाने वाले दुनिया के 31वें खिलाड़ी बन गए। उनका टेस्ट करिअर का औसत 40.06 रहा।
आउट होने के बाद पैवेलियन लौट रहे फ्लेमिंग को इंग्लैंड के खिलाडि़यों ने भी विदाई दी।
चौथे दिन का खेल समाप्त होने के बाद फ्लेमिंग ने संवाददाताओं से कहा कि मैं जब पैवेलियन लौट रहा था तो काफी निराश था, क्योंकि मेरे जीवन में 50 या शायद 60वीं बार था, जब मैं अपने स्कोर को बड़े स्कोर में बदलने में नाकामयाब रहा। मुझे खुद पर हँसी आ रही थी कि मुझे इस तरह विदा होना पड़ा।
उन्होंने कहा कि मैंने अपने क्रिकेट करिअर का पूरा लुत्फ उठाया और यह मेरे लिए मिलाजुला रहा। मैंने अपने करिअर में वह मुकाम हासिल नहीं किया जिसकी मुझे उम्मीद थी, फिर भी मैं अपने करिअर से संतुष्ट हूँ। फ्लेमिंग ने कहा कि एक बल्लेबाज के तौर पर मुझे लगता है कि मैंने वह मुकाम हासिल नहीं किया जो मुझे करना चाहिए था।
मुझे नहीं पता कि क्यों मैं अपने स्कोर बड़े स्कोर में बदल नहीं पाया, लेकिन मैं अपनी असफलता का खुद जिम्मेदार हूँ। उन्होंने कहा कि मुझे हमेशा यह बात कचोटती रहेगी कि मैं ऐसा क्यों था। टेस्ट में दस शतक बनाकर मैं खुश हूँ और मैं समय के झरोखे में निहारता हूँ तो मुझे इस पर संतुष्टि मिलती है।