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भारतीय क्रिकेट का टर्निंग प्वाइंट!

लॉर्ड्स का ऐतिहासिक मंजर फिर ताजा होगा

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हमें फॉलो करें 1983 विश्वकप लॉर्ड्‍स मैदान कपिल देव
नई दिल्ली (वार्ता) , शनिवार, 21 जून 2008 (23:03 IST)
भारत में आज बेशक आईपीएल और ट्‍वेंटी-20 क्रिकेट का डंका बज रहा हो लेकिन अब से 25 वर्ष पहले 1983 में कपिल देव के रणबांकुरों ने ऐतिहासिक लॉर्ड्स मैदान पर विश्वकप में जो खिताबी सफलता हासिल की थी उसने भारतीय क्रिकेट इतिहास की धारा को ही बदल दिया था।

भारत ने 25 जून 1983 को इंग्लैंड के ऐतिहासिक लॉर्ड्स मैदान में खेले गए तीसरे प्रूडेंशियल विश्वकप के फाइनल में क्वाइव लायड की अजेय वेस्टइंडीज टीम को 43 रन से हराकर पूरे क्रिकेट जगत को चौंका दिया था। यह एक ऐसी सफलता थी जिसकी किसी भारतीय क्रिकेट प्रेमी को सपने में भी उम्मीद नहीं थी।

भारत के टूर्नामेंट के सेमीफाइनल में पहुँचना तो दूर, उसके केवल एकाध मैच जीतने की ही उम्मीद लगाई जा रही थी। लेकिन कप्तान कपिल के जाँबाजों ने वह कारनामा कर दिखाया जिसने भारतीय क्रिकेट को रातोंरात जमीन से उठाकर आसमानी ऊँचाइयों पर पहुँचा दिया। इसके साथ ही 25 जून 1983 की तारीख भारतीय खेलों के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गई।

इस खिताबी जीत की सिल्वर जुबली के मौके पर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड कपिल के रणबांकुरों का रविवार को राजधानी में एक भव्य स्वागत समारोह में सम्मान करने जा रहा है। जब मौका विश्व चैंपियन टीम के खिलाड़ियों के सम्मान का हो तो निश्चित रूप से उस ऐतिहासिक समय की याद ताजा हो जाना स्वभाविक है, जब भारत की कमजोर मानी जाने वाली टीम ने लॉयड की शक्तिशाली वेस्टइंडीज टीम को खिताबी हैट्रिक बनाने से रोक दिया था।

पूरे टूर्नामेंट में भारतीय टीम ने उम्मीदों के विपरीत हैरतअंगेज प्रदर्शन किया था और ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड तथा वेस्टइंडीज जैसी दिग्गज टीमों को एक के बाद एक धूल चटाते हुए विश्वकप पर कब्जा किया था।

दरअसल भारत के भाग्य को बदलने का वाला टर्निंग प्वाइंट उस समय आया था, जब विश्वकप से पहले वेस्टइंडीज के दौरे में भारत ने गयाना में वेस्टइंडीज के खिलाफ अपनी पहली एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय जीत दर्ज की। इस जीत ने कपिल की टीम को यह आत्मविश्वास दे दिया था कि वे एकदिवसीय मैचों में किसी भी टीम को हरा सकते हैं।

भारत ने 1983 विश्वकप में अपने पहले ही लीग मैच में गत दो बार के चैंपियन वेस्टइंडीज को 34 रन से हराकर शानदार शुरुआत की थी। भारत ने इसके बाद जिम्बॉब्वे को पाँच विकेट से धूल चटाई लेकिन इन दो जीतों के बाद भारत ऑस्ट्रेलिया से 162 रन के बड़े अंतर से हार गया। अपने चौथे मैच में भारत को वेस्टइंडीज से 66 रन से शिकस्त झेलनी पड़ी। इन दो पराजयों के बाद यह माना जाने लगा कि भारत की शुरुआती जीत एक तुक्का थी।

इसके बाद वह क्षण आया जिसने इस विश्वकप में भारत के भाग्य की धारा को ही बदल दिया। जिम्बॉब्वे के खिलाफ भारत अपने पाँच चोटी के बल्लेबाज सिर्फ 17 रन पर गँवा चुका था। ऐसे नाजुक समय में कप्तान कपिल ने छह छक्कों और 16 चौकों की मदद से नाबाद 175 रन की पारी खेली और भारत ने यह मैच 31 रन से जीता।

इस विश्वकप का एकमात्र दुर्भाग्य यही है कि कपिल की इस महान पारी का कोई वीडियो रिकार्डिंग नहीं बन पाई। भारत ने फिर ऑस्ट्रेलिया का 158 रन से मानमर्दन कर सेमीफाइनल में स्थान बना लिया। सेमीफाइनल में भारत का मुकाबला मेजबान इंग्लैंड के साथ हुआ। इंग्लिश मीडिया ने सेमीफाइनल से पहले साफ कह दिया कि इंग्लैंड की टीम भारत को आसानी से रौंद देगी लेकिन मैन ऑफ द मैच मोहिन्दर अमरनाथ बेहतरीन हरफनमौला खेल से भारत ने इंग्लैंड को छह विकेट से धवस्त कर फाइनल में स्थान बना लिया था।

भारत की सफलता से इंग्लैंड के क्रिकेट समीक्षकों की आँखें फटी की फटी रह गई। अब भारत का फाइनल में मुकाबला शक्तिशाली वेस्टइंडीज से था। वेस्टइंडीज ने टॉस जीतकर पहले क्षेत्ररक्षण करने का फैसला किया। भारतीय टीम 54.4 ओवर में सिर्फ 183 रन पर लुढ़क गई। कृष्णामाचारी श्रीकांत ने सर्वाधिक 38, मोहिंदर अमरनाथ ने 26 और संदीप पाटिल ने 27 रन बनाए। वेस्टइंडीज की शक्तिशाली बल्लेबाजी को देखते हुए उनके लिए यह कोई बड़ा लक्ष्य नहीं था।

लेकिन बलविंदर सिंह संधू ने गार्डन ग्रीनिज को सिर्फ एक रन पर बोल्ड कर दिया। इसके बाद विवियन रिचर्डस ने ताबड़तोड़ बल्लेबाजी करते हुए 33 रन ठोक डाले।

रिचर्ड्स बहुत खतरनाक मूड में थे और लग रहा था कि वह मैच को चंद ओवरों में ही खत्म कर देंगे। उन्होंने मदनलाल की गेंद पर अचानक मिड विकेट की तरफ एक ऊँचा शॉट खेल दिया। कपिल ने अपने पीछे की तरफ लंबी दौड़ लगाते हुए एक अद्भुत कैच लपक लिया। रिचर्ड्स का आउट होना था कि वेस्टइंडीज की पारी जैसे ढह गई और जल्द ही उसका स्कोर छह विकेट पर 76 रन हो गया।

वेस्टइंडीज की पारी अंततः 52 ओवर में 140 रन पर सिमट गई। यह एक अविश्वसनीय प्रदर्शन था लेकिन जो जाँबाज होते हैं, भाग्य उन्हीं का साथ देता है और कपिल के जाँबाजों ने यही काम कर दिखाया था। मदनलाल ने 31 रन पर तीन विकेट, अमरनाथ ने 12 रन पर तीन विकेट और संधू ने 32 रन पर दो विकेट लेकर लॉयड के धुरंधरों को ध्वस्त कर दिया।

अमरनाथ सेमीफाइनल के बाद फाइनल में भी अपने ऑलराउंड खेल से मैन ऑफ द मैच बने। यह एक ऐसा प्रदर्शन था जो आज भी भारतीयों के दिलोदिमाग पर अंकित है। आखिर विश्वकप जीतना हर खिलाड़ी का एक सपना होता है और अब इन विश्व विजेताओं का जब एक बार फिर सम्मान किया जाएगा तो निश्चित रूप से लॉर्ड्स का वो ऐतिहासिक मंजर करोड़ों भारतीयों की नजरों के सामने फिर कौंध जाएगा।

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