कृषि मंत्री शरद पवार का इस वर्ष सितंबर में तीसरे तथा अंतिम कार्यकाल के लिए भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) का अध्यक्ष बनना तय है। अगले वर्ष सबको चौंकाते हुए पवार के बाद रेलमंत्री लालूप्रसाद यादव भी इस कुर्सी पर आसीन हो सकते हैं।
वैसे तो लालू यादव ने अभी अपने इरादे जाहिर नहीं किए हैं, लेकिन उनके नजदीकी लोगों ने इस बात के लिए अभी से बीसीसीआई के शीर्ष पदाधिकारियों के बीच लामबंदी शुरू कर दी है।
वर्ष 2001 में यादव ने बीसीसीआई प्रमुख पद के लिए जगमोहन डालमिया के खिलाफ उद्योगपति एसी मुथैया का समर्थन किया था। इस चुनाव में मुथैया पराजित हुए थे और डालमिया ने सबसे पहले लालू यादव वाले बीसीए की मान्यता रद्द कर दी थी और वे इस वजह से बोर्ड चुनावों में वोट नहीं डाल पाए थे। मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद लालू बीसीए अध्यक्ष बने।
इसके बाद से लालू जगमोहन डालमिया के कट्टर विरोधी हो गए, क्योंकि उनके कारण चार वर्षों तक बीसीए को वोट डालने का अधिकार नहीं रहा (डालमिया के तीन वर्ष के कार्यकाल तथा रणबीरसिंह महेंद्र के एक वर्ष के कार्यकाल)।
वर्ष 2005 में जब महेंद्र दूसरी बार चुनाव लड़े, तब लालू ने संस्थागत मतों की मदद से शरद पवार को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई। लालू की वजह से पवार को रेलवे, सेना तथा विश्वविद्यालय के वोट मिले तथा उन्होंने महेंद्र को पराजित किया।
कभी स्वयं क्रिकेट नहीं खेले लालू को बीसीसीआई प्रमुख पद तक पहुँचाने के लिए बिहार के पूर्व रणजी क्रिकेटरों समेत बीसीए पदाधिकारियों ने मुहिम शुरू कर दी है।
बीसीए के एक पदाधिकारी ने कहा - 'यहाँ बात सिर्फ एसोसिएशनों के पदाधिकारियों को समझाने की है, कई इकाइयाँ तो अगले वर्ष लालूजी को अध्यक्ष बनते हुए देखने को तैयार हैं। वैसे भी उन्होंने जिस तरह से भारतीय रेल का कायाकल्प किया है उससे उनकी प्रतिभा झलकती है।'
वैसे लालू के इन समर्थकों की बातचीत पर से ऐसा प्रतीत होता है कि बीसीसीआई के शीर्ष अधिकारियों का भी लालू को समर्थन रहेगा। डालमिया गुट द्वारा इस बार भी चुनाव में विरोध किए जाने की उम्मीद है इसलिए सत्ताधारी गुट चाहेगा कि श्री पवार के समान ही अगला अध्यक्ष भी मजबूत हो।
खिलाड़ियों के अनुबंध तथा विदेशी धरती पर मैचों के दौरान टीवी प्रसारण अधिकार के मुद्दों ने उपाध्यक्ष ललित मोदी तथा शशांक मनोहर के अध्यक्ष पद की तरफ बढ़ने की उम्मीदों को करारा झटका पहुँचाया है। अपनी मार्केटिंग योजनाओं से बोर्ड को मालामाल बनाने वाले मोदी तथा शरद पवार के खास शशांक मनोहर को बोर्ड पदाधिकारियों से ज्यादा समर्थन मिलने की उम्मीद नहीं है।
स्थिति लालू यादव के लिए अनुकूल है कि वे बीसीसीआई के अध्यक्ष पद के लिए अगले वर्ष अपनी दावेदारी पेश करें। केंद्र में सत्तारूढ़ संप्रग की वजह से उनके लिए पर्याप्त समर्थन जुटा पाना मुश्किल नहीं होगा। लालू के लिए पूर्व बोर्ड अध्यक्ष राजसिंह डूँगरपुर मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं, क्योंकि डूँगरपुर बोर्ड के मामलों में लालू का कई बार विरोध कर चुके हैं।
डूँगरपुर को पश्चिम क्षेत्र में काफी समर्थन प्राप्त है और वे निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। लालू समर्थकों का मानना है कि इस बार सितंबर में होने वाले चुनावों के दौरान शरद पवार को इन दोनों के संबंधों को मधुर बनाना होगा।
यादव के लिए संस्थागत मतों- रेलवे, सेना तथा विश्वविद्यालय का समर्थन जुटाना मुश्किल नहीं होगा। वे तो डालमिया समर्थित झारखंड तथा उड़ीसा के वोट भी हासिल कर सकते हैं। स्थितियों में एकाएक परिवर्तन नहीं आया तो सितंबर 2008 में लालू यादव बीसीसीआई अध्यक्ष बन सकते हैं।