Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

मध्यप्रदेश क्रिकेट : संसाधनों की नहीं, जीवटता की कमी

हमें फॉलो करें मध्यप्रदेश क्रिकेट : संसाधनों की नहीं, जीवटता की कमी

देवाशीष निलोसे

लंबे अरसे से जद्दोजहद से गुजर रहा था। दिल मानने को तैयार नहीं था। दिमाग उस विषय पर सोचने को मजबूर कर रहा था। दिल तो दिल है, जो मुझे अतिसंवेदनशील बना रहा था तथा वहीं दिमाग गंभीर, क्योंकि विषय ही ऐसा है, जो चिंतन, मंथन एवं विचार करने के लिए प्रेरित कर रहा है

FILE
कुछ समय पूर्व मेरे एक पत्रकार बंधु ने एक कटिंग बताकर उस पर अपने विचार व्यक्त करने को कहा। वह बयान पूर्व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी एवं खेल समीक्षक मदनलाल का था। उनका कथन था- 'मध्यप्रदेश के खिला‍ड़ियों में बड़े क्रिकेट खेलने का माद्दा नहीं है।' उस बयान ने झकझोर दिया, पढ़ते ही व्याकुल हो उठा। मंथन और चिंतन का दौर चल पड़ा। और जब आप किसी भी विषय पर गहराई, जिम्मेदारी एवं सच्चाई से सोचते हैं, तब ‍निश्चित तौर पर आप एक निष्कर्ष पर पहुंचते हैं।

खिला‍ड़ियों में माद्दा नहीं है, ऐसा मैं नहीं सोचता हूं, लेकिन कुछ व्यावहारिक कठिनाइयां हैं, जो हमारे खिलाड़ियों को उस जगह पर स्थापित नहीं होने दे रही हैं, उनके मार्ग का रोड़ा बन रही हैं। हमारे खिलाड़ी प्रतिभाशाली हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है। अगर प्रतिभाशाली नहीं होते तो शायद आज हम नरेन्द्र हिरवानी के विश्व रिकॉर्ड की 25वीं सालगिरह नहीं मनाते, जो उन्होंने वेस्टइंडीज के विरुद्ध मद्रास टेस्ट में 16 विकेट हासिल कर बनाया था। कमी है तो सिर्फ और सिर्फ 'जीवटता' और 'कमिटमेंट' की। अगर हमारे खिलाड़ियों में हीरू (हिरवानी) की आधी जीवटता एवं कमिटमेंट भी आ जाए तो मध्यप्रदेश क्रिकेट का स्वरूप आज कुछ और हो जाएगा।

जीवटता एवं प्रतिबद्धता (‍कमिटमेंट) संसाधनों एवं पैसों से नहीं हासिल की जा सकती, वह तो खिलाड़ियों‍ को आत्मसात करनी होती है। उसके लिए खुला, बड़ा दिल एवं दिमाग होना चाहिए।

मैंने मप्र क्रिकेट को काफी करीब से देखा है एवं पाया कि हमारे युवा खिलाड़ी संभावनाओं से भरे हैं, प्रतिभाशाली हैं, लेकिन जो प्रश्न व्यथित कर रहा है वह है कि इनमें जीवटता एवं प्रतिबद्धता कैसे जगाई जाए? जुझारूपन कैसे लाया जाए?

मप्र क्रिकेट एसो. युवा खिलाड़ियों को हरसंभव सुविधाएं प्रदान कर रहा है। सर्वसुविधायुक्त अधोसंरचना दे रहा है। मप्र के इन खिलाड़ियों को एक्सपोजर मिले उसके लिए हर वर्ग की टीमों को खेलने के लिए विदेश भेजा जा रहा है। आज हमारी टीमों को रिबॉक, पूमा एवं ओकलेस जैसे मल्टीनेशनल्स बांड्‍स प्रायोजित कर रहे हैं, यह एक बड़ी उपलब्धि है। लेकिन मप्र क्रिकेट एसो. को कुछ और ठोस कदम उठाने होंगे। खिलाड़ियों को कैसे मोटीवेट करें, मानसिक तौर पर सुदृढ़ बनाएं, इस ओर सोचना होगा। खिलाड़ियों को खेल के साथ मोटीवेशनल सत्र भी जरूरी है। हमें अच्‍छे एवं बड़े स्पोर्ट्‍स साइकोलॉजिस्ट की सेवा लेने में हर्ज नहीं होना चाहिए। बड़े अचीवर्स से रूबरू कराने एवं उनसे उनके एक्सपीरियंस शेयर करने के सत्र भी इस प्रयास में लाभदायक एवं प्रेरणादायक हो सकते हैं।

एक खिलाड़ी में जीवटता, प्रतिबद्धता कैसी हो, यह हमें मुंबई के खिलाड़ियों ने बताया है। यही एक बेसिक फर्क इन दोनों टीमों में आसानी से इंदौर में मप्र एवं मुंबई के बीच रणजी ट्रॉफी क्वालीफायर मैच के दौरान देखा गया। इसी बुनियादी फर्क ने आज 40वीं बार मुंबई को रणजी ट्रॉफी विजेता बनाया है। यह उनके लहू में रचा-बसा है। यदि वह मुकाबला मप्र के खिलाड़ियों ने जीवटता एवं प्रतिबद्धता के साथ लड़ा होता तो शायद आज हम इतिहास बना रहे होते। हालांकि खेल ही नहीं, वरन जिंदगी में भी किंतु-परंतु नहीं होते। आपको यथार्थ में ही जीना होता है, क्योंकि यथार्थवादी ही जीवट होता है।

सपने देखने का हक सभी को है लेकिन जीवट एवं प्रतिबद्ध खिलाड़ी ही उन सपनों को साकार कर पाते हैं, क्योंकि यही सही है-

हर सुबह
आपके सामने
दो विकल्प होते हैं
फिर से सो जाएं
और सिर्फ सुहाने सपने देखें
या
जाग जाएं
और उन सपनों को साकार करें।

मैं समझता हूं इंदौर में रणजी मैच में दोनों ही टीमें बराबर थीं। हो सकता है हमारी टीम ज्यादा प्रतिभाशाली हो। सिर्फ जीवटता एवं प्रतिबद्धता की ही वजह से मुंबई कहीं न होकर भी वह मैच जी‍तकर आगे क्वालीफाई ही नहीं हुई, रणजी ट्रॉफी विजेता बन‍ फिर भारतीय क्रिकेट की सिरमौर बनी। और क्यों न बनती सचिन तेंडुलकर, अजित अगरकर, जहीर खान, वसीम जाफर जैसे खिलाड़ी जो थे जिनके लिए मुंबई की प्रतिष्ठा सर्वोपरि थी। हमारे खिलाड़ियों को भी हमारे प्रदेश की प्रतिष्ठा को सर्वोपरि बनाना होगा, तभी खेल का एवं खिलाड़ी का उत्थान होगा। उस कमी को मप्र के खिला‍ड़ियों को आत्मचिंतन, आत्ममंथन कर ही उससे पार पाना होगा अन्यथा हम वहीं रहेंगे, जहां थे।

सचिन तेंडुलकर को आज पाने के लिए क्या बचा है? सब कुछ तो वे हासिल कर चुके हैं, वे अपने ही कीर्तिमानों को तोड़ रहे हैं। वे आज मुंबई की जीत के कर्णधार रहे हैं, प्रेरणास्रोत रहे हैं। उनको खेलते देखना हमेशा ही आनंददायक रहता है। उनके खेल में जीवन का सौंदर्य, दर्शन और सपनों का संसार झलकता है, जो अपने साथ बहा ले चलने की अद्भुत क्षमता रखता है। यह दर्शन मप्र के खिला‍ड़ियों को समझना होगा। क्षमता को आत्मसात करना होगा। उनकी मानसिक दृढ़ता को अपनाना होगा। उनके जुझारूपन से सीखना होगा।

मप्र के खिला‍ड़ियों को शारीरिक तौर पर ही नहीं, मानसिक तौर पर भी दृढ़ होना पड़ेगा, क्योंकि प्रतिद्वंद्विता के इस दौर में वही सफल होगा, जो दोनों ही रूपों में मजबूत होगा। मा‍र्जिन ऑफ एरर एक महत्वपूर्ण कड़ी है। जितनी कम गलतियों को हम दोहराएंगे उतने ही परिपक्व होंगे। ऐसा माहौल पैदा करना होगा जिससे उन्हें सकारात्मक सोच से ओतप्रोत किया जा सके, क्योंकि सकारात्मक सोच ही मानसिक तौर पर उन्हें दृढ़ बनाएगा। और इसी सोच से हम वो सब पा सकते हैं, जो हम पाना चाहते हैं चाहे कितनी ही मुश्किल हो, कठिनाई हो। सकारात्मक सोच ही आपकी ताकत है। हमें उन्हें यह अहसास कराना होगा, यदि आप किसी भी मुकाम, मंजिल को जेहन में लाते हैं और इसी सोच से उसे पाने की चेष्टा करते हैं तो निश्चित तौर पर यह मुकाम आपके हाथों में होगा।

सकारात्मक सोच हमेशा अपना कार्य करती है आप विश्वास करें या न। आपका सोच एवं भावनाएं ही आपकी जिंदगी की संरचना के आधार बनते हैं एवं उसके क्रियान्वयन से आप अपना यूनिवर्स बनाते हैं। यदि आप पहला कदम विश्वास के साथ लेंगे तो आपको पूरी सीढ़ी की ओर देखना नहीं पड़ेगा। मप्र का हर खिलाड़ी अपना हर कदम विश्वास के साथ बढ़ाएगा तो मंजिलें अपने आप तय होंगी, नए मुकाम हासिल होंगे, नए अध्याय‍ लिखे जाएंगे और तभी हम होलकर युगीन सुनहरे इतिहास को दोहरा पाएंगे। (लेखक पूर्व रणजी ट्रॉफी खिलाड़ी हैं और उन्होंने 47 प्रथम श्रेणी मैचों में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व किया है)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi