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मीरपुर में घुसपैठिया लगता है क्रिकेट

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ढाका (वार्ता) , रविवार, 3 जून 2007 (02:42 IST)
काँच की रंगबिरंगी चूडियों से टकरा कर आँखों पर इंद्रधनुष बनाती सूरज की कौंध बताती है कि शेरे बंगला जातीय स्टेडियम आ गया।

ढाका के बाहर मीरपुर में बने इस स्टेडियम में दो साल से क्रिकेट खेला जा रहा है, लेकिन इस दौरान इसके आसपास कुछ भी ऐसा नहीं हुआ, जो नएपन का अहसास कराए।

रात के अंधेरे को चुनौती देती सुपर मार्केट्स की जगमग रोशनी यहाँ नहीं है। यहाँ तो दिन के उजाले में गाँव का मेला किसी अल्हड लड़की की तरह मचलता है।

स्टेडियम की छाया में पूरा मीना बाजार सजा है। लुंगी और सलवार-कमीज से लेकर खनकती चूडियों तक सब कुछ मिलता है यहाँ। स्टेडियम के निचले हिस्से में ढाका का सबसे बड़ा फर्नीचर बाजार है। लकड़ी को मेजों और कुर्सियों की शक्ल देने के बाद पॉलिश से चमकाया जा रहा है।

भारत और बांग्लादेश के बीच गुरुवार को होने वाले एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच के लिए लगाए गए बाँसों के बाड इन सब के बीच घुसपैठियों की तरह लगते हैं। रैपिड एक्शन फोर्स और पुलिस की तैनाती ने समूचे माहौल में खलल पैदा कर दी है।

पुलिस वालों के साथ लंबी झड़प से निपटने के बाद एक दुकानदार ने कहा कि यह क्रिकेट हमारी तबाही का सामान बनकर आया है। जब टीमें नेट पर हों उस समय ग्राहकों को बाजार में आने की इजाजत नहीं दी जाती। इससे दुकानदार और ग्राहक दोनों को बहुत परेशानी है। अलबत्ता ठेली वालों को दम लेने के लिए कुछ वक्त जरूर मिल जाता है।

बाहर से स्टेडियम को देख कर कुछ अच्छा नहीं लगता। चारों तरफ कचरा और ईंट के टुकड़े पडे हैं, लेकिन अंदर घुसते ही मैदान में चारों तरफ पसरी हरियाली आँखों को सुकून देती है।

गुरुवार की सुबह लगभग 30 हजार क्रिकेट दीवानों से आबाद होगी यह हरियाली। मीडिया रूम से लेकर गैलरियों तक को इस मौके के लिए रंगरोगन से चमकाया गया है।

बांग्लादेश क्रिकेट बोर्ड (बीसीबी) के एक अधिकारी ने कहा कि ये दुकानें हमारी आमदनी का बढ़िया जरिया रही हैं, लेकिन जमाना बदल रहा है और अब उन्हें यहाँ से जाना ही होगा।

उन्होंने कहा कि पहले इस स्टेडियम में हर तरह के खेल हुआ करते थे, लेकिन अब हम यहाँ राष्ट्रीय क्रिकेट एकैडमी को शिफ्ट करने की सोच रहे हैं। स्टेडियम के बाहर फैले कबाड के बारे में अधिकारी ने कहा इसमें समूचे साल काम चल रहा है। हम इस स्टेडियम को 2011 के विश्व कप के उद्घाटन समारोह के लिए तैयार कर रहे हैं।

यह पूछे जाने पर कि बाहर पसरे पटरी बाजार का क्या होगा अधिकारी ने कहा वे कोई दूसरी जगह ढूंढ लेंगे। बांग्लादेशी क्रिकेट की कामयाबी का काफिला कुछ लोगों के पेट के ऊपर से गुजरता है, लेकिन हर कामयाबी की कुछ न कुछ कीमत तो चुकानी ही पड़ती है।

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