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वीरू तो बस वीरू ही हैं...

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, शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011 (08:39 IST)
खराब फॉर्म से जूझने और पिछले मैच की हार के बावजूद जब वीरेंद्र सहवाग टॉस के लिए होलकर स्टेडियम के मैदान में उतरे तो उनके चेहरे पर शिकन तक नहीं थी। पिछले तीन मैचों में शीर्ष क्रम के बल्लेबाजों की असफलता को देखते हुए टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने का निर्णय बेहद जोखिमभरा साबित हो सकता था, लेकिन चुनौतियों से खेलना तो जैसे वीरू का शगल है।

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क्रिकेट का कोई भी प्रारूप हो, एक ही शैली में बल्लेबाजी करने वाले वीरू ने यह साहसिक निर्णय लिया, तब ही लगा था कि वे आज कुछ अलग ही मूड में हैं। बल्लेबाजी के लिए जब वे गौतम गंभीर के साथ उतरे तो काफी दिनों बाद लगा कि सब कुछ ठीक हो जाएगा, लेकिन वे ऐसा तांडव मचा जाएँगे, यह तो शायद उन्होंने भी नहीं सोचा होगा।

तीसरे ओवर में जब उन्होंने केमार रोच को लांग ऑन पर छक्का जड़ा तो आने वाले तूफान की हल्की-सी चमक दिखी। इसके बाद तो रनों की बारिश के बीच सब कुछ इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। इस पूरी पारी के दौरान वे सिर्फ कुछ क्षणों के लिए तब चिंतित लगे, जब 170 के स्कोर पर उन्हें जीवनदान मिला।

यह ठहराव भी कुछ ही देर का था और वे फिर खुलकर खेले। चौकों-छक्कों के जरिए उन्होंने भले ही 142 रन बनाए, लेकिन सिंगल-डबल लेने में भी कोई कोताही नहीं बरती। टेस्ट मैचों में तिहरा और वन-डे में दोहरा शतक लगा चुके वीरू के प्रशंसकों को अब इंतजार है ट्वेंटी-20 में शतक का। तड़ातड़ क्रिकेट का यह शहंशाह टी-20 में अभी तक सर्वाधिक 68 रन ही बना पाया है।

वीरू की काबिलियत पर किसी को शक नहीं है और मेरा मानना है कि जिस दिन भी वे इस प्रारूप में 15 ओवर तक क्रीज पर टिक गए तो यह उपलब्धि भी अर्जित कर ही लेंगे। होलकरों की इस पावन धरा पर इस कीर्तिमान को रचने के लिए वीरू को बधाई तथा आगामी ऑस्ट्रेलियाई दौरे के लिए शुभकामना। (वेबदुनिया न्यूज)

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