आलोचकों को अपने बल्ले से मुँहतोड़ जवाब देने वाले मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंडुलकर के दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ कानपुर टेस्ट मैच में नही खेलने की खबर से खेलप्रेमियों में मायूसी छा गई है।
अहमदाबाद मे मिली पराजय से खेल प्रमियों में उतनी मायूसी नहीं दिखी जितनी कि सचिन के कानपुर में न खेलने की खबर से हुई।
सचिन के लिए भी यह दुखद स्थिति रही कि चोट के कारण घरेलू श्रंखला में इस तरह बाहर हो जाना पड़ा और उनके प्रशंसक उनकी बल्लेबाजी का वह जलवा नहीं देख सके जो उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में पिछले महीने हुई त्रिकोणीय वन-डे सिरीज के फाइनल में दिखाया था।
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने सचिन की ग्रोइन चोट को देखते हुए यहाँ ग्रीन पार्क स्टेडियम में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 11 अप्रैल से शुरू होने वाले श्रृंखला के तीसरे और अंतिम क्रिकेट टैस्ट मैच से दूर रखकर उन्हें चोट से पूरी तरह उबरने का मौका दिया है।
सचिन के प्रशंसकों का कहना है कि मैच में उनके न खेलने से एक बार फिर उच्चकोटि के कलात्मक खेल को देखने से वंचित होना पड़ेगा। प्रशंसकों का कहना है कि सचिन का मुँह कम बल्ला ज्यादा बोलता है हमारे लिए सबसे बड़ी खुशी यही है कि वह शीघ्र स्वस्थ्य हों।
उनके स्वस्थ्य होने की कहानी उनके बल्ले की जुबानी होती है। इन लोगों का कहना है कि टीम में उनकी मौजूदगी जहाँ प्रतिद्वंदी टीमों में डर पैदा करती है वहीं भारतीय खेमे में उत्साह बढ़ाती है। यहाँ के एक सीनियर क्रिकेटर मनोज पंत का कहना है कि हर खिलाड़ी अपने विशेष गुण के लिए पहचाना जाता है। कोई गेंदबाजी के लिए तो कोई बल्लेबाजी के लिए।
भारतीय टेस्ट टीम के कप्तान अनिल कुंबले ने विश्व क्रिकेट के इतिहास में एक पारी में दस विकेट लेकर कीर्तिमान स्थापित किया तो वीरेन्द्र सहवाग ने दो बार तिहरा शतक जमाकर भारतीय क्रिकेट के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया, लेकिन सचिन का दर्जा इससे कहीं ऊपर है।
प्रशंसकों का कहना है कि टीम में सचिन के बने रहने से ही खिलाड़ियों में साहस का संचार होता रहता है और सचिन ने हमेशा ही अपने आलोचकों की बोलती अपने बल्ले के दम से बन्द की है।