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कंप्यूटर प्रिंटर से स्वास्थ्य खतरे में

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यदी आप के पास कंप्यूटर है, तो उस के साथ जुड़ा एक प्रिंटर भी जरूर होगा। प्रिंटर यदि एक लेजर प्रिंटर है, जिसमें स्याही की जगह महीन पाउडर वाला एक कार्ट्रिज लगता है तो सावधान हो जाइए, आपका स्वास्थ्य खतरे में है।

कंप्यूटर प्रिंटर के कार्ट्रिज वाले पाउडर को टोनर कहते हैं। टोनर के कण इतने महीन होते हैं कि कार्ट्रिज से बाहर वे बड़ी देर तक हवा में तैर सकते हैं और साँस के रास्ते से हमारे फेफड़ों में पहुँच कर हमें बीमार कर सकते हैं।

जर्मनी में फ्राइबुर्ग विश्वविद्यालय के पर्यावरण चिकित्सा और अस्पताल स्वच्छता संस्थान की एक शोध टीम ने इसी को अपनी खोज का विषय बनाया। वह जानना चाहती थी कि टोनर से उड़ने वाले अत्यंत महीन कण जब हमारे फेफड़ों में पहुँचते हैं, तो उनका क्या असर होता है?

उन्होंने टोनर की धूल का फेफड़े की कोषिकाओं के कल्चर यानी संवर्ध से संपर्क कराया। परिणाम उनके लिए बहुत ही आश्चर्यजनक रहा। जैसा कि संस्थान के निदेशक प्रो. फोल्करमेर्स सुंदरमान का कहना है, 'फेफड़े की इन ‍कोशिकाओं को टोनर की धूल के संपर्क में लाने पर उनके जीनों को बड़ा नुकसान पहुँचा। यह नुकसान इतना व्यापक और गहरा पाया गया कि हमें कहना पड़ेगा कि उससे ‍कोशिकाओं के जीनों में म्यूटेशन पैदा होता है।'

फेफड़े का कैंसर भी संभव है : म्यूटेशन को हिंदी में उत्परिवर्तन कहते हैं। यह परिवर्तन आकस्मिक होता है। वह हानिकारक हो भी सकता है और नहीं भी, क्योंकि हो सकता है कि ‍कोशिका अपनी मरम्मत आप कर ले। लेकिन, यह भी हो सकता है कि कुछेक ‍कोशिकाएँ मर जाएँ और मवाद पैदा हो जाए। सबसे बुरा तो तब होगा जब कोई क्षतिग्रस्त ‍‍कोशिका कैंसर की ‍कोशिका में बदल जाए और फेफड़े का कैंसर पैदा करने लगे।

सुंदरमान कहते हैं, 'यह एक संभावना है, जिसे गंभीरता से लेना होगा। ये पहले नतीजे हमें प्रयोगशला में मिले हैं, तब भी वे इस तथ्य के महत्वपूर्ण सूचक हैं कि प्रिंटर जैसे उपकरणों से जो पदार्थ हवा में पहुँच सकते हैं, वे मानव शरीर के भीतर जाकर ‍कोशिकाओं में म्यूटेशन पैदा कर सकते हैं।'

और भी कई लक्षण : फ्राइबुर्ग के शोधक और डॉक्टर अभी दावे के साथ यह नहीं कह सकते कि कंप्यूटर प्रिंटरों और फोटोकॉपी मशीनों से स्वास्थ्य के लिए क्या ठोस खतरे पैदा होते हैं। लेकिन संकेत यही हैं कि वे स्वास्थ्य के लिए अच्छे तो नहीं ही हैं। विन्फ्रिड एबनर फ्राइबुर्ग विश्वविद्यालय के पर्यावरण चिकित्सा संस्थान में बहिरंग चिकित्सा विभाग के निदेशक हैं और ऐसे रोगियों की देखभाल करते हैं, जो गंभीर रूप से बीमार हैं।

एबनर कहते हैं, 'वे अक्सर साँस लेने में तकलीफ की शिकायत करते हैं। उनकी श्वासनली के ऊपरी हिस्से में जलन होती है। आँखें जलने, लाल हो जाने या आँखों से पानी आने की बार-बार शिकायत करते हैं।'

प्रिंटर का टोनर समस्या की जड़ : रोगी कई बार पूरे शरीर में अजीब से दर्द की भी शिकायत करते हैं। यह कहना मुश्किल है कि ये सारे लक्षण कंप्यूटर प्रिंटरों के टोनर वाली धूल की ही देन हैं। इसे जानने के लिए और खोज करने की जरूरत है। लेकिन जहाँ तक चिरकालिक तकलीफों की बात है, वैज्ञानिकों को कुछ ठोस इशारे जरूर मिले हैं। उन्होंने पाया कि हर प्रिंटर या फोटोकॉपी मशीन एक समान टोनर-धूल हवा में नहीं फैलाती और यह भी कि हर टोनर की बनावट एक ही जैसी नहीं होती।

प्रो. फ्रोल्करमेर्स सुंदरमान के मुताबिक, 'यह इस पर भी निर्भर करता है कि टोनर किन चीजों के मेल से बना है। किस मुद्रणविधि का उपयोग किया जा रहा है। किस तरह का कागज इस्तेमाल किया जा रहा है। प्रिंटर कितना नया या पुराना है। उसका रखरखाव कैसा रहा है। हमने ऐसे भी प्रिंटर पाए, जो टोनर कण उड़ाने वाले पंखे की तरह थे, पर मरम्मत और साफ-सफाई के बाद वे बिल्कुल ठीक हो गए।'

प्रिंटर अलग कमरे में रखें : फ्राइबुर्ग के इन विशेषज्ञों की सलाह है कि प्रिंटरों और कॉपिंग मशीनों को यथासंभव किसी हवादार अलग कमरे में रखना चाहिए, ताकि उनके टोनर से निकले धूलकण एक जगह जमा न हो सकें। जर्मनी के ही रोस्टोक विश्वविद्यालय के एक अप्रकाशित अध्ययन में यह भी पाया गया है कि प्रिंटर में इस्तेमाल होने वाले टोनर के सूक्ष्म कण एस्बेस्टस की तरह ही कैंसरजनक भी हो सकते हैं। उनकी मरम्मत और दैनिक रखरखाव का काम करने वाले तकनीशियनों के बीच फेफड़े के कैंसर के मामले समय के साथ बढ़ते गए पाए गए।

- राम यादव

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