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करियर: बदलती ख्वाहिशें, बदलते रास्ते

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- अशोक कुमार
एक फिल्म आई 'रॉक ऑन'। जिंदगी बस उसी तर्ज पर झूमती है, जहाँ चाहे, ले जाती है। तभी तो जिसे इंजीनियर बनना था, वह सुरों से खेल रहा है। कोई नेट और जेआरएफ क्लिर करके एमबीए की तरफ जा रहा है, तो किसी को फिल्में लिखनी हैं।

18 साल का तुषार रतूड़ी चेन्नई गया तो था इंजीनियरिंग करने, लेकिन आज ए.आर. रहमान के म्यूजिक इंस्टिट्यूट में सुरों के साथ अठखेलियाँ कर रहा है। एक तरफ इंजीनयरिंग को छोड़, संगीत की दुनिया में कैसे हुआ आना और कब पैदा हुआ यह शौक।

इस बारे में वह बताते हैं, 'बस जब स्कूल में था और 12-13 साल की उम्र थी, तभी से यह शौक पैदा हुआ। कानों में गाने पड़ते रहते थे। लगता था कि ऐसा ही कुछ करना चाहिए।' खैर फिर इंजीनियरिंग में दाखिला ले लिया, लेकिन एक साल पढ़ाई करने के बाद ही उन्हें समझ आ गया कि यह उनके मतलब की चीज नहीं है।

भूगोल से प्रबंधन : कुछ इसी तरह नवीन ने भी अपने लिए अलग रास्ता चुना। भूगोल में एमए किया, लेक्चरर बनने के लिए जेआरएफ का इम्तिहान भी क्लियर कर लिया, लेकिन फिर चुना मैनेजमेंट करियर का रास्ता और आजकल एचआर मैनेजर हैं। अपने बारे में वह बताते हैं, 'मैंने जेआरएफ क्लियर करने के बाद एक अस्थाई लेक्चरर के तौर पर पढ़ाया भी। लेकिन मजा नहीं आया। इस बीच सिविल सर्विसेज का मेरा क्रेज भी खत्म होने लगा, तो फिर सोचा मेरे लिए बस मैनेजमेंट की सही लाइन है।'

संभावनाओं पर नजर : मामला मन की संतुष्टि का है, साथ ही नौजवानों को करियर के बेहतर मौकों की हमेशा तलाश रहती है। इसलिए वे कई बार बिल्कुल नया प्रफेशन चुनते हैं, तो कई बार मिलते जुलते फील्ड में हाथ आजमा लेना चाहते हैं।
नवीन कहते हैं, 'ग्रेजुएशन करने के बाद आप अपने सामने मौजूद तमाम संभावनाओं को तलाशते हैं और तय करते हैं कौन का फील्ड ऐसा है जो पैसे के साथ साथ आपको मन की संतुष्टि भी देगा।'

आत्मविश्वास की दरकार : करियर के बेहतर मौकों का फायदा उठाने और अपनी काबलियत को अलग-अलग तरीके से साबित करने वालों में मोहित भी शामिल हैं। उन्होंने पहले टीवी पत्रकारिता की फिर एड एजेंसी में काम करने लगे और अब फिल्म राइटिंग में हाथ आजमाना चाहते हैं और कोशिश शुरू भी कर दी है। वह कहते हैं कि मल्टीटैलेंटेड होना आज के समय की माँग है।

मल्टीटैलेंटेड लोग शायद ज्यादा समय तक किसी एक ही काम को कर भी नहीं सकते, लेकिन एक फील्ड को छोड़ दूसरे में जाना थोड़ा मुश्किल तो होता ही होगा। नवीन कहते हैं कि जब उन्होंने मैनेजमेंट की पढ़ाई शुरू की तो मानों उनकी दुनिया ही बदल गई। वह बताते हैं, 'कहाँ ह्यूमेनिटि की पढ़ाई और कहाँ मैनेजमेंट। दो बिल्कुल अलग-अलग चीजें। खैर मैंने मेहनत की और आत्मविश्वास बनाए रखा, तो सब कुछ मुमकिन हो गया।'

मशहूर गायक रब्बी शेरगिल वैसे कई बार ऐसा भी होता है कि माँ बाप जो खुद नहीं कर पाते, वह अपने बच्चों से करवाना चाहते हैं। तुषार की बात करें, तो उनके घर में संगीत से किसी को कोई खास लेना-देना नहीं था। उनके माता पिता, दोनों ही बैंक में अधिकारी हैं। ऐसे में बेटे को इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए क्या घरवालों ने ही तो नहीं भेजा।

तुषार कहते हैं, 'नहीं ऐसी बात नहीं है। मैं अपनी मर्जी से गया था। साइंस की पढ़ाई करके ज्यादातर लोग इंजीनीयरिंग ही तो करना चाहते हैं।' तुषार कहते हैं कि इंजीयरिंग उन्हें बोरिंग लगी और चेन्नई में ही ए.आर. रहमान इंस्टिट्यूट है तो फिर वहाँ दाखिला लेने का मौका वह हाथ से भला क्यों जाने देते।

सीखा हुआ खाली नहीं जाता : वैसे आप किसी भी पेशे में रहें, लेकिन जो आपने एक बार सीख लिया, वह कहीं न कहीं आगे काम ही आता है। तुषार को साइंस का बैकग्राउंड साउंड इंजीनियरिंग को समझने में मदद करता है तो नवीन को एचआर मैनेजर के तौर पर कॉलेज के जमाने में पब्लिक स्पीकर होने का बहुत फायदा मिलता है, लेकिन मोहित की मानें तो हर फील्ड में जाने के लिए आजकल बाकायदा खास कोर्स की बाध्यता कई बार आपके कदमों को रोकती है।

वह कहते हैं, 'मान लीजिए किसी एड एजेंसी में वैकेंसी निकली तो कहा जाता है कि आपको इंग्लिश ऑनर्स होने चाहिए। साथ ही आपने एडवरटाइजिंग का डिप्लोमा किया हो। सिर्फ इस बुनियाद आपको शायद ही कोई नौकरी दे कि आप क्रिएटिव हो।'

बहरहाल जहाँ चाह होती है, वहाँ आप राह भी बना लेते हैं। मोहित कहते हैं कि चाहे टीवी पत्रकारिता रही हो, एड फिल्म मेकिंग या फिर फिल्म राइटिंग, ये सभी उन्हें अपनी क्रिएटिविटी को जाहिर करने का मौका देते हैं। वह अब दो स्क्रिप्ट लिख चुके हैं, जो शायद हमें जल्द ही सिनेमा के पर्दे पर साकार होती दिखाई दें। मोहित ठीक वैसे ही कुछ दिलचस्प आईडियाज पर्दे पर पेश करने की ख्याहिश रखते हैं, जैसी दिलचस्प जिंदगी है।

तो जिंदगी के साथ चलते जाइए, देखें कहाँ तक ले जाती है।

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