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दुनिया का सबसे बड़ा स्कूली किचन

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हमें फॉलो करें जयपुर
BBC
स्कूली बच्चों को दोपहर का पौष्टिक खाना खिलाना बड़ी समस्या रही है। लेकिन राजस्थान की राजधानी जयपुर में उत्तर भारत का सबसे बड़ा रसोईघर 'अक्षयपात्र' है जहां हर सुबह जयपुर के डेढ़ लाख स्कूली बच्चों के लिए भोजन पकाया जाता है।

क्या कभी आपने ऐसी मशीन देखी है जो घंटे में चालीस से साठ हजार रोटियां बनाने के साथ-साथ उन्हें घी से चुपड़ भी डाले। क्या कभी आपने ऐसे पतीले देखे हैं जिनमें तीन हजार लीटर दाल तैयार हो। क्या कोई ऐसा रसोईघर देखा है जो हर सुबह डेढ़ से दो लाख बच्चों के लिए खाना पका कर उसे चालीस से अस्सी किलोमीटर की दूरी पर स्थित स्कूलों में भोजन की घंटी बजने से पहले ही पहुंचा दे।

जयपुर का अक्षयपात्र ऐसा ही रसोईघर है। स्वयंसेवी संस्था अक्षयपात्र फाउंडेशन ने देश के दस राज्यों में 22 स्थानों पर ऐसी रसोइयां बनाई हैं जो तेरह लाख बच्चों को रोजाना गर्म खाना मुहैया कराती है।

मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम : भारत में यूं तो 1925 में मद्रास नगरपालिका द्वारा स्कूली बच्चों को इंटरवल में खाना खिलाने की शुरुआत कर दी गयी थी पर इसे बल मिला 2001 में सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले से जिसमें देश के सभी सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए 300 कैलोरी और 100 ग्राम प्रोटीन वाला भोजन निःशुल्क उपलब्ध कराने की बात कही गयी थी।

और इसी के साथ अस्तित्व में आया अक्षयपात्र, जिसने बंगलोर के पांच स्कूलों में पढ़ने वाले पंद्रह सौ बच्चों के लिए रसोईघर शुरू कर अपने मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम की शुरुआत की। आज अक्षयपात्र देश के दस हजार से ज्यादा स्कूलों में बच्चों को दोपहर का भोजन उपलब्ध करा रहा है।

अक्षयपात्र की रसोई में एक साथ कई बर्तनों में लाखों रोटियां और हजारों लीटर दाल एक ही समय में बनाई जाती है। हर रसोई में रोटी बनाने वाली मशीन है जो छह हजार किलो आटे से दो लाख रोटियां बनाने की क्षमता रखती है। चावल बनाने का बर्तन पांच सौ लीटर और दाल का बर्तन डेढ़ से तीन हजार लीटर की क्षमता वाला है।

चाहे आटा गूंथना हो, चावल साफ करना हो या फिर सब्जी काटनी हो, यहां हर काम के लिए अलग-अलग मशीनें मौजूद हैं। बर्तन धोए तो हाथ से जाते हैं पर उन्हें भाप से स्टरलाईज किया जाता है ताकि बच्चों को मिलने वाला खाना बिल्कुल शुद्ध हो।

सहयोग को आगे आते हाथ : अक्षयपात्र को यूं तो सबसे ज्यादा आर्थिक सहायता भारत सरकार के मध्यान्ह भोजन विभाग से मिलती है पर उसे विदेशी दानदाताओं की भी मदद मिल रही है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भी अब इस काम में आगे आए हैं और अपने क्लिंटन ग्लोबल इनिशिएटिव से अक्षयपात्र को जोड़ रहे हैं। अमेरिका में रहने वाले प्रवासी भारतीय देश देशपांडे का देश-फाउंडेशन क्लिंटन के इस कार्यक्रम को धन उपलब्ध करवा रहा है।

भारत के प्रसिद्ध उद्योगपति रविंदर चामरिया भी इस अभियान में शामिल हो गए हैं और दोनों ने मिलकर सत्तर लाख अमेरिकी डॉलर का दान देने की घोषणा की है। इस सिलसिले में पिछले छह महीनों में चार लाख अमेरीकी डॉलर दिए भी जा चुके हैं जिससे अक्षयपात्र ने उड़ीसा में अपनी नई रसोई शुरू की है, जबकि लखनऊ के रसोईघर का विस्तार किया जा रहा है। इनसे लगभग एक लाख बच्चों को रोजाना गर्म खाना मुहैया किया जा सकेगा।

टेस्टी और स्वस्थ खाना : प्रसिद्ध एस्ट्रोनॉट सुनीता विलियम्स के गुजरात स्थित पैतृक गांव जुलासन के पास है डींगूचा प्राइमरी स्कूल। इस स्कूल में कक्षा छह में पढ़ने वाला देवल कन्नूजी ठाकुर अक्षयपात्र के खाने का मुरीद है। उसके प्रिंसिपल जयेश भाई पटेल बताते हैं कि देवल अभी से स्पेस मॉडल और रॉकेट बनाने लगा है। उसका वक्त या तो मॉडल बनाने में गुजरता है या फिर गणित की क्लास में। पर खाना परोसे जाने से दस मिनट पहले ही वो भोजन कक्ष के चक्कर लगाना शुरू कर देता है। इस भोजन ने उसे काफी मदद दी है क्योंकि घर की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण स्कूल में मिलने वाला भोजन ही उस के दिन का पहला और कभी कभी तो आखिरी भोजन होता है।

जयपुर से पैंतीस किलोमीटर दूर चाकसू के खाजलपुरा गांव के बच्चों के लिए तो यह भोजन किसी वरदान से कम नहीं है। स्कूल के प्रिंसिपल रमेश पारीख बताते हैं कि उनके स्कूल के ज्यादातर बच्चे किसान परिवारों के हैं और उनके मां-बाप सुबह जल्दी काम पर निकल जाते हैं। ऐसे में स्कूल में मिलने वाला भोजन ही उनके लिए एकमात्र सहारा है।

अक्षयपात्र के बड़े मुरीदों में प्रसिद्ध गायक शंकर महादेवन और मशहूर शायर जावेद अख्तर शामिल हैं। दोनों को यह कार्यक्रम इतना भाया है कि जावेद अख्तर ने तो बच्चों को स्कूल आने और उन्हें नियमित रूप से भोजन करने के लिए उत्साहित करने के उद्देश्य से एक गीत लिख डाला है। जैसलमेर में शूट किए गए इस गीत 'तुम्हें लिखना है, पढ़ना है, आगे ही बढ़ना है' ने ऐसी धूम मचाई कि देश के मेट्रो रेलवे स्टेशनों से ले कर विभिन्न टीवी चैनलों पर यह छा गया।

रिपोर्ट: जसविंदर सहगल, जयपुर
संपादन: महेश झा

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