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नए जीन की खोज, चावल का पौधा नहीं डूबेगा

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- एजेंसियाँ/प्रिया एसेलबोर्न

तेज बरसात की वजह से चावल के पौधे पानी में पूरे डूब जाते हैं। अब जापानी वैज्ञानिकों ने ऐसे जीनों का पता लगाया है जिनके जरिए चावल के पौधे का विकास इस तेजी से बढ़ाया जा सकता है कि वह पानी में डूबे ही नहीं।

भारत में चावल उगाने वाले किसान जहाँ बरसात के लिए तरसते हैं, वहीं उससे बहुत डरते भी हैं। उनके मन में कई सवाल होते हैं। क्या बरसात ठीक वक्त पर आएगी, ज्यादा तेज और लंबी तो नहीं होगी? कितनी बार फसल बरसात की वजह से खराब हो जाती है और हजारों किसानों के लिए भारत में ही नहीं बल्कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और दूसरे एशियाई देशों में भी गुजारा करना मुश्किल हो जाता है।

तेज बारिश से बचाव : अक्सर यह देखा गया है कि तेज बरसात की वजह से चावल के पौधे पानी में पूरे डूब जाते हैं। सिर्फ गहरे पानी में उगने वाले चावल को बरसात से कोई समस्या नहीं होती। और अब जापानी वैज्ञानिकों ने ऐसे जीनों का पता लगाया है जिनके जरिए चावल के पौधे का विकास इस तेजी से बढ़ाया जा सकता है कि वह पानी में डूबे ही नहीं।

खेतों में बढ़ता हुआ जलस्तर चावल के पौधों को पहले तो अच्छा लगता है। सबसे जरूरी है कि पौधे के ऊपरी हिस्से हवा के संपर्क में बने रहें। लेकिन मानसूनी इलाकों में बरसात और बाढ़ की वजह से चावल के खेतों में पानी इतना ज्यादा भर सकता है कि धान के पौधे पूरे डूब जाएँ। इससे वे सड़ने लगते हैं और मर भी जाते हैं।

ऊँची धान : चावल की सिर्फ एक ही प्रजाति को इससे कोई समस्या नहीं होती। पानी के साथ-साथ उसके तने वाले डंठल भी बढ़ते जाते हैं। यह कहना है नागोया विश्वविद्यालय के मोतोयुकी अशिकारी का।

गहरे पानी में उगने वाले चावल के पौधे, पानी की गहराई से ऊपर बने रहने के लिए, एक मीटर तक बढ़ सकते हैं। वे हवा के संपर्क में बने रहने के लिए ऐसा करते हैं। वे अंदर से खोखले होते हैं, लेकिन उसके जरिए पौधा पानी की सतह से ऊपर पहुँच सकता है और ऑक्सीजन पा सकता है। यह कुछ ऐसा ही है कि जब आप गोताखोरी कर रहे होते हैं, तो पानी से ऊपर निकली एक नली से साँस लेते हैं।

धान की पढ़ाई : बरसात के समय ऐसे चावल के तने 25 सेंटीमीटर प्रतिदिन की एक अनोखी गति से बढ़ सकते हैं। अशिकारी और उनकी टीम ने इस प्रक्रिया को समझने के लिए इस चावल के जीनों से यह समझने की कोशिश की कि चावल बरसात के वक्त अपने विकास को किस तरह नियंत्रित करता है। अध्ययनों से अब तक जितना पता चला है वह यह है कि एक गैसीय विकास-हॉर्मोन एथीलिन इसके लिए जिम्मेदार हैं।

जैसाकि नीदरलैंड में उएतरेश्त विश्वविद्यालय के रेंस वोएसेनेक बताते हैं कि जब पौधा पूरी तरह पानी में डूब जाता है तब यह गैस ठीक तरह से मुक्त नहीं हो पाती। यू कहें कि वह पौधे में ही कैद हो जाती है। यानी पौधे में एथिलिन की मत्रा बढ़ने लगती है। यह पौधे के लिए संकेत है कि वह पानी में डूब रहा है और उसे कुछ करना है।

जीन की तहें : जापानी विशेषज्ञों ने पता लगाने की कोशिश की कौन से जीन इस स्थिति में सक्रिय होते हैं। उन्होंने ऐसे जीन पाए जिनको वे गोताखोरी में इस्तेमाल होने वाली नली के अनुरूप स्नोर्कल जीन कहते हैं। ये जीन तभी सक्रिय होते हैं जब पौधे के तने में एथिलिन की मत्रा बढ़ने लगती है। वे पौधे के विकास को तेज करने वाले दूसरे तत्वों का उत्पादन शुरू कर देते हैं।

मोतोयुकी अशिकारी कहते हैं कि हमने क्रॉमोसोम 1,3 और 12 पर यह तथाकथित नलिका जीन पाए। उन्हें यदि सामान्य चावल के पौधों में भी मिलाया जा सके। ऐसे में बरसात के वक्त सामान्य चावल के पौधे भी वही करेंगे जो गहरे पानी में उगने वाला चावल करता है। मुझे पूरा विश्वास है कि हम चावल की हर प्रजाती को गहरे पानी में उगने वाले चावल की प्रजाती बना सकते हैं।

फसल कम : यानी इन जीनों की मदद से चावल की उस फसल को बचाया जा सकता है जो पानी की अधिकता के प्रति बहुत संवेदनशील है। जहाँ अक्सर बाढ़ आती है वहाँ के किसानों की इस बड़ी समस्या का समाधान हो सकता है। एक और समस्या भी दूर हो सकती है। गहरे पानी में उगने वाला चावल बहुत ही कम फसल देता है। प्रति हेक्टेयर सिर्फ एक टन जो उपजाऊ किस्मों की तुलना में सिर्फ 20 फीसदी के बराबर है।

नीदरलैंड के विशेषज्ञ रेंस वोएसेनेक बहुत ही आशावादी हैं, 'विकास के लिए जिम्मेदार इन जीनों के बारे में पता चल जाने के बाद अब हम चावल की अलग-अलग प्रजातियों के बीच प्रकृतिक संवर्धन के जरिए, यानी वर्णसंकर के जरिए भी इन जीनों को उनके पौधे में डाल सकते हैं। इसके लिए किसी जीन तकनीक जरूरत ही नहीं हैं।'

जापान के विशेषज्ञों ने यह काम शुरू कर भी दिया है। उनके अध्ययनों से एक बार फिर पता चलता है कि पौधों के संवर्धन के लिए उनके जीनों में असामान्य गुणों की तालाश कितनी जरूरी है।

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