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एक सूटकेस बर्लिन और बॉन के बीच

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, गुरुवार, 2 सितम्बर 2010 (18:51 IST)
DW
शुक्रवार और रविवार की शाम को हमेशा एक ही तस्वीर- बर्लिन और बॉन के बीच उड़ान भरने वाले विमानों में भीड़ लगी रहती है। टाई-सूट या लेडिज सूट में ये संघीय सरकार के अधिकारी होते हैं। पहले यह दृश्य देखने को नहीं मिलता था।

31 अगस्त, 1990 को दोनों जर्मन देशों के बीच एकीकरण समझौता हुआ था। इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि बर्लिन संयुक्त जर्मन राष्ट्र की राजधानी होगा। लेकिन अगले ही वाक्य में उसके आधार पर प्रश्नचिह्न लगाया गया था। जर्मनी के एकीकरण के बाद संसद और सरकार के स्थान के सवाल पर निर्णय लिया जाएगा।

और 20 जून, सन 1991 को जब संयुक्त जर्मनी की संसद में फैसला लिया गया, तो सांसद दलगत आधार पर नहीं, भौगोलिक रूप से बँटे हुए थे। दस घंटे तक जबरदस्त बहस चली, इतिहास की गहराई में झाँकते हुए बर्लिन और बॉन के पक्ष में भावनात्मक भाषण दिए गए। इस ऐतिहासिक फैसले के लिए सभी दलों की ओर से अपने सांसदों को विवेक के अनुसार वोट देने की छूट दी गई थी। नतीजा था बर्लिन के पक्ष में 338 सांसद और बॉन के पक्ष में 320...।

सभी दलों के संसद बँटे हुए थे, लेकिन अपवाद थे पूर्वी जर्मन के कम्युनिस्टों से बनी पार्टी पीडीएस के सांसद। वे सब के सब पूरब के सांसद थे, और लगभग सभी ने बर्लिन के पक्ष में वोट दिया था। अगर बाकी दलों का हिसाब लगाया जाए, तो उनमें पश्चिमी हिस्से के सांसद अधिक थे, जो अधिकतर बॉन के पक्ष में थे, यानी अगर पश्चिम के सदस्यों की चलती, तो बॉन ही राजधानी बना रहता। यानी कहा जा सकता है कि पूरब के कम्युनिस्टों ने तय किया कि राजधानी बर्लिन ही होगा।

गहरी रात में फैसला लिया गया और उसके बाद इस फैसले को अमल में लाने में कई साल लग गए। बॉन के लिए राजनीतिक और आर्थिक मुआवजे की व्यवस्था की गई। हर मंत्रालय की एक शाखा बॉन में रखी गई। और आज भी स्थिति यह है कि बर्लिन में संघीय सरकार के 8 हजार कर्मचारी है, तो बॉन में 9 हजार।

प्रसिद्ध जर्मन गायिका मारलीन डीटरिष का एक गीत है, इष हाबे आइनेन कॉफ्फर इन बर्लिन- बर्लिन में मैं एक सूटकेस छोड़ आया हूँ। यहाँ बात उलटी है। राजधानी बर्लिन चली गई, लेकिन उसका एक सूटकेस अभी बॉन में पड़ा है। देश के सांसदों और संघीय सरकार के कर्मचारियों में से अधिकतर पश्चिमी हिस्से के हैं। बहुतों को घर-बार भी अभी तक पश्चिमी हिस्से में है। शुक्रवार शाम को वे लौटते हैं। लेकिन इस बीच बर्लिन से उनका गहरा नाता हो चुका है। कम से कम एक सूटकेस वे वहां छोड़ आते हैं।

- उज्ज्वल भट्टाचार्य, बॉन

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