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जलवायु परिवर्तन: दुनिया का 90 प्रतिशत समुद्री भोजन खतरे में

हमें फॉलो करें जलवायु परिवर्तन: दुनिया का 90 प्रतिशत समुद्री भोजन खतरे में

DW

, गुरुवार, 29 जून 2023 (09:07 IST)
एक नए शोध में पता चला है कि जलवायु और पर्यावरणीय परिवर्तन (Climate and environmental change) ने दुनिया के 90 प्रतिशत से ज्यादा समुद्री भोजन (seafood) को खतरे में डाल दिया है। सबसे ज्यादा खतरा चीन, नॉर्वे और अमेरिका जैसे सबसे बड़े उत्पादकों को होगा। बढ़ते तापमान और प्रदूषण जैसे कारणों को इस परिवर्तन का जिम्मेदार माना जा रहा है।
 
'ब्लू फूड' यानी समुद्री भोजन में 2190 से भी ज्यादा मछलियों, शेलफिश, पौधे, एल्गी और ताजे पानी में पाली गई 540 से भी ज्यादा प्रकार की नस्लें शामिल हैं। इनसे दुनियाभर में 3.2 अरब लोगों को भोजन मिलता है। पत्रिका 'नेचर सस्टेनेबिलिटी' में छपे इस अध्ययन के मुताबिक इन खतरों के अनुकूल कदम उठाने की दिशा में पर्याप्त प्रगति नहीं हो रही है।
 
स्टॉकहोम रेसिलिएंस सेंटर में शोधकर्ता और इस शोध की सह लेखिका रेबेका शार्ट ने बताया कि हालांकि हमने जलवायु परिवर्तन के मोर्चे पर थोड़ी तरक्की हासिल की है, ब्लू फूड सिस्टमों को लेकर हमारी अनुकूलन रणनीतियां अभी ठीक से विकसित नहीं हुई हैं और उन पर तुरंत ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
 
इस उद्योग में हो रहे अति-उत्पादन ने वेटलैंड ठौर-ठिकानों को नष्ट कर दिया है और पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाया है। लेकिन इसके अलावा और भी कारण हैं, जो समुद्री भोजन की मात्रा और गुणवत्ता पर असर डाल रहे हैं। इनमें समुद्र का बढ़ता स्तर, बढ़ता तापमान, बारिश में बदलाव, ज्यादा एल्गी का होना और पारे, कीटनाशकों और एंटीबायोटिक से प्रदूषण जैसे कारण शामिल हैं।
 
शोध के सह-लेखक और चीन के शियामेन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर लिंग चाओ ने कहा कि मानवों द्वारा लाए गए पर्यावरणीय बदलाव से जो कमजोरी उत्पन्न होती है, उससे ब्लू फूड के उत्पादन पर बहुत दबाव पड़ता है। हम जानते हैं कि एक्वाकल्चर और मछली पकड़ने के व्यवसाय से अरबों लोगों की आजीविका चलती है और पोषण संबंधी जरूरतें पूरी होती हैं। चीन, जापान, भारत और वियतनाम में दुनिया के पूरे एक्वाकल्चर का 85 प्रतिशत उत्पादन होता है और इस शोध में कहा गया है कि इन देशों की स्थिति को मजबूत बनाना प्राथमिकता होनी चाहिए। समुद्री भोजन पर निर्भर रहने वाले छोटे द्वीप राष्ट्र भी विशेष रूप से कमजोर हैं।
 
चाओ ने कहा कि मार्च में समुद्र में सस्टेनेबल विकास पर संयुक्त राष्ट्र की जिस संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे, वह स्टेकहोल्डरों की साझा हित में कदम उठाने में मदद कर सकता है, लेकिन आगे और भी जोखिम नजर आ रहे हैं। प्रशांत महासागर में स्थित नाउरू समुद्र तल से धातुओं के खनन की गतिविधियों में अग्रणी भूमिका निभा रहा है, लेकिन पर्यावरणविदों का कहना है कि इससे समुद्री जीवन का भारी नुकसान हो सकता है।
 
नॉर्वे भी एक और बड़ा समुद्री भोजन का उत्पादक है। पिछले हफ्ते उसने घोषणा की कि अब वह भी समुद्री इलाकों में खनन की इजाजत देगा, लेकिन इसके बाद उसे काफी आलोचना झेलनी पड़ी। चाओ कहते हैं कि समुद्र तल में खनन का जंगली मछलियों की आबादी पर असर पड़ेगा। कई वैज्ञानिक अब सरकारों से मांग कर रहे हैं कि वो मूल्यांकन करें कि खनन कहां करना है जिससे इस असर को कम किया जा सके।
 
-सीके/एए (रॉयटर्स)

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