भारत में आप जहां जाएंगे प्रदूषण वहां आपका पीछा करेगा। गांव भी सुरक्षित नहीं हैं। प्रदूषण संबंधी 75 फीसदी मौतें ग्रामीण इलाकों में ही हुई हैं।
1.3 अरब की आबादी वाले भारत की दो तिहाई जनसंख्या गांवों में रहती है। आम तौर पर गांवों की आबोहवा को शहरों के मुकाबले साफ सुथरा माना जाता है, लेकिन एक रिसर्च में यह बात गलत साबित हुई है। आईआईटी बॉम्बे और हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट के साथ मिलकर अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने भारत में पर्यावरण की हालत पर रिसर्च की। अमेरिकी न्यूज चैनल सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक नए शोध में पता चला कि 2015 में प्रदूषण के चलते भारत में जितनी मौतें हुईं, उनमें से 75 फीसदी मामले गांवों के थे।
शोध में शामिल आईआईटी बॉम्बे के प्रोफेसर चंद्रा वेंकटरमण कहते हैं, "वायु प्रदूषण राष्ट्रीय, पूरे भारत की समस्या है। यह सिर्फ शहरी इलाकों या महानगरों तक ही सीमित नहीं है, और अनुपात न देखा जाए तो इसका असर ग्रामीण भारत पर शहरी भारत से कहीं ज्यादा है।"
वायु प्रदूषण को जानलेवा धूल के बहुत ही छोटे कण बनाते हैं। इन कणों को पीएम2.5 कहा जाता है। ग्रामीण इलाकों और शहरी इलाकों में पीएम2.5 कणों का स्तर करीब एक जैसा मिला। वैज्ञानिकों के मुताबिक आबादी ज्यादा होने और कमजोर स्वास्थ्य सेवाओं के चलते गांवों में मौतें भी ज्यादा हुईं।
रिसर्च के दौरान हर राज्य के आंकड़े जुटाए गए। 2015 में भारत में वायु प्रदूषण के चलते करीब 10 लाख लोगों की मौत हुई। बीते 25 साल में आर्थिक विकास के साथ साथ भारत में प्रदूषण की समस्या भी बढ़ती चली गई। नई रिसर्च के मुताबिक खेतों में पुआल और घरों में लकड़ी या गोबर के उपले जलाने से सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण होता है। दूसरे नंबर पर गाड़ियों से निकलने वाला धुआं है। अगर इस प्रदूषण के खिलाफ तुरंत प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो 2020 तक भारत में हर साल वायु प्रदूषण 16 लाख लोगों की जान लेगा।