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असम में भारतीयों को भी साबित करनी होगी नागरिकता

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, मंगलवार, 24 जुलाई 2018 (12:59 IST)
पूर्वोत्तर राज्य असम में लाखों बांग्लाभाषी मुसलमान फिलहाल आतंक के साए में जी रहे हैं। इसकी वजह है नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) का अंतिम मसविदा।
 
 
लगभग तीन साल से एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया जारी रहने के बाद अब 30 जुलाई को उसका अंतिम मसविदा प्रकाशित किया जाएगा। इसमें जिनके नाम नहीं होंगे उनको अवैध नागरिक माना जाएगा। हालांकि केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि तमाम भारतीयों को इस मसविदे के प्रकाशन के बाद भी अपनी नागरिकता साबित करने के पर्याप्त मौके दिए जाएंगे।

लेकिन बावजूद इसके लोगों में फैला आतंक खत्म नहीं हो रहा है। लाखों लोगों को धड़कते दिलों से 30 जुलाई का इंतजार है। पहले इसका प्रकाशन 30 जून को होना था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में प्राकृतिक आपदा को ध्यान में रखते हुए इसकी समयसीमा एक महीने बढ़ा दी थी।
 
 
क्या है एनआरसी?
असम में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर और उसकी निगरानी में वर्ष 2015 में एनआरसी को अपडेट करने का काम शुरू हुआ था। दो साल से भी लंबे समय तक चली जटिल कवायद के बाद बीते साल 31 दिसंबर को एनआरसी के मसविदे का प्रारूप प्रकाशित किया गया था, जिसमें 3।29 करोड़ में से 1।9 करोड़ नाम ही शामिल थे।

एनआरसी के तहत तहत 25 मार्च 1971 से पहले बांग्लादेश से यहां आने वाले लोगों को स्थानीय नागरिक माना जाएगा। लेकिन उसके बाद राज्य में पहुंचने वालों को बांग्लादेश वापस भेज दिया जाएगा। कई राजनीतिक दल व मुस्लिम संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। उनका आरोप है कि सरकार अल्पसंख्यकों को राज्य से बाहर निकालने के लिए ही यह काम कर रही है।
 
 
साल 1951 की जनगणना में शामिल अल्पसंख्यकों को तो राज्य का नागरिक मान लिया गया गया है लेकिन सबसे ज्यादा समस्या 1951 से 25 मार्च 1971 के दौरान आने वाले बांग्लादेशी शरणार्थियों के साथ है। उनमें से ज्यादातर के पास कोई वैध कागजात नहीं होने की वजह से उन पर राज्य से खदेड़े जाने का खतरा मंडरा रहा है। अल्पसंख्यक संगठनों ने आरोप लगाया है कि नागरिकता की पुष्टि करने की प्रक्रिया त्रुटिहीन नहीं है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी समेत राज्य के विभिन्न अल्पसंख्यक संगठनों ने एनआरसी को राज्य से बांग्लाभाषी मुसलमानों को खदेड़ने की साजिश करार दिया है।
 
 
पारिवारिक इतिहास की पुष्टि
एनआरसी में जिनके नाम नहीं होंगे उनको विदेशी घोषित कर असम से बाहर निकाल दिया जाएगा। अब अंतिम सूची के प्रकाशन से पहले ही एनआरसी प्राधिकरण ने इस महीने के पहले सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट में यह कह कर खासकर अल्पसंख्यकों में आतंक फैला दिया है कि पारिवारिक इतिहास और वंशवृक्ष की पुष्टि नहीं होने की वजह से पहले मसविदे में शामिल लगभग डेढ़ लाख नामों को अंतिम मसविदे से हटा दिया गया है।


इनमें 48,456 महिलाओं के नाम भी शामिल हैं। इनमें से ज्यादातर ऐसी हैं जिनकी शादी दशकों पहले हो चुकी है और अब उनके नाती-पोते भी जवान हो चुके हैं। लेकिन एनआरसी प्राधिकरण का दावा है कि उन महिलाओं ने पंचायत का जो प्रमाणपत्र दिया था उससे उनकी नागरिकता की पुष्टि नहीं होती है।
 
 
इनमें से कई महिलाएं देश के दूसरे राज्यों से भी यहां आकर बसी हैं। एनआरसी के संयोजक प्रतीक हाजेला बताते हैं, "पारिवारिक इतिहास का पता नहीं होने की वजह से पहले मसविदे से डेढ़ लाख लोगों के नाम हटाए जाएंगे। इन तमाम लोगों के असम में आने या यहां का नागरिक होने के कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिले हैं।" हाजेला के मुताबिक अंतिम मसविदे में जिनके नाम शामिल नहीं होंगे, उनको बाद में भी अपना दावा पेश करने का मौका मिलेगा। इस बीच केंद्र सरकार ने अंतिम सूची प्रकाशित होने के बाद हिंसा की आशंका के मद्देनजर राज्य में सुरक्षा की परिस्थिति की समीक्षा की है।
 
 
राजनाथ सिंह ने दिया बयान
एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया के तहत राज्य के मुस्लिम बहुल जिलों में 70 फीसदी से ज्यादा लोगों के नाम शामिल नहीं करने के आरोप लग रहे हैं। इससे लोगों में आतंक है कि सूची में नाम नहीं होने की स्थिति में उनको या तो जेलों में डाल दिया जाएगा या फिर बांग्लादेश खदेड़ दिया जाएगा। हजारों परिवारों के साथ विडंबना यह है कि पहली सूची में परिवार के कुछ सदस्यों के नाम तो शामिल थे लेकिन बाकियों के नहीं। अब यह सवाल उनको खाए जा रहा है कि अगर अंतिम मसविदे में भी परिवार के तमाम सदस्यों के नाम शामिल हुए तो क्या होगा।
 
 
वैसे, केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने राज्य के लोगों से एनआरसी को लेकर आतंकित नहीं होने की अपील की है। उन्होंने कहा है कि एनआरसी का अंतिम मसविदा प्रकाशित होने के बाद किसी को भी जेल या शिविर में नहीं रखा जाएगा। मंत्री ने कहा है कि मसविदे में जिनके नाम नहीं हैं, वे लोग भी बाद में विदेशी न्यायाधिकरण के समक्ष अपनी नागरिकता का दावा पेश कर सकते हैं।
 
 
सिंह ने एक बयान में कहा है, "15 अगस्त 1985 को हुए असम समझौते के प्रावधानों के मुताबिक एनआरसी को अपडेट करने की कवायद की गई है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश व निगरानी में ही यह प्रक्रिया पूरी हुई है। इसके तहत तमाम लोगों को अपनी नागरिकता साबित करने के पर्याप्त मौके दिए गए हैं और यह पूरी प्रक्रिया पारदर्शी व निष्पक्ष रही है।" राजनाथ सिंह ने साफ किया है कि 30 जुलाई को एनआरसी का महज मसविदा प्रकाशित होगा। उसके बाद दावों और आपत्तियों के लिए पर्याप्त मौके दिए जाएंगे। उन दावों व आपत्तियों की जांच और उनको सही तरीके से निपटाने के बाद ही अंतिम एनआरसी का प्रकाशन होगा।
 
 
लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह और मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल के बार-बार भरोसा देने के बावजूद अल्पसंख्यक संगठनों में एनआरसी के मुद्दे पर भारी आतंक और असमंजस की स्थिति है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि एनआरसी का मसविदा प्रकाशित होने के बाद राज्य में कानून व व्यवस्था की समस्या पैदा हो सकती है।


हालांकि केंद्र सरकार की सहायता से राज्य के विभिन्न संवेदनशील इलाकों में भारी तादाद में केंद्रीय बल के जवानों को तैनात कर दिया गया है। लेकिन एनआरसी से जिनका जीवन और परिवार बिखरने का खतरा पैदा होगा वह किसी भी हद तक जा सकते हैं। 30 जुलाई के बाद पैदा होने वाली स्थिति से निपटना असम की सर्वानंद सोनोवाल सरकार के लिए एक कड़ी चुनौती साबित हो सकती है।
 
 
रिपोर्ट प्रभाकर, कोलकाता
 

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