Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

कैद से बाहर नहीं निकलेंगी बुरी यादें

हमें फॉलो करें कैद से बाहर नहीं निकलेंगी बुरी यादें
, मंगलवार, 16 अगस्त 2016 (12:42 IST)
हमारी सोच और हमारे फैसले अनुभवों पर निर्भर होते हैं। और यादें हमें अनुभवी बनाती हैं। लेकिन अगर यादें दुख देने लगें तो।
यादें। इनकी मदद से हम अतीत की सैर पर जाते हैं। यादें फैसले लेने में मदद करती हैं और हमें भविष्य के लिए तैयार भी करती हैं। वे हमारे वजूद को परिभाषित करती हैं। लेकिन बुरी यादों और त्रासद अनुभवों का क्या, जो हमारे दिमाग में मुहर लगा देते हैं? यादें जिन्हें हम मिटा देना चाहते हैं, लेकिन ऐसा कर नहीं पाते।
 
अफगानिस्तान में जर्मन सेना के लिए काम कर चुके रॉबर्ट भी ऐसी ही बुरी यादों से जूझ रहे हैं। वे लम्हे उनके दिमाग में घर कर चुके हैं, "ये वे तस्वीरें हैं, जिन्हें मैं कंट्रोल नहीं कर सकता। अचानक मैं आग के गोले के बीच में हूं, लाशें और चेहरे देखता हूं। ये तस्वीरें बनी रहती हैं।"
 
2002 में जब रॉबर्ट अफगानिस्तान में तैनात था, तब उसके साथियों से एक रॉकेट के डिफ्यूज करते हुए जानलेवा भूल हुई और धमाका हो गया। छिटके हुए अंग, जले हुए शरीर की बदबू और बहरा करने वाला शोर। यादें रॉबर्ट को घेर लेती हैं। उसे घबराहट का दौरा पड़ने लगता है। उसकी बीमारी का नाम है, पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर या पीटीएसडी (PTSD)।
 
यूरोपियन न्यूरो साइंस इंस्टीट्यूट में वैज्ञानिक यादों को नियंत्रित करने पर काम कर रहे हैं। आंद्रे फिशर उस कोड को खोजने में लगे हैं जो डर की यादें मिटा दे। वे लॉन्ग टर्म मेमोरी पर काम कर रहे हैं। यहीं भय की यादें स्टोर रहती हैं। वे उस एंजाइम को खोज रहे हैं जो नकारात्मक अनुभवों को स्टोर करने के लिए जिम्मेदार है।
 
(मानसिक बीमारियों को आज भी दिमाग का फितूर और मन का वहम कह कर नजरअंदाज कर दिया जाता है। लेकिन आप खुद में या अपने आस पास वालों में इन लक्षणों को देखते हैं, तो ध्यान दें...)
 
चूहे पर परीक्षणों के जरिये वे इस बात की जांच कर रहे हैं कि डर हमारे दिमाग में किस तरह छुपा होता है। एक्सपेरिमेंट के तहत एक चूहे को पिंजरे में बंद कर दिया जाता है और उसके बाद उसे हल्का इलेक्ट्रिक शॉक दिया जाता है। नतीजा यह होता है कि चूहा डरकर वहां से खिसकता नहीं। वैज्ञानिक इस स्थिति को फ्रीजिंग कहते हैं। एक दिन बाद चूहे को फिर से उसी पिंजरे में डाला जाता है। ऐसा करते ही चूहे को तुरंत इलेक्ट्रिक करंट की याद आती है। और उसका डर वापस लौट आता है। इसे आसान भाषा में समझाते हुए प्रो फिशर कहते हैं, "यह वैसा ही है जैसे कोई आदमी किसी नए शहर में जाता है और वहां उसका सामाना चोरी हो जाता है। अगली बार वहां जाने पर वह बहुत सावधान रहता है। और अगर आप बुद्धिमान हैं तो वहां फिर जाएंगे ही नहीं।"
 
क्रमिक विकास के हिसाब से डर की बात समझ में आती है। यह सुरक्षा का अच्छा तरीका है, यह खतरों की चेतावनी देता है। लेकिन ट्रॉमा की स्थिति में यादें मिटती नहीं, वे लगातार पीछा करती हैं। तथाकथित फ्लैशबैक की शुरुआत कभी भी किसी भी क्षण हो सकती है। हल्का सा झटका भी हादसे की यादें ताजा कर देता है। रॉबर्ट को ऐसा लगता है जैसे अभी भी खतरा हो।
रॉबर्ट के लिए ये वरदान सा होगा कि वह अपनी यादों से पीछा छुड़ा सके। इस बीच आंद्रे फिशर को वह एंजाइम मिल गया है जो डर की यादों को स्टोर करने के लिए जिम्मेदार है। सीडीके5। यदि कोई एंजाइम बुरी यादों को स्टोर करने के लिए जिम्मेदार है तो उसे ब्लॉक करना भी संभव होना चाहिए। यदि आंद्रे फिश एक इन्हिबिटर खोज सकें तो वे बुरी यादों को लॉन्ग टर्म मेमोरी में जाने से भी रोक सकते हैं। किसी अनुभवी का इन्हिबिटर।
 
यदि कल्पना की जाए कि दिमाग कंप्यूटर है, तो कह सकते हैं कि यादें डाटा की तरह स्टोर हैं। यदि आप सक्रिय रूप से उन पर कंट्रोल करना चाहते हैं तो हार्ड ड्राइव के उस हिस्से के साथ संपर्क तोड़ना होगा। वैज्ञानिक इस बात की खोज में लगे हैं कि बुरी यादों के लौटने का रास्ता किस तरह ब्लॉक किया जाए। इसके लिए वे चूहे वाले परीक्षण में एक नए एजेंट को इस्तेमाल करते हैं।
इन्हिबिटर को सीधे चोट लगे चूहे के ब्रेन में डाला जाता है। एनेस्थिसिया के असर के कारण चूहे को कुछ भी पता नहीं चलता। होश आने पर चूहे को फिर से पिंजरे में डाला जाता है। यदि एजेंट काम करे तो चूहा इलेक्ट्रिक शॉक का असर भूल चुका होगा। और सचमुच, वह इस तरह बर्ताव कर रहा है जैसे कुछ हुआ ही नहीं है। मिशन पूरा हुआ। न्यूरो बायोलॉजिस्ट ने एक ऐसा एजेंट खोज लिया है जो डर के खिलाफ कामयाब है।
 
एमजे/ओएसजे

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

इन वजहों से नौकरी छोड़ते हैं लोग