असम में नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजंस के ड्राफ्ट के प्रकाशन की तारीख नजदीक आने के साथ इस मुद्दे पर विवाद तेज हो रहा है। कई अल्पसंख्यक संगठनों ने इसे राज्य के स्थायी मुसलमान वाशिंदों को असम से निकालने की साजिश करार दिया है।
नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजंस (एनआरसी) के प्रकाशन पर विरोध इतना प्रखर है कि एक संगठन ने तो कहा है कि अगर राज्य से 50 लाख मुसलमानों को वापस बांग्लादेश भेजा जाता है तो असम जल उठेगा। दूसरी ओर, मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने कहा है कि एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया का विरोध करने वालों से सुप्रीम कोर्ट की सहायता से निपटा जाएगा क्योंकि यह काम उसी के आदेश पर हो रहा है।
एनआरसी के ड्राफ्ट का प्रकाशन 31 दिसंबर को होना है। लेकिन इसकी राह में पैदा होने वाली कानून अड़चनों और काम की गति को देखते हुए इसके तय समय के भीतर प्रकाशन की उम्मीद कम होने लगी है। सुप्रीम कोर्ट में इससे संबंधित विभिन्न याचिकाओं की सुनवाई चल रही है। इस बीच, इस मुद्दे पर अल्पसंख्यक उग्रवादी संगठनों की ओर से बढ़ते खतरे को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री के घर को बुलेटप्रूफ बनाने का फैसला किया गया है।
क्या है एनआरसी विवाद
राज्य में अवैध तरीके से रहने वाले लोगों की पहचान कर उनको वापस भेजने के मकसद से सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर एनआरसी, 1951 को अपडेट करने का काम चल रहा है। इसके तहत 25 मार्च, 1971 से पहले बांग्लादेश से यहां आने वाले लोगों को स्थानीय नागरिक माना जाएगा। लेकिन उसके बाद राज्य में पहुंचने वालों को बांग्लादेश वापस भेज दिया जाएगा। कई राजनीतिक दल व मुस्लिम संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। उनका आरोप है कि सरकार अल्पसंख्यकों को राज्य से बाहर निकालने के लिए ही यह काम कर रही है।
वर्ष 1951 की जनगणना में शामिल अल्पसंख्यकों को तो राज्य का नागरिक मान लिया गया है। लेकिन सबसे ज्यादा समस्या 1951 से 25 मार्च, 1971 के दौरान आने वाले बांग्लादेशी शरणार्थियों के साथ है। उनमें से ज्यादातर के पास कोई वैध कागजात नहीं होने की वजह से उन पर राज्य से खदेड़े जाने का खतरा मंडरा रहा है। एनआरसी अपडेट करने की प्रक्रिया में पंचायतों की ओर से जारी नागरिकता प्रमाणपत्र को मान्यता नहीं दी जा रही है। यही वजह है कि कई संगठनों ने एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए इसके विभिन्न प्रावधानों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की हैं। उन पर एक साथ सुनवाई चल रही है।
असम में रहने वाले अवैध बांग्लादेशी नागरिकों की पहचान कर उनको राज्य से बाहर निकालना बीते साल सत्ता में आने वाले सर्वानंद सोनोवाल की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार की पहली बड़ी चुनौती है। अल्पसंख्यक संगठनों ने आरोप लगाया है कि नागरिकता की पुष्टि करने की प्रक्रिया त्रुटिहीन नहीं है। अखिल असम अल्पसंख्यक छात्र संघ (आम्सू) ने एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया में कथित अनियमितताओं के खिलाफ 27 नवंबर को राजधानी गुवाहाटी में एक विशाल रैली आयोजित करने का फैसला किया है।
आम्सू के विरोध की मुख्य वजह यह है कि गौहाटी हाईकोर्ट ने लगभग 26 लाख लोगों के पहचान के दस्तावेजों को अवैध करार दिया है। इन दस्तावेजों का सत्यापन पंचायत अधिकारियों व राज्य सरकार के सर्किल अफसरों ने किया था। आम्सू महासचिव रेजाउल करीम सरकार सवाल करते हैं, "26 लाख लोगों को अचानक अवैध नागरिक कैसे घोषित किया जा सकता है? हमने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की है। हमने मुख्यमंत्री से भी इस मामले में हस्तक्षेप की अपील की है।"
मदनी का बयान
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने असम में नागरिकता के मुद्दे पर म्यामांर जैसे हालात पैदा करने का आरोप लगाकर सरकार को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास किया था। इसी सप्ताह दिल्ली में दिल्ली एक्शन कमिटी फॉर असम नामक एक संगठन की ओर दिल्ली में एनआरसी और नागरिकता के मुद्दे पर आयोजित एक सेमिनार में मदनी ने कहा था, "जब से असम में बीजेपी सरकार सत्ता में आई है तब से इस मुद्दे को धार्मिक रंग देने की कोशिश हो रही है। मूल नागरिकों को ही बांग्लादेशी करार दिया जा रहा है।"
उनका कहना था कि यह असम को म्यांमार बनाने का प्रयास है। मदनी का आरोप है कि सरकार 48 लाख विवाहित अल्पसंख्यक महिलाओं के नाम हटाने की साजिश कर रही है। उनके इस बयान की चौतरफा निंदा हो रही है और राज्य के दो तबकों में दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोप में उनके खिलाफ तीन एफआईआर दर्ज हुए हैं। पुलिस महानिदेशक मुकेश सहाय बताते हैं, "मदनी के कथित भड़काऊ बयान की ऑडियो व वीडियो रिकार्डिंग की जांच की जा रही है। दोष साबित होने पर कानून के तहत उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।"
तमाम राजनीतिक दलों ने मदनी के बयान की निंदा करते हुए उन पर एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया में रोड़े अटकाने का प्रयास करने का आरोप लगाया है। मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने कहा है कि एनआरसी अपडेट करने की प्रक्रिया का विरोध करने वालों को सरकार का दुश्मन माना जाएगा। यह विरोध सुप्रीम कोर्ट को चुनौती देने के समान है क्योंकि उसी के निर्देश पर व निगरानी में यह काम चल रहा है। अल्पसंख्यक संगठनों के उग्र तेवरों को ध्यान में रखते हुए सुरक्षा एजेंसियों ने सोनोवाल के घर ब्रह्मपुत्र गेस्ट हाउस को बुलेटप्रूफ बनाने का फैसला किया है।
एनआरसी पर बढ़ते विवाद और इस मुद्दे पर फैले भ्रम को ध्यान में रखते हुए सरकार ने लोगों की आशंकाओँ को दूर करने के लिए बड़े पैमाने पर प्रचार अभियान चलाने का फैसला किया है। उधर, राज्य के प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने कहा है कि वह ऐसा एनआरसी चाहती है जिसमें गलतियां नहीं हो। पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई कहते हैं, "मैंने ही मुख्यमंत्री रहते एनआरसी अपडेट करने की पहल की थी। वह कहते हैं कि एनआरसी विदेशियों के मुद्दे से जुड़ा है, यह कोई धार्मिक मुद्दा नहीं है।"
सत्तारुढ़ बीजेपी और विपक्षी कांग्रेस के इन बयानों के बावजूद कई अल्पसंख्यक संगठन एनआरसी विवाद को भड़का कर अपनी रोटियां सेंकने का प्रयास कर रहे हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि बड़े पैमाने पर होने वाले विरोध-प्रदर्शनों को देखते हुए सरकार के लिए आगे की राह आसान नहीं होगी। इन संगठनों के मूड से साफ है कि एनआरसी का ड्राफ्ट प्रकाशित होने के बाद विवाद और तेज होगा।