रिपोर्ट ऋतिका पाण्डेय
पेरिस स्थित 'फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स' (एफएटीएफ) 21 से 23 अक्टूबर की बैठक के बाद फैसला सुनाएगी कि आतंकवाद के खिलाफ उठाए गए पाकिस्तान के हालिया कदमों को संस्था काफी मानती है या नहीं।
कोरोना महामारी के चलते पहले जून में होने वाली इस बैठक को टाल दिया गया था और इसके कारण पाकिस्तान को दुनियाभर में आतंकवादी और भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाले अंतरराष्ट्रीय संगठन, एफएटीएफ की शर्तों को पूरा करने के लिए 4 महीने का अतिरिक्त समय मिल गया। इसी साल फरवरी में हुई बैठक में संस्था ने पाकिस्तान को चेतावनी दी थी कि आतंकवाद को प्रायोजित करने वाली सारी गतिविधियां रोकने के लिए उसे दी गई अंतिम समयसीमा पार हो गई है।
फरवरी में एफएटीएफ ने कहा था कि पाकिस्तान ने उसे दिए गए 27 में से केवल 14 मुद्दों पर ही कुछ काम किया है और एक्शन प्लान में शामिल बाकी कदम नहीं उठाए हैं। उसके बाद, सितंबर में संपन्न हुई एफएटीएफ के क्षेत्रीय सहयोगी एशिया-पैसिफिक ग्रुप (एपीजी) की बैठक में पाया गया कि काले धन से निपटने और आतंकवाद को प्रायोजित ना करने से जुड़े एफएटीएफ के कुल 40 सुझावों में से पाकिस्तान ने केवल 2 पर ही पूरी तरह अमल किया है।
क्या होती है ग्रे लिस्ट?
दुनियाभर में आतंकवाद और भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाले अंतरराष्ट्रीय संगठन एफएटीएफ ने 2018 में पाकिस्तान को इस तथाकथित 'ग्रे लिस्ट' में डाला था। तकनीकी तौर पर इसे 'जूरिसडिक्शन अंडर इनक्रीज्ड मॉनीटरिंग' कहा जाता है जिसमें वे देश रखे जाते हैं, जो आतंकी गुटों की वित्तीय मदद रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाते। इस सूची में फिलहाल विश्व के 18 देश शामिल हैं जिनमें पाकिस्तान पर आतंक के वित्त पोषण का भी आरोप है जबकि पनामा पेपर लीक मामले से जुड़े देश पनामा और मॉरीशस तथा आइसलैंड जैसे देशों के बारे में ज्यादातर मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ी शिकायतें हैं।
ग्रे लिस्ट में होने की वजह से पाकिस्तान के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार से कर्ज लेना और मुश्किल हो जाता है। वैसे तो इस लिस्ट की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है मगर ऐसे देशों को कर्ज देने से पहले अंतरराष्ट्रीय नियामक और वित्तीय संस्थान कहीं ज्यादा सतर्क रहते हैं। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पहले ही बहुत अच्छी हालत में नहीं है और ऐसे में इन अतिरिक्त मुश्किलों के कारण देश के व्यापार और निवेश पर बुरा असर पड़ सकता है।
इराक के मोसुल में स्थित ऐतिहासिक अल-नूरी मस्जिद और उसकी मीनार अल-हदबा को आईएस ने तबाह कर दिया है। इसी मस्जिद से 2014 में अबू बकर अल बगदादी ने इस्लामी खिलाफत की घोषणा की थी। यह मीनार पीसा की प्रसिद्ध मीनार की ही तरह झुकी हुई थी और 840 सालों से वहां खड़ी थी। हालांकि आईएस इसे गिराने का इल्जाम अमेरिका के सिर रख रहा है।
इससे भी बुरा हो सकता है हाल
पेरिस स्थित एफएटीएफ के पास 'ग्रे लिस्ट' से भी बुरी एक 'ब्लैक लिस्ट' होती है जिसका तकनीकी नाम है 'हाई-रिस्क जूरिसडिक्शंस सब्जेक्ट टू अ कॉल फॉर एक्शन।' फिलहाल इसमें केवल 2 देश ईरान और उत्तर कोरिया ही रखे गए हैं। आतंकवादी गतिविधियों को वित्तीय समर्थन रोकने के लिए यह संस्था 2001 से विशेष ध्यान देती आई है और यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के वित्तीय प्रावधानों को लागू करवाने में भी मदद करती है।
इसका काम ग्रे लिस्ट में शामिल देशों के साथ साल में कई बार बैठकें करना और स्टेटस रिपोर्ट की समीक्षा कर उन्हें एक्शन प्लान पर अमल करवाने का दबाव बनाना भी है। इस साल कोविड वायरस के कारण फैली महामारी के चलते इसमें कुछ कमी आई है। फिर भी संस्था ने पाकिस्तानी सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश की ताकि वह यूएन के प्रतिबंधों को लागू करवाने के लिए कानून बनाए, सरकारी संस्थानों और कानून व्यवस्था के लिए जिम्मेदार एजेंसियों के बीच सहयोग को बेहतर बनाने के लिए काम करे और आतंक के लिए वित्तीय मदद जुटाने वाले आतंकवादियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाए।
पाक-साफ साबित होने के लिए पाकिस्तान के कदम
पाकिस्तान ने इस साल लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद और कुछ दूसरे आतंकवादियों को गिरफ्तार किया और कइयों को सजा भी सुनाई। फरवरी में ही सईद को साढ़े पांच साल की जेल की सजा सुनाई गई थी। देश में आतंकी गुटों की संपत्ति को 'फ्रीज एंड सीज' कर जब्त करने और आतंकवाद को वित्तीय मदद पहुंचाने वालों के लिए जुर्माने और जेल की सजा के प्रावधान वाले भी कम से कम 10 नए कानून बनाए गए।
दूसरी तरफ, इसी साल पाकिस्तान ने करीब 3,800 नामों को आतंकवाद की वॉच लिस्ट से ही हटा दिया जिसकी पश्चिमी देशों में खासतौर पर काफी आलोचना हुई। काउंटर टेररिज्म पर इसी साल 24 जून को जारी हुई अमेरिकी सरकार की रिपोर्ट में बताया गया कि कैसे पाकिस्तान ने अपनी सीमाओं में आतंकियों को पाल कर ना केवल भारत को बल्कि अफगानिस्तान को भी निशाने पर रखा। अमेरिकी विदेश मंत्रालय की आतंकवाद पर जारी इस रिपोर्ट में कहा गया कि पाकिस्तान अब भी लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मुहम्मद जैसे आतंकवादी गुटों को अपनी जमीन पर सुरक्षित ठिकाना देता है, जो भारत जैसे पड़ोसी देशों को निशाना बनाते आए हैं।
एफएटीएफ के कुल 39 सदस्य देशों में से केवल कुछ ही देश पाकिस्तान को ब्लैक लिस्ट से बाहर रखे जाने का समर्थन करते आए हैं। चीन इसका पुरजोर समर्थन करता रहा है तो वहीं पिछले कुछ सालों में पाकिस्तान ने मलेशिया, सऊदी अरब और तुर्की से अपने लिए समर्थन जुटाने की पूरी कोशिश की है। एफएटीएफ की अध्यक्षता इस समय जर्मनी के पास है और यह पद इससे पहले चीन के पास था। जर्मनी के डॉक्टर मार्कुस प्लेयर ने 1 जुलाई 2020 से अगले 2 सालों के लिए अध्यक्ष का पद संभाला है। एफएटीएफ का रुख किस तरफ मुड़ता है यह इसी से साफ होगा कि वह पाकिस्तान को किस सूची में रखने का फैसला करता है।