Hanuman Chalisa

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

बिहार चुनाव में भी जेन-जी निभा सकते हैं अहम भूमिका

बिहार चुनाव से पहले दोनों ही प्रमुख गठबंधन चाह रहे हैं कि वे युवा वोटरों को आकर्षित करें। इन युवा वोटरों की भूमिका हालिया चुनावों में अहम हो सकती है। क्या ये युवा इन चुनावों में प्रशांत किशोर को मजबूत

Advertiesment
हमें फॉलो करें Bihar Elections 2025

DW

, बुधवार, 15 अक्टूबर 2025 (07:52 IST)
Bihar Assembly Elections 2025 : बिहार में विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने से ठीक पहले तक सत्तारूढ़ एनडीए ने कई लोकलुभावन घोषणाएं कीं। वहीं विपक्षी महागठबंधन ने ना सिर्फ वर्तमान सरकार की खामियां निकाल उसे अक्षम बताया बल्कि अपनी ओर से भी कई लुभावने वादे किए। नौकरी-रोजगार और शिक्षा से जुड़ी घोषणाओं और वादों के केंद्र में जेन-जी मुख्य रूप से मौजूद है। नीतीश सरकार ने अगले पांच साल में और एक करोड़ लोगों को नौकरी का वादा किया है तो तेजस्वी यादव ने सत्ता में आने पर सरकारी नौकरी से वंचित हर परिवार को अनिवार्य रूप से एक सरकारी नौकरी देने की घोषणा की है।
 
निर्वाचन आयोग के ताजा आंकड़ों के मुताबिक बिहार के कुल 7.43 करोड़ वोटरों में 20 से 29 आयु वर्ग के करीब एक करोड़ 63 लाख वोटर हैं। वहीं पहली बार वोट डालने जा रहे मतदाताओं की संख्या 14 लाख से अधिक है। अगर दोनों को जोड़ दिया जाए तो यह संख्या करीब एक करोड़ 77 लाख हो जाती है। यानी इतनी बड़ी संख्या में जेन-जी या उसकी करीबी उम्र के लोग इन चुनावों में हिस्सेदारी कर रहे हैं। बिहार में 6 और 11 नवंबर को दो चरणों में विधानसभा की 243 सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे। मतगणना 14 नवंबर को होगी। पहले चरण के लिए नामांकन शुरू हो चुका है। नामांकन पत्रों की जांच 18 को होगी और 20 अक्टूबर तक नाम वापस लिए जा सकेंगे।
 
जानकार मान रहे हैं कि बिहार में इस बार मुकाबला दो पक्षों के बजाए, तीन पक्षों के बीच है। राजनीतिक समीक्षक एके चौधरी कहते हैं, ‘‘प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज ने निश्चित तौर पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है। इसकी धमक कितनी असरदार होगी, यह तो वक्त ही बताएगा।'' 
 
नौकरी-रोजगार का मुद्दा कितना प्रभावी
प्रशांत किशोर फैक्टर को जानकार अहम मान रहे हैं। बिहार की राजनीति के जानकार प्रोफेसर एस। शेखर कहते हैं, ‘‘इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रशांत किशोर की पदयात्रा के बाद से आम लोगों में शिक्षा, नौकरी-रोजगार और पलायन की चर्चा तेज हो गई है। यही वजह है कि चुनाव की अधिसूचना जारी होने के ठीक पहले तक नीतीश सरकार ने युवा वर्ग के लिए ताबड़तोड़ कई घोषणाएं तो की ही, मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के लाभार्थियों के खाते में दस-दस हजार रुपये भी ट्रांसफर कर दिए।'' एनडीए की यह बेचैनी यूं ही नहीं है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी युवाओं को अपने पक्ष में करने के लिए लगातार सरकारी नौकरी देने, रोजगार के उपाय करने, परीक्षाओं के पेपर लीक रोकने और डोमिसाइल लागू करने की चर्चा कर रहे हैं।
 
वोटर अधिकार यात्रा में उमड़ने वाली युवाओं की भीड़ से एनडीए सरकार भी सतर्क हुई। उसने युवाओं के लिए ताबड़तोड़ कई घोषणाएं कीं। जिनमें रिक्त पदों पर नियुक्ति के साथ राज्य की सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए सौ रुपये की एक समान फीस करने, नौकरी या रोजगार की तलाश कर रहे बेरोजगार युवक-युवतियों को अगले दो साल तक प्रतिमाह एक हजार रुपये की सहायता राशि देने तथा उच्च शिक्षा के लिए बिहार स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना के तहत मिलने वाली चार लाख की राशि को ब्याज मुक्त करने एवं सरकारी या सहायता प्राप्त स्कूलों में कक्षा एक से दस तक के छात्र-छात्राओं की स्कॉलरशिप की राशि दोगुनी करने जैसी घोषणाएं अहम हैं।
 
प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाली आयुषी कहती हैं, ‘‘आज का युवा वर्ग इस डिजिटल दुनिया में स्मार्टफोन पर केवल रील्स ही नहीं देखता है। बल्कि, उसकी नजर अपने राज्य की शिक्षा व स्वास्थ्य व्यवस्था, सरकारी कार्यालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार, नौकरी-रोजगार के अवसर और रोजीरोटी की तलाश में युवाओं के पलायन पर भी है। इस चुनाव में इन मुद्दों की खासी अहमियत हम युवाओं के लिए रहेगी।'' 
 
फिर मोदी के हनुमान तो नहीं बनेंगे चिराग
एनडीए के दो घटक एलजेपी (रामविलास) और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) की नाराजगी तो बीते कई दिनों से सतह पर आ गई थी। हालांकि अंतिम निर्णय में एलजेपी को 29 और हम को 6 सीटें मिलीं। चिराग को एनडीए की ओर से 25 सीट का प्रस्ताव दिया गया था, जो उन्हें स्वीकार्य नहीं था। शुक्रवार को केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय से मिलने के बाद चिराग का बयान आया था कि जहां मेरे प्रधानमंत्री मोदी हैं, वहां कम से कम मुझे मेरे सम्मान के बारे में सोचने की जरूरत नहीं है।
 
प्रो शेखर कहते हैं, ‘‘बीजेपी और जेडीयू के लिए चिंता का बड़ा कारण चिराग ही हैं। उन्होंने 2020 के चुनाव में अंतिम समय में स्वयं को पीएम नरेंद्र मोदी का हनुमान बता अलग चुनाव लड़ने का फैसला ले लिया था। इसका असर क्या हुआ, यह सब जानते हैं। पिता रामविलास पासवान की पुण्यतिथि पर उन्होंने एक्स पर जो लिखा, उसके निहितार्थ तो कतई बेहतर नहीं कहे जा सकते।'' हम के प्रमुख जीतन राम मांझी, राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा की असंतुष्टि भी सामने आती रही है। हर बार बीजेपी से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने वाली जेडीयू भी इस बार असहज स्थिति में बनी रही है। अंत में बीजेपी और जेडीयू दोनों में 101-101 सीट पर चुनाव लड़ने को लेकर सहमति बनी है।
 
चरम पर प्रेशर पॉलिटिक्स
महागठबंधन में भी प्रेशर पॉलिटिक्स चरम पर है। आरजेडी अपने पास 135 से अधिक सीट रखना चाह रही है, वहीं कांग्रेस को कुल 50-60 सीटों की अपेक्षा है। वह सीएम फेस पर भी मौन है। इससे भी आरजेडी बेचैन है। विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) डिप्टी सीएम के पद की मांग के साथ ही 30 से कम सीट पर लड़ने को राजी नहीं है। वामदलों ने भी पिछले चुनाव में सर्वोत्तम स्ट्राइक रेट का दावा करते हुए पांच और सीट की मांग रखी है। इसके अलावा जेएमएम और आरएलजेपी को भी समायोजित किया जाना है।

चौधरी कहते हैं, ‘‘दरअसल, एक-दूसरे की सिटिंग सीटों पर नजर गड़ाए होना भी विवाद का मुद्दा बना है। उदाहरण के लिए बेगूसराय जिले की मटिहानी विधानसभा सीट को लें। पिछले चुनाव में यहां एलजेपी के टिकट पर राजकुमार सिंह की जीत हुई थी, किंतु बाद में वे जेडीयू में शामिल हो गए। अब जेडीयू इसे अपनी सीट मान रहा, वहीं एलजेपी (आर) इस पर अपना हक जता रही है। इसी तरह घोसी की सीट को लेकर वामदल और कांग्रेस के बीच टकरार है।''
 
क्या होंगे पीके, वोटकटवा या किंगमेकर
इस बार बिहार के विधानसभा चुनाव में जन सुराज पार्टी के सूत्रधार प्रशांत किशोर (पीके) की भी बहुत चर्चा है। गुरुवार को उन्होंने अपने 51 प्रत्याशियों की सूची जारी की। इस सूची में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की पौत्री जागृति ठाकुर एवं गणित के ख्यातिलब्ध शिक्षक व कई यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रहे प्रो। के।सी।सिन्हा, पटना हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता वाईवीगिरि, भोजपुरी गायक रितेश रंजन पांडेय और दो पूर्व आईपीएस अधिकारी और सात चिकित्सक शामिल हैं। इस सूची में कभी नीतीश कुमार के काफी करीबी व जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे आर सी।पी। सिंह की पुत्री लता सिंह का भी नाम है, जो सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं।
 
पत्रकार शिवानी सिंह कहती हैं, ‘‘इन दिग्गजों का क्या होगा, यह तो ईवीएम ही बताएगा। किंतु, यह तो साफ है कि युवा और सिस्टम से निराश लोग जनसुराज को एक विकल्प के तौर पर जरूर देख रहे। अपने बच्चों की चिंता करने की इनकी अपील वोट के लिए लोगों की जातिगत जकड़न तोड़ सकती है। पहली सूची में तो पार्टी परंपरागत जातीय समीकरण को तोड़ती दिख रही है।''

वहीं, चौधरी कहते हैं, ‘‘सटीक रणनीति के साथ बदलाव की बात करने वाले प्रशांत किशोर यदि जातीय और फ्री-बीज का मकड़जाल तोड़ने में एक हद तक भी सफल हो जाते हैं, तो वे निश्चय ही किंगमेकर होंगे।'' अगर ऐसा नहीं हो पाता है तो जैसा वे कहते हैं, उसके अनुसार एनडीए और महागठबंधन से रूठे 28 प्रतिशत वोटरों का बड़ा हिस्सा उन्हें यदि मिल गया और दोनों गठबंधनों का दस-दस प्रतिशत वोट भी पाने में सफल हो गए तो निश्चय ही वे ऐसे वोटकटवा होंगे, जो बदलाव का वाहक बनेंगे।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

कहां से आई काजू कतली, शिवाजी महाराज ने बनवाई या जहांगीर ने खाई