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पक्षियों की जान लेने वाली ये कैसी खेती

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, शुक्रवार, 12 मई 2017 (11:56 IST)
जर्मनी और पूरे यूरोप में पक्षियों की संख्या में नाटकीय कमी दर्ज हुई है। विशेषज्ञ इसका कारण औद्योगिक खेती को बताते हैं, जो पक्षियों का निवास और उनका भोजन दोनों लीलती जा रही है।
 
जर्मन सरकार द्वारा जारी ताजा आंकड़े दिखाते हैं कि बीते 30 सालों में जर्मनी और पूरे यूरोप में पक्षियों की तादाद में बहुत ज्यादा कमी आयी है। जर्मनी में पायी जाने वाली कुल प्रजातियों में से एक-तिहाई की आबादी में 1990 के आखिर से ही "भारी कमी" दर्ज हुई है। जर्मनी की ग्रीन पार्टी ने यूरोप में घटते पक्षियों को लेकर सवाल उठाया था, जिसके बाद जर्मन सरकार ने यह सारी जानकारी दी।
 
ऐतिहासिक गिरावट : खास तौर पर खेती बाड़ी के इलाके में तो पक्षी और भी ज्यादा संकट में हैं। यूरोपीय संघ के खेती वाले इलाकों में 1980 से 2010 के बीच ही पक्षियों के करीब 30 करोड़ ब्रीडिंग जोड़े गायब हो गए। यह अपने आप में 57 फीसदी की कमी है। जर्मनी के पक्षी संरक्षण संगठन नाबू के संरक्षण अधिकारी लार्स लाखमन बताते हैं, "खेतों वाले पक्षियों का हाल तो सबसे बुरा हो गया है। यानि वे पक्षी जो खुले मैदानों, घास के मैदान और चारागाहों में रहते हैं। जर्मनी की धरती पर पाये जाने वाले करीब 50 फीसदी पक्षी ऐसे ही हैं।"
 
इंडिकेटर स्पीशीज माने जाने वाले कुछ पक्षियों की संख्या में तो तीस सालों में 80 फीसदी तक की गिरावट दर्ज हुई है। पक्षियों को ऐसी प्रजाति माना जाता है जिनके हाल से किसी इकोसिस्टम के पूरी तस्वीर का पता चलता है।
 
आवास और भोजन की कमी
नाबू का कहना है कि "गहन कृषि" सबसे बड़ा दोषी है। बड़ी ताकतवर मशीनों की मदद से बड़े बड़े मैदानों में एक ही तरह की फसलें उगाना संभव हो गया, साथ ही बड़े स्तर पर कीटनाशकों का छिड़काव भी। इसके कारण इलाके के पक्षियों का भोजन यानि कीड़े-मकोड़े मिलना मुश्किल हो गया और उनके रहने और ब्रीडिंग की जगह भी कम हो गयी। जर्मन सरकार की ओर से दी गयी जानकारी से पता चलता है कि इन्हीं सालों के दौरान कई कीड़ों की संख्या में तो 90 फीसदी तक की कमी दर्ज हुई है।
 
विपक्षी ग्रीन पार्टी ने सरकार पर कीटनाशकों के इस्तेमाल को कम करने और खेती में मोनोकल्चर को घटाने को लेकर पर्याप्त कदम ना उठाने का आरोप लगाया है। लाखमन मानते हैं कि अगर यूरोपीय संघ चाहे तो कृषि नीति को ठीक से लागू करवा सकती है, जिससे पक्षियों को फायदा होगा। एक और उपाय औद्योगिक कृषि के मॉडल की जगह ज्यादा से ज्यादा ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देना होगा।
 
- आरपी/एमजे (डीपीए)

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